विगत -गत
कल कोने में दुबके सहमे
डरे डरे कुछ लम्हे पाए
मैंने जा कर के सहलाया
झूठ सही पर जा बहलाया
कि मेरे होते न यूं डरो
परिचय दे ले बात करो
सुन कर पल ने ली अंगडाई
व्यंग बुझी सी हँसी थमाई
बोला कलंक से कलुषित हो
आत्मग्लानि से झुका हुआ था
विगत साल हूँ रुका हुआ था
उत्सुक था क्या नया करोगे
मुझे भेज जब नया…
ContinueAdded by amita tiwari on January 24, 2018 at 5:23am — 5 Comments
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