ठिठका तो था वो
एक पल को देहरी पर
और फिर निकल गया I
शायद सुन ली होंगी
घर के अन्दर से आती हुई आवाजें
मुट्ठी भींचे ,नारे लगाती,
भ्रामित भी था
कि बाहर से आ रही हैं
या घर के अन्दर से
कि बाहर की ऐसी ही आवाजों को
रोकने के लिये ही तो
ओढ़ी थी सफ़ेद मौत उसने
फिर ये घर के अन्दर से कैसे ?
समझ नहीं सका होगा कुछ
और फिर थक कर
निकल गया उस पार
हर भ्रम से दूर I…
ContinueAdded by pratibha pande on February 14, 2016 at 6:00pm — 5 Comments
उस गाँव के छोटे से स्टेशन में कोई गाड़ी नहीं रूकती थी , एक दो पैसेंजर गाड़ियों को छोड़कर I वो और जस्सी ,धड धड करके मुहँ चिढ़ाकर निकलती गाड़ियों को खुले मुहँ और फैली आँखों से देर तक देखते रहते थे I उन गाड़ियों के ठन्डे डब्बे जो कांच से एकदम बंद होते थे ,जस्सी को बहुत लुभाते थे I उन दोनों सात आठ साल के बच्चों की आँखों में एक ही सपना हुआ करता था कि ठंडे डब्बे वाली गाड़ी में बैठना है एक दिनI
स्टेशन की बैंच में बैठा वो इन्हीं पुरानी यादों में खोया था I आज स्टेशन का नज़ारा कुछ और…
ContinueAdded by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:40pm — 21 Comments
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