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जयनित कुमार मेहता's Blog – May 2017 Archive (2)

रेत पर फूल खिलाने आये (ग़ज़ल)

2122 1122 22



रेत पर फूल खिलाने आये

दश्त में कितने दीवाने आये



मिल गया राह में बचपन का यार

याद फिर गुज़रे ज़माने आये



धूप के पंख निकल आये जब

कुछ शजर जाल बिछाने आये



एक दिन बेखुदी जो ले डूबी

तब मेरे होश ठिकाने आये



वक़्त-बेवक्त भड़क कर आँसू

ग़म की सरकार गिराने आये



नाम लिक्खा था किसी का उनपर

किसी के हिस्से में दाने आये



दिल का दरवाज़ा खुला ही रक्खो

किस घड़ी कौन न जाने आये



आया है हिज्र का… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 15, 2017 at 9:55pm — 15 Comments

नज़र में कोई सूरत है? नहीं तो (ग़ज़ल)

1222 1222 122



मुहब्बत की ज़रुरत है? नहीं तो

ये ग़म क्या रस्म-ए-उल्फ़त है? नहीं तो



तेरी इसपर हुक़ूमत है? नहीं तो

ये दिल तेरी रियासत है? नहीं तो



ये दुनिया ख़ूबसूरत है? नहीं तो

किसी में आदमीयत है? नहीं तो



कोई मंज़र नहीं जँचता है गोया

नज़र में कोई सूरत है? नहीं तो



किसी दिन चाँद उतरे मेरे छत पर

उसे क्या इतनी फुरसत है? नहीं तो



मुहब्बत से ही इतना कुछ मिला है

कुछ और पाने की चाहत है? नहीं तो



कि मर-मर के… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on May 1, 2017 at 3:48pm — 16 Comments

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