बर्फ़ीला मौन रिश्ते की आत्मा के फूलों पर
झुठलाती-झूठी अजनबी हुई अब बातें
स्नेह के सुनहरे पलों में हाथों में वेणी लिए
शायद बिना सोचे-समझे कह देते थे तुम ...
" फूलों-सी हँसती रहो, कोयल-सी गाती रहो "
" अब आज से तुम मेरी ज़िम्मेवारी हो "
और मैं झुका हुआ मस्तक लिए
श्रधानत, कुछ शरमाई, मुस्करा देती थी
कोई बातें कितनी जल्दी
इ..त..नी पुरानी हो जाती हैं
जैसे मैं और हम और हमारी
आपस में घुली एकाकार साँसें…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2017 at 5:22pm — 9 Comments
तुम्हारे स्नेह की रंगीन रश्मि
मैं उद्दीप्त
गंभीर-तन्मय ध्यानमग्न
कहीं ऊँचा खड़ा था
और तुम
मुझसे भी ऊँची ...
वह कहकहे
प्रदीप्त स्फुलिंगों-से
हमारी वार्ताएँ मीठी
चमकती दमकती
आँखों में रोशनी की लहर-सी
तुम्हारी बेकाबू दुरंत आसमानी मजबूरी
बरसों पहले की बात
अचानक चाँटे-सी पड़ी
ताज़ी है आज भी
गुंथी तुमसे
उतनी ही मुझसे
बिंध-बिंध जाती है
वेदना की छाती को…
ContinueAdded by vijay nikore on January 2, 2017 at 8:40pm — 22 Comments
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