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जयनित कुमार मेहता's Blog – April 2016 Archive (3)

ज़िन्दगी से जो मिला, अच्छा मिला (ग़ज़ल)

2122 2122 212

नेक-नीयत रख के आखिर क्या मिला
हर कदम पर हाँ मगर धोखा मिला

कौन दुश्मन,किसको कहते खैरख्वाह
हर कोई क़ातिल से मेरे था मिला

मांगने वालों की झोली ना भरी
जिसने ना माँगा उसे ज़्यादा मिला

यूं लगा कोई खज़ाना मिल गया
बीस पैसे का जब इक सिक्का मिला

बेवफ़ाई, बेबसी, ग़म, शाइरी
ज़िन्दगी से जो मिला अच्छा मिला
========================

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 9:01pm — 14 Comments

मैं तो भुला चुका था,मगर याद आ गया (ग़ज़ल)

22 1212 1122 1212



मैं तो भुला चुका था,मगर याद आ गया

आखिर में ऐ ख़ुदा,तेरा दर याद आ गया



दुनिया की ख़ाक छान के जब ठोकरें मिलीं

जो छोड़ के गया था,वो घर याद आ गया



जब फूल हर डगर पे ही मुझको बिछे मिले

काँटों पे जो किया,वो सफ़र याद आ गया



पतझड़ के रुत में भी था हरा एक वो दरख़्त

किसकी दुआओं का था असर, याद आ गया



पल-भर की बेखुदी ने सफीना डुबो दिया

साहिल पे नैनों का वो भँवर याद आ गया



तूफ़ाँ में मुझको थाम के अविचल खड़ा… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on April 12, 2016 at 8:50pm — 3 Comments

गुफ़्तगू हो रही सबकी दीवार से (ग़ज़ल)

212   212   212   212

ये है आलम अब आपस की तकरार से

गुफ़्तगू   हो   रही   सबकी   दीवार  से

फिर  हमें  कब रहा  डर किसी  वार से

लफ्ज़  अपने  हुए  जब से हथियार से

कुछ ख़बर  हो न पाई  हमें,  इस क़दर

जिस्म से  दिल निकाला गया  प्यार से

सोचिये,  स्वस्थ   तब   देश   कैसे  रहे

ख़ैरख़्वाह  आज  सारे   हैं  बीमार - से

जीत को जब बनाया है मक़सद,तो फिर

मैं  भला   क्यों  डरूं   एक - दो  हार…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on April 5, 2016 at 10:08pm — 1 Comment

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