ख़्यालों में गिरफ़्तार
गम्भीर उदास
अपना सिर टेक कर
इ-त-नी पास
तुम इतनी पास
तो कभी नहीं बैठती थी
फिर आज...?
मिलने पर
न स्वागत
न शिकायत
न कोई बात
अपने में ही सोचती-सी ठहरी
धड़कन की खलबली में भी
तुम इतनी आत्मीय ...
मेरे बालों की अव्यवस्था को ठेलती
कभी शाम के मौन में शाम की
निस्तब्धता को पढ़ती
शांत पलकें, अब अलंकार-सी
जागती-सी सोचती, कुछ…
ContinueAdded by vijay nikore on September 26, 2017 at 12:24pm — 12 Comments
३१ अगस्त... प्रिय अमृता प्रीतम जी का पावन जन्म-दिवस। बहुत ही याद आई, मेरे खयालों में तैरती बीते सालों की हवा लौट आई।
सन १९६४ ... अमृता प्रीतम जी और मैं अभी कुछ ही दिन पहले मिले थे। तत्पश्चात टेलिफ़ोन पर उनसे बात हुई तो कुछ दार्श्निक सोच में थीं। बात बदलते हुए मौसम से ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव पर, और फिर झरने पर... जहाँ पानी नीचे गिरता है, गिर कर ऊपर नहीं उठता। जानते हुए कि वह उस दिन तमस-भाव में थीं, मैं उनकी…
ContinueAdded by vijay nikore on September 1, 2017 at 5:52am — 14 Comments
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