For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amit Tripathi Azaad
Share on Facebook MySpace

Amit Tripathi Azaad's Friends

  • Ravi Shukla
  • Dr.Prachi Singh
  • मिथिलेश वामनकर
  • योगराज प्रभाकर
 

Amit Tripathi Azaad's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Jaipur
Native Place
Allahabad
Profession
Writing

samast hindi dhurandhar ,sammanniy,mahamahim mitro ko mera sadar abhinandan 

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 4:52pm on February 1, 2016, Amit Tripathi Azaad said…
श्रेष्ठ अग्रज रवि जी को मेरा नमन स्वीकार हो
At 1:36pm on February 1, 2016, Ravi Shukla said…

आदरणीय अमित जी आपका स्‍वागत है

Amit Tripathi Azaad's Blog

मेरे महबूब

मेरे महबूब सपनों से हक़ीक़त बन तू आ जाए

मेरा उजड़ा हुवॉ जीवन मेरी जाँ फिर सवर जाए



मुझे अहसास अब होने लगा है इश्क़ में तेरे

कहीं ना ज़िन्दगी तेरी ही गलियों में गुज़र जाए

जिसे हो जुस्तजू तेरी वो बेचारा किधर जाए

जिए वो ज़िंदगी अपनी या आहें भर के मर जाए

मैं अक्सर आह भरता हूँ तेरे दीदार के ख़ातिर

झलक तेरी मिले गर तो मेरा जीवन सँवर जाए

तेरी गलियों की मिट्टी भी मुझे जन्नत से प्यारी है

चले गर साथ हम दोनों मुहब्बत भी निखर…

Continue

Posted on April 22, 2016 at 10:03am — 6 Comments

चेहरा तेरा चाँद का टुकड़ा

चेहरा तेरा चाँद का  टुकड़ा

भौहें तनी कमान हैं क्या

इन आँखों में मैं मर जाऊँ

होंठों का तिल शान है क्या..2

तेरे तन की ख़ुशबू लेकर

फूल चमन में खिलते हैं

शायर तेरे हुशनो जवाँ की

दिल में किताबें लिखते हैं

उठी नज़र फिर झुक जाए तो

ढल जाती ये शाम है क्या

इन आँखों पे ...

तेरे लबों की बात करूँ तो

खिले कमल शर्माते हैं

तेरे क़दम जो पड़े जमी पे

शहंशाह झुक जाते हैं

तेरा खनकता स्वर गूंजा या

वीना की कोई तार है…

Continue

Posted on April 19, 2016 at 6:14pm

मेरे सपनों का गाँव

मेरे सपनों में अक्सर ही

आकर मुझे जागता है

गाँव मेरा मुझको फिर यारों

वापस मुझे बुलाता है

वो खलिहानों की पगडंडी

सड़क बन गई काली है

दीपक भी अब नहीं रह गए

लाइट चमक निराली है

जिनके ख़ातिर दूर गया तू

वो सब मुझे दिखाता है

गाँव मेरा ....

मिट्टी के घर नहीं रहे अब

ईंटों के माकान बने

निर्मल निश्चल दिल वाले

अब पत्थर के इंसान बने

दिन प्रति दिन उन पत्थर में

इंसान नज़र ना आता है

गाँव...

हरे भरे तालाब सूखकर खेलों के…

Continue

Posted on April 19, 2016 at 1:09pm — 3 Comments

"माँ शारदे वंदना "

भवदिव्य भाव मनोरमां,झन झनक झन झनकार दे

जय जयति जय जय ,जयति जय जय जयति जय माँ शारदे

कमलासिनी वरदायिनी माता हमें वरदान दे

जय जयति ........

चरणों में तेरे हैं समर्पित ज्ञान की ले याचना

वेदों का कर दो दान माते कर रहे हम प्रार्थना

माँ हम फसें मझधार में भवतारिणी तू तार दे

जय जयति.......

माँ छेड़ दो वो राग जिससे स्वरमयी धारा बहे

लोकों में तीनो मातु तेरी लोग सब जै जै कहें

स्वरदायनी माँ स्वरस्वती स्वर का हमें अधिकार दे

जय…

Continue

Posted on February 12, 2016 at 10:00am — 1 Comment

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service