अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।
निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।
बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।
हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।
झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।
आशीष यादव
Added by आशीष यादव on May 17, 2012 at 9:00am — 22 Comments
ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।
वो…
Added by आशीष यादव on May 1, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
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