प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,
पूर्व-पश्चिम और दक्षिण
सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते
कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं
तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते
क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते
तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,
पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते
कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं…
ContinueAdded by hemant sharma on August 31, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
तुम एक दिन तपकर तो देखो
अपने महलों से निकलकर तो देखो
आओ हम वहां चलते हैं
जहां ईंट बनती है
वो मिट्टी जो रात भर गलती है
बार –बार कटती है ,
तब सांचे में ढलती है
फिर भट्टी में तपती है
तब कहीं वो ईंट बनती है
जो आपके महलों की नींव बनती है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by hemant sharma on August 5, 2013 at 11:00pm — 15 Comments
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