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Vikas rana janumanu 'fikr''s Blog – October 2010 Archive (3)

जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

सभी को मेरा प्रणाम ... एक नयी कोशिश की है आपके सामने पेश है ...



बहर है 2122 212 2 212 2 212

मंज़िले अपनी जगह, रास्ते अपनी जगह ... आप इस गाने की धुन पे इसे गुनगुना सकते हैं ...

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जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

नासमझ ये दिल सही तुम तो इसे टोका करो



किस तरफ हो जा रहे, इस राह की मंज़िल है क्या

देर थोड़ी बैठ कर, तुम दूर तक सोचा करो



तुम बचाओ मुझसे दामन, पास… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 19, 2010 at 3:00pm — 10 Comments

दूर तुम हो पास अब तन्हाई है

दूर तुम हो पास अब तन्हाई है

ज़िंदगी किस मोड़ पर ले आई है



हुस्न वाले चैन छीने दर्द दें

अक्ल अब जा के ठिकाने आई है



काटनी होगी फसल तन्हाई की

पर्वतों सी हो गयी ये राई है



रात आधी चाँद पूरा नींद गुम

चोट दिल की भी उभर सी आई है



आजकल क्यूँ गुम से रहते हो बड़े

मुझसे पूछे रोज मेरी माई है



तुम न हो तो फ़िक्र करते सब मेरी

दोस्त पूछे, ध्यान रखता भाई है



दिल न लगता है किसी भी अब जगह

दिल लगाने की सज़ा यूँ पाई… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 11, 2010 at 1:00pm — 5 Comments

घर - एक नज़्म

चाँद घुटनों पे पड़ा था

अम्बर की किनारी पे



शब-ए-काकुल मे

तरेड़ पड़ गयी थी

चांदनी की .......

"जैसे तेरी कोरी मांग,

मैंने अभी भरी नहीं "



माँ ने अंजल भर के तारो से

चरण-अमृत छिड़का हो

सारा आसमान जैसे सजाया हो

आरती की थाली की मानिंद

तेरा गृह-प्रवेश करने के लिए ....... !



.. पर इतना बड़ा आसमान

कैसे मेरे छोटे से घर मे समाता .....



" अच्छा होता मैं घर ही न बनाता"

मैं घर ही न बनाता ...… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 9, 2010 at 3:30pm — 6 Comments

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