ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)
(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)
क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |
जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |
आँख में तेरी अश्के नदामत न थे
इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |
ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर
आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |
ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे
गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |
यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है
यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 29, 2018 at 3:21pm — 18 Comments
(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)
हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l
सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l
आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया
हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l
बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी
खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l
जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता
मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l
ज़िंदगी में इस तरह आएंगे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 7:30am — 17 Comments
(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)
याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |
जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |
हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ
आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |
भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर
दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|
इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं
मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |
घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2018 at 5:30pm — 20 Comments
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