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Hilal Badayuni's Blog – September 2010 Archive (21)

तीन क़त'आत

//कोशिश//



तूने शब् -ऐ -विसाल को आने नहीं दिया ,

मैंने भी इस मलाल को आने नहीं दिया .

रखा है खुद को दूर तेरी याद से बहुत

दिल में तेरे ख्याल को आने नहीं दिया !

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//पहचान//



नाम -ओ -निशान मेरा मिटेगा नहीं कभी

गुलशन में खुश्बुओ की झलक छोड़ जाऊंगा

गुलचीं मसल के देख मुझे मै वो फूल हूँ

हाथो में तेरे अपनी महक छोड़ जाऊंगा… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 23, 2010 at 7:00pm — 3 Comments

आज की साम्प्रदायिकता के नाम...........

काश रहबर मिला नहीं होता

मै सफ़र में लुटा नहीं होता



गुंडागर्दी फरेब मक्कारी

इस ज़माने में क्या नहीं होता



हम तो कब के बिखर गए होते

जो तेरा आसरा नहीं होता



आग नफरत की जिसमे लग जाये

पेढ़ फिर वो हरा नहीं होता



हम शराबी अगर नहीं बनते

एक भी मैकदा नहीं होता



हिन्दू मुस्लिम में फूट मत डालो

भाई भाई जुदा नहीं होता



ये सियासत की चाल है लोगो

धर्म कोई बुरा नहीं होता



मंदिरों मस्जिदों पे लढ़ते… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 21, 2010 at 12:56pm — 3 Comments

तकल्लुफ

इस बार वो ये बात अजब पूछते रहे

मेरी उदासियो का सबब पूछते रहे

अब ये मलाल है कि बता देते राज़-ऐ-दिल

तब कह सके न कुछ भी वो जब पूछते रहे

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

नाकाम वफाएं

छोड़ कर वो साथ मेरा जब जुदा हो जायेगा ,

ज़ात पैर इंसान की कुछ तब्सिराह हो जायेगा .

हद से ज्यादा कर रहा था मै वफाएं उसके साथ ,

मुझको क्या मालूम था वो बेवफा हो जायेगा .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

शोहरत


जब तलक मंसूब दिल से दिल न हो ,

दिल को तब तक हिचकियाँ मिलती नहीं .

इश्क करने से मिलेंगी शोहरतें ,

मुफ्त में बदनामियाँ मिलती नहीं .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

हाल

उससे बिछड़ के ऐसे मेरा दिल उदास है ,
जैसे बिछड़ के मौज से साहिल उदास है .
मै कर रहा हु इसलिए हसने की कोशिशे ,
मुझको उदास देख के महफ़िल उदास है .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

एहसास


रब्त -ऐ - नाज़ुक की शुरुआत भी हो सकती है ,
लब हिलेंगे नहीं और बात भी हो सकती है .
हमसे मिलने का कभी दिल में न तुम ग़म करना ,
बंद आँखों में मुलाक़ात भी हो सकती है .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

अपना घर

परदेस में रहने की ख़ुशी और अलम और ,
याद आये अगर घर की तो होता है सितम और .
परदेस से खींचे है कशिश घर की कुछ ऐसे ,
जाना हो अगर घर पे तो बढ़ते है क़दम और .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

तेरी रुसवाई भी तो हो ...........

फ़क़त मै क्यों रहू रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ,

सितमगर तेरी महफिल में शब् -ऐ -तन्हाई भी तो हो .



तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ,

ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो .



मै तुमको बेवफा कहता हु तो इसमें बुरा क्या है ,

ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो .



वफ़ा के खुश्क दरिया में मै कैसे डूब सकता हो ,

तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहराई भी तो हो .



शब् -ऐ -फुरक़त क हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ,

बिछड़ के… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 1 Comment

सुराग


शब् भर हमारी याद में ऐसे जगे हो तुम ,

आराम तर्क कर के टहलते रहे हो तुम ..

बिस्तर की सिलवटो से महसूस हो गया

कुछ देर पहले उठ के यहाँ से गए हो तुम

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

आँख और आंसू



ये बोला आँख से आंसू के माँ ये क्या किया तुने

हमारी कौन सी ग़लती का ये बदला लिया तुने

कभी औलाद को अपनी जुदा माँ तो नहीं करती

फिर अपने लाल को क्यों घर से बेघर कर दिया तुने







ये बोली आँख आंसू से जुदा बस यु किया तुझको

बुलंदी पर पहुचने का दिया है रास्ता तुझको

अगर तू साथ रहता तो तेरी क्या अहमियत होती

ज़मी पे गिर के ही तो मर्तबा आला मिला… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

नाराज़ महबूबा



तुम्ही मेरी ज़रूरत हो तुम्ही पहली मुहब्बत हो

क़सम कोई भी ले लो तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो



तुम्हारे ध्यान से क़ल्ब -ओ -जिगर में रौशनी आये

तुम्हारी मुस्कराहट ही मेरे लब पर हंसी लाये



जो तुम मेरी तरफ देखो मेरे दिल को सुकू आये

ज़रा हंसकर कभी बोलो मेरे दिल पर ख़ुशी छाए



न हो तुम ग़मज़दा की मेरा दिल मचलता है

तुम्हारे एक इक आंसू से मेरा दिल पिघलता है



मुहब्बत का वाफाओ का मेरी कुछ तो सिला दे… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

तू समझता है बदौलत तेरी है .............

