अनुभूति
( जीवन साथी नीरा जी को सस्नेह समर्पित )
अनंत्य सुखमय सौम्य संदेश लिए
भावमय भोर है ओढ़े छवि तुम्हारी,
पल-पल झंकृत, पथ-पथ ज्योतित
आनंदमय नाममात्र से तुम्हारे...
औ, अरुणित उत्कर्षक उष्मा !
संगिनी सुखमय प्राणदायक..!
प्रत्येक फूल के ओंठों पर
विकसित हँसी तुम्हारी,
स्नेहमय उन्माद नितांत
सोच तुम्हारी रंग देती है
स्वच्छंद फूलों के गालों को
गालों के गुलाल से…
ContinueAdded by vijay nikore on September 24, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
अनुभव
आज फिर दिन क्यूँ चढ़ा डरा-डरा-सा
ओढ़ कर काला लिबास उदासी का ?
घटना ? कैसी घटना ?
कुछ भी तो नहीं घटा
पर लगता है ... अभी-अभी अचानक
आकाश अपनी प्रस्तर सीमायों को तोड़
शीशे-सा चिटक गया,
बादल गरजे, बहुत गरजे,
बरस न पाये,
दर्द उनका .. उनका रहा ।
सूखी प्यासी धरती, यहाँ-वहाँ फटी,
ज़ख़मों की दरारें ..... दूर-दूर तक
घटना ? .... कैसी घटना…
ContinueAdded by vijay nikore on September 17, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
बाज़ार
संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार
उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।
कुछ सादी सच्चाईयाँ भरीं उस टोकरी में,
प्यार के कच्चे-मीठे-कड़वे झूठों का भार,
चाकलेट के लिए वह छोटे बचकाने झगड़े,
शैतानी भी, और बचपन के खेल-खिलवाड़।
भीड़ में भीड़ बनने की थी बेकार की कोशिश,
बनावटी रंगों की बेशुमार बनावटी सब्ज़ियाँ,
मफ़्रूज़ कागज़ के फूल यह असली-से लगते,
थक गया हूँ अब इनसे इस…
ContinueAdded by vijay nikore on September 13, 2013 at 1:30am — 16 Comments
चिंगारियाँ
बूंद-बूंद टपकती
घबराती बेचैनी,
बेचैन ख़यालों के भीतरी अहाते --
जहाँ कहीं से आती थी याद तुम्हारी
बंद कर दिए थे उन कमरों के दरवाज़े,
पर समय की धारा-गति कुछ ऐसी
दरवाज़े यह समाप्त नहीं होते,
गहरे में उतर-उतर आती है अकुलाहट
कई दरवाज़ों के पीछे से आती है जब
सुनसान आवाज़, तुम्हारी करुण पुकार,
तुम थी नहीं वहाँ, हाँ मैं था
और था मेरा कांपता आसमान
टूटते तारे-सा गिरने का जिसका…
ContinueAdded by vijay nikore on September 5, 2013 at 11:30am — 24 Comments
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