माँ तुझे प्रणाम
धरती सी सहनशील
हिमालय सी शालीन
जीवन का द्वार
स्नेह की बौछार
बस दुलार ही दुलार
ममता का साकार रूप
प्रभात की पहली धूप
प्रारब्ध के पुण्य का फल
पहली साँस महसूस कराने वाली
अंगुल पकड़ चलाने वाली
पहली शिक्षा देने वाली
सबसे पहले आंसू पोंछने वाली
आत्मविश्वास जगाने वाली
जो सब है मेरे पास
उसी का दिया है अहसास
मेरी ख़ुशी मे मुझसे ज्यादा ख़ुश
मेरे गम में मुझसे…
ContinueAdded by vijayashree on April 15, 2013 at 8:07pm — 19 Comments
आज ज़रूरत है
अपने अंदर झाँकने की
आपसी द्वेष और क्लेश से
ऊपर उठने की
सामने पड़ी वस्तु पर तो
शायद हम पैर न रखतें हैं
पर दूसरों की भावनाओं को
पैरों तले कुचलने में न झिझकते हैं
जात -पात वर्ण भेद के मानकों पर
इंसानों को बाँटने में लग गए हैं
एक दूसरे को नीचा दिखाने की हर
प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह जुट गए हैं
पेड पत्थर कागज़ में तो
भगवान् का प्रतिरूप देख रहे हैं
भगवान् द्वारा…
ContinueAdded by vijayashree on April 13, 2013 at 11:28pm — 13 Comments
जीवनशैली
उन्हीं रास्तों पर चलते चलते
ना जाने क्यूँ मन उदास हो गया
सोचने लगी दिखावों के चक्कर में
जीवन कितना एकाकी हो गया
संपन जीवनशैली के बावज़ूद
इसमें सूनापन भर गया है
मैंने ड्राईवर से कहा –
क्या आज कुछ नया दिखा सकते हो
जो मॉल या क्लबों जैसी मशीनी ना हो
जहाँ जिंदगी साँस ले सकती हो
जो अपने जहाँ जैसी लगती हो
ड्राईवर बोला –
मैडम है एक जगह ऐसी
पर वो नहीं है आपके…
ContinueAdded by vijayashree on April 12, 2013 at 9:00am — 20 Comments
माँ की सीख पापा के संस्कार
फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार
माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना
पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना
माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना
पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना
पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना
और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......
पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है
पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं
बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत…
ContinueAdded by vijayashree on April 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
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