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Sushil Sarna's Blog – April 2015 Archive (3)

तन्हाईयों में लौट जाएगी......

तन्हाईयों में लौट जाएगी......

किसको सदायें देते हो

कोई रूह को चुराये जाता है

यादों के खंज़र से

आज खामोशी का दामन

तार- तार हुआ जाता है

हवाओं में

साँसों की सरगोशियों का शोर है

आँखों की मुंडेरों पर

दर्द के मौसम आ बैठे है

धड़कनें ज़ंजीरों में कैद हैं

भला दिल की सदा

कौन सुन पायेगा

ये पत्थरों का शहर है

यहां दिल शीशे सा टूट जायेगा

हर मौसम का यहां

अलग मजाज़ है

हर मौसम अब यहां 

चश्मे सावन में डूब जाएगा…

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Added by Sushil Sarna on April 27, 2015 at 8:04pm — 14 Comments

लौट चलो .....

चलो

लौट चलो

फिर उसी झील के किनारे

जहां आज तक

लहरों पे चाँद मुस्कुरता है

किनारों की कंकरियां

झील में सुप्त अहसासों को

जगाने के लिए आतुर हैं

वो शिला जिस पर बैठ कर

हमने दृग स्पर्शों से

मौनता का हरण किया था

आज एकान्तता में

उन्ही मधु पलों को जीने के लिए

कसमसा रहा है

हाँ और न के अंतर्द्वंद से

स्वयं को निकालो

प्रणय पलों के स्पंदन से

यूँ आँख न चुराओ

लौट आओ

हम अपने अस्तित्व को

अमर पहचान देंगे

अपने…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 18, 2015 at 7:01pm — 8 Comments

जीवन का आधार प्रीत है ....

जीवन   का   आधार  प्रीत  है ...........

जीवन   का   आधार  प्रीत  है

स्वप्न   का   श्रृंगार   प्रीत  है

जलते   रहना   दीप  लौ   पर

शलभ  की  निस्वार्थ  प्रीत  है

विरह   में   बरसात  की   बूंदें

सावन  का   रूठा   संगीत   है

लहरों  पे  वो  छवि  मयंक की

नयन  बिम्ब  की तरल प्रीत है

मधुर  पलों  का  मौन समर्पण

अधरों  पर  अधरों  की जीत है

भुजबंधन  का  तरुण स्पन्दन

आसक्त पलों की  मधुर प्रीत है

आवारापन वो तिमिर-केश का

मधुप…

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Added by Sushil Sarna on April 10, 2015 at 1:51pm — 8 Comments

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