For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जयनित कुमार मेहता's Blog – January 2016 Archive (5)

सज़ा इश्क़ की बेवफ़ाई न दे (ग़ज़ल)

122 122 122 12



सज़ा इश्क़ की बेवफाई न दे

भले मौत दे पर जुदाई न दे



है मंज़ूर रहना हमें क़ैद में

वो आँखों से जबतक रिहाई न दे



ये इंसाफ़ कैसा है तेरा ख़ुदा

तू जाड़ा तो दे पर रजाई न दे



कहेगा जो सच तो कटेगी जुबां

छुपा बेगुनाही, सफाई न दे



मचा शोर कैसा शहर में, सदा

किसी को किसी की सुनाई न दे



बहुत दूर है मेरी मंज़िल अभी

सफ़र देख मेरा, बधाई न दे

===================



जयनित कुमार मेहता

(मौलिक व… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on January 28, 2016 at 8:58pm — 15 Comments

दिल जो टूटा तो वहम से निकले (ग़ज़ल)

2122 1122 22


उनकी महफ़िल से शरम से निकले
दिल जो टूटा तो वहम से निकले

आदमी से वो बने फिर शैतान
जैसे ही दैरो-हरम से निकले

मेरे लफ़्ज़ों में कोई बात नहीं?
आप शायर क्या जनम से निकले

आप खरगोश थे,उछले जी भर
हम तो कछुए-से कदम से निकले

आइना सामने जो आया तो
उसमें चेहरे कई हम-से निकले

मौत आए, तो ये ग़म का मारा
ज़ीस्त के ज़ुल्मो-सितम से निकले
======================
(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by जयनित कुमार मेहता on January 17, 2016 at 2:42pm — 7 Comments

रात की सूनी पगडंडी पर (अतुकांत कविता)

रात की सूनी पगडंडी पर

मैं और मेरी तनहाई

निकल पड़ते हैं अक्सर अनंत यात्रा पर

बहुरंगी सपनों के पीछे,नंगे पाँव

चाँद गवाह होता है इस सफ़र का

और हमसफ़र अनगिनत जुगनू

मुसलसल सफ़र के बीच

अचानक!सामने बहने लगती है एक नदी

मैं तैराकी से अनजान

डूबते-उभरते पहुँचता हूँ उस पार

चार कदम आगे बढ़ती है यात्रा

तभी, पगडंडी पर उग आते हैं जहरीले काँटें

लौट जाता हूँ हर बार

अपने प्रारब्ध को कोस कर

कौन बिछाता है जाल काँटों का?

क्या है,इस तिलस्मी नदी का… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on January 13, 2016 at 9:06pm — 4 Comments

तू जीता है,मगर ज़िंदा नहीं है (ग़ज़ल)

1222 1222 122



अगर दिल में तेरे करूणा नहीं है

तू जीता है, मगर ज़िंदा नहीं है



वो क्या समझे किसी की अहमियत को

कि जिसने कुछ,कभी खोया नहीं है



तेरी आँखों के मयखाने में बैठा

कहे ये दिल,कोई तुझ सा नहीं है



उगाते हैं जो दाना,उनके घर में

कभी चावल,कभी आटा नहीं है



मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे

अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है



मेरी मंज़िल खड़ी है जिस जगह पर

वहां तक रास्ता जाता नहीं… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on January 10, 2016 at 10:14pm — 23 Comments

बीज नए पुष्पों के बोए साल नया (ग़ज़ल)

22 22 22 22 22 2



सबके मन की गांठें खोले साल नया

बिखरे रिश्तों को फिर जोड़े साल नया



भूखे को दे रोटी, निर्धन को धन दे

सबकी खाली झोली भर दे साल नया



ग़म से आहत दिल डूबा है आशा में

शायद थोड़ी खुशियाँ लाए साल नया



नभ में कदम बढ़ाता वो सूरज ही है

निकल पड़ा है या मुस्काए साल नया



मधु-हाला निःशुल्क मिलेगा मालिक से

कहता 'हरिया' जल्दी आए साल नया



जीवन का हर क्षण हो जाए सुरभित "जय"

बीज नए पुष्पों के बोए साल… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on January 1, 2016 at 7:56pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2022

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service