कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला
मॆरी बद्दुआ मॆं तासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला,
इस कुर्सी कॊ बबासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला !!१!!
ना चल सकॆ न बैठ पायॆ,सलीकॆ सॆ कभी,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
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कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,
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एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!
नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!
शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,
बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!
मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,
हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!
खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!
सियार कॊ सियासती,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)
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कभी पास आनॆ का और, कभी दूर जानॆ का ॥
सलीका अच्छा नहीं मॊहब्बत मॆं तड़फ़ानॆ का ॥१॥
काबिल न थॆ हम तॊ, इनकार कर दॆतॆ हुज़ूर,
फ़ायदा क्या हुआ इतना, अफ़साना बनानॆ का ॥२॥
जिसकॊ चाहा है वॊ, किसी और का हॊ गया,
बता ऎ ज़िन्दगी क्या करूँ, मैं इस ख़ज़ानॆ का ॥३॥
वफ़ा करॆ या जफ़ा उसकी,तबियत की बात है,
मॆरा तॊ वादा है उससॆ, फ़क्त वादा निभानॆ का ॥४॥
मँहगाई मॆं मॊहब्बत निभायॆ, क्या खाकॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 4:00am — 20 Comments
एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं
चलॊ किसी सॆ तॊ तहज़ीब उधार लॆं ,
गल्ती अपनी-अपनी हम स्वीकार लॆं !!१!!
दूसरॊं कॆ मकान मॆं झाँकनॆ सॆ…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 19, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
भारत माँ की जय बॊलॊ
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प्रॆम प्रणय कॆ अनुबंधॊं सॆ, मॆरा कॊई संबंध नहीं हैं !!
बिंदिया पायल कंगन कजरा, मॆरॆ तट बन्ध नहीं हैं !!
ना कॊई खॆल खिलौनॆ, ना गुब्बारॆ भर कर लाया हूँ !!
आज तुम्हारॆ चरणॊं मॆं, बस अंगारॆ लॆ कर आया हूँ !!
मिट्टी की अजब मिठास कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!
मॆरॆ जीवन की हर सांस कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!१!!
मॆरी कविता की बस कॆवल, इतनी ही परिभाषा है !!
श्रृँगार-सुरा कॆ बॊल नही यह,दिनकर वाली भाषा है !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 4, 2013 at 9:17pm — 10 Comments
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