तू समझता है बदौलत तेरी है
मेरे दम से ही ये इज्ज़त तेरी है

यु उजड़ता कब है कोई गुलसितां
लगता है इसमें शरारत तेरी है

तू अमीर -ऐ -शहर था मग़रूर था
हाथ फैला अब ज़रूरत तेरी है

चाहतें किस किस की है दिल में तेरे
मेरे दिल में सिर्फ चाहत तेरी है

इसलिए महफूज़ रखता हु इसे
ज़िन्दगी मेरी अमानत तेरी है

शेर महफ़िल में सुनाता है 'हिलाल '
या खुदा इस पे ये रहमत तेरी है

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी ......

बात उनसे कभी हो गयी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी



दिल्लगी आशिकी हो गयी

आशिकी बंदगी हो गयी



वो तसव्वुर में क्या आ गए

क़ल्ब में रौशनी हो गयी



जब कभी उनसे नज़रें मिली

अपनी तो मैकशी हो गयी



बात फिर से जो होनी न थी

बात फिर से वो ही हो गयी



जब कभी वो खफा हो गए

ख़त्म सारी ख़ुशी हो गयी



बादलो क जब आंसू गिरे

कुल जहाँ में नमी हो गयी



सैकड़ो घोंसले गिर गए

क्यों हवा सरफिरी हो गयी



ध्यान उनका… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 5 Comments

मुक़दमा -उस्ताद की कलम से



बिस्मिल्लाह हिर्रहिमा निर्रहीम



हिलाल वजीरगंजवी (बदायूं )



हिलाल अहमद 'हिलाल ' मेरे सभी शागिर्दों में एक मुनफ़रिद मकाम के हामिल है . हिलाल , आले अहमद 'ज़ौक मुहम्मदी के फरजंद और हाफिज़ अबरार अहमद 'जाहिद मुहम्मदी के भतीजे है उन के दादा मरहूम मौलवी मुहम्मद बक्श साहब बस्ती के मशहूर पाकबाज़ शक्सीयत थे .



ज़ौक मुहम्मदी , जाहिद मुहम्मदी ने भी मुझसे शरफ तलाम्मुज़ हासिल किया और फख्र की बात ये है के मेरा और हिलाल का घराना एक… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

हुस्न



तेरे हुस्न -ओ -नजाकत का बदल मै लिख नहीं सकता - कि तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता



तबस्सुम और तेरे गुफ्तार के बारे में क्या लिक्खूं

तेरे सुर्खी भरे रुखसार के बारे मै क्या लिक्खू

तेरी सीरत तेरे किरदार के बारे मै क्या लिक्खू



तेरी पाजेब क़ी झंकार के बारे में क्या लिक्खू - के तेरी शान मै कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता



तेरे लहराते आँचल को मै अब तशबीह किस से दूँ

तेरी आँखों के काजल को मै अब तशबीह किस… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब ................



आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब

कौन दिल बहलाए फिर जाकर बहारों के करीब



कल मेरी कश्ती डुबोने में उन्ही का हाथ था

आज जो अफ़सोस करते है किनारों के करीब



ज़लज़ले में कितने बच्चे हो गए है कल यतीम

देख लो जाकर ज़रा उन बेसहारों के करीब



मेरे घर की मुफलिसी ज़ाहिर न हो दीवार से

इश्तहारों को लगाया है दरारों के करीब



क़त्ल केर दो मुझको लेकिन एक ख्वाहिश है मेरी

दफन करना मुझको मेरे… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm — No Comments

तसव्वुफ़


क्यों कहू खुद से मै जुदा तुमको

जब के अपना बना चुका तुमको

तुम तसव्वुर में आ गए फ़ौरन

जब भी चाहा के देखता तुमको

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm — No Comments

लगता है उसके पास कोई आईना नही

अपनी बुराइयाँ जो कभी देखता नही

लगता है उसके पास कोई आईना नही



गुलशन मे रहके फूल से जो आशना नही

उसका तो खुश्बुओ से कोई वास्ता नही



हम सा वफ़ा परस्त वतन को मिला नही

लेकिन हमारा नाम किसी से सिवा नही



मैं उससे कर रहा हू वफाओं की आरज़ू

जिस शक्स का वफ़ा से कोई राबता नही



तुम मिल गये तो मिल गयी दुनिया की हर खुशी

पास आने से तुम्हारे मेरे पास क्या नही



उनका ख्याल आया तो अशआर हो गये

अशआर कहने के लिए मैं सोचता… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm — 2 Comments

What is the difference between Maa and other relations?


मेहनत के बावजूद जो पंहुचा मै अपने घर ,

वालिद का ये सवाल कमाया है तुने कुछ .

बीवी को और बच्चों को फरमाइशों की लत ,

बस माँ को ये ख्याल के खाया है तुने कुछ .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm — No Comments

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