For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-52 की समस्त संकलित रचनाएँ

सु्धीजनो !
 
दिनांक 15 अगस्त 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 52 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए तीन छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा, रोला और कुण्डलिया छन्द

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

जो प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करने में सक्षम नहीं थीं, उन प्रस्तुतियों को संकलन में स्थान नहीं मिला है. 

फिर भी, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

*****************************************************************************************************

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी

संशोधित रचनाएँ  ............   

दोहा छंद

शुभ्र वस्त्र और टोपियाँ, चर्चा करते पाँच। 

देश की आज़ादी पर, कभी न आये आँच॥  

झंडा झुके न देश का, फहरे बारह मास।

आतंकी हैं घात में,  सभी पर्व है पास॥

 

लिए तिरंगा हाथ में,  युवा वर्ग में जोश।
सीमा पर ना चूक हो,  रहें न हम मदहोश॥ 

 

हर आतंकी पाक का, खाएगा अब मात।

आपस में हम एक हैं, सर्व धर्म सब जात॥


कुण्डलिया छंद

हर घर में हो जागरन, सीमा पर दिन रात।

आतंकी अब पाक के, कर न सके उत्पात॥
कर न सके उत्पात, हमारी जिम्मेदारी।
इक छोटी सी चूक, पड़े ना हम पर भारी॥
टोपी वस्त्र सफेद , ध्वजा है पाँचों कर में। 
रहे सुरक्षित देश, यही चर्चा हर घर में॥

रोला छंद

हम समझें ये बात,  और सब को समझायें। 

आतंकी औ’ पाक , हमेशा हमें लड़ायें॥
आये कभी न आँच, सफेद हरा भगवा पर।

सब धर्मों के लोग, रहें मिलकर जीवन भर॥                    
................
पाँच युवक गम्भीर, सभी को भारत प्यारा। 

टोपी श्वेत लिबास, हाथ में झंडा न्यारा॥ 

करें भ्रांतियाँ दूर,  किसी को न हो शिकायत।

शांति और सद्भाव, देश की यही रवायत॥

**************************************************************

आदरणीय श्री सुनील जी 

रोला छंद 

हिन्द देश है आज, सुवासित और सुसज्जित
आजादी के पर्व, में सभी हैं उत्साहित 

जाग गये हम आज, सुबह का गजर सुने बिन      (संशोधित)
आजादी का राग, हमें गाना था भर दिन

तीन वर्ण के बाद, न कोई वर्ण सुहाता
हरा श्वेत उपरान्त, सिर्फ़ केसरिया भाता
रक्त-रसायन युक्त, हुई धरती तब जाकर
उभरे तीनों रंग, चमक अंतहीन पाकर

चलो! उठें भी बंधु, उड़ायें अब परचम हम
दुनिया देखे आज, दिखायें जो निज दमखम
देशप्रेम के गीत, दिशाऐं गातीं हैं वो
सन सैतालिस बीच, सुरों में गायीं थीं जो

*********************************************************************

सौरभ पाण्डेय

दोहे
====
भिन्न-भिन्न के फूल ज्यों, सदा बाग़ की शान 

पंथ सभी हैं सम्पदा, मालिक हिन्दुस्तान

अपनापन की ज़िन्दग़ी, कुदरत भी वल्लाह 
दिया वतन ने जो हमें, नेमत है अल्लाह

अपनापन हर सू रहे, मिलजुल हो निर्वाह 

प्रतिपल अपने देश हित, बना रहे उत्साह

अपने हाथ बलिष्ठ हों, थामें हुए तिरंग 
वतन हमारी शान है, सारा आलम दंग

बीत गई तारीख़ की, बातें करे अगस्त
कथा सुनाता देश की, दिखा तिरंगा मस्त

इक जैसे सुख-दुख हमें, किन्तु भिन्न बर्ताव 
अलग-अलग है मान्यता, लेकिन प्रखर जुड़ाव

************************************************************

आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी

पाँच दोहे

*********

हाथ तिरंगा थाम के , बैठे बालक पाँच

मन कहता इस भाव को , आये ना अब आँच 

 

राजनीति ना घेर ले , इनके कोमल भाव

दूध ख़टाई ना पड़े , बचा रहे सद्भाव

 

आतंकी ये देख कर , फिर ना करे उपाय

बालक मन बहके नहीं , मन मे संशय आय

 

इच्छा बदले भाव में , भाव बने तब कर्म

थामें झंडा बस तभी , देश प्रेम हो धर्म  

 

कोई पकड़े शान से , कोई देत जलाय

रे मन चिंता देश की , क्यों ना जुझको खाय

********************************************************************

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

(दोहा गीत)

झंडा है जो हाथ में, बतलाये पहचान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

इस माटी की सब उपज, 

भारत की संतान.

कैसे नीचा एक फिर,

कैसे एक महान.

एक बराबर सब यहाँ, भारत माँ की शान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

माटी से हमको रहा,

आप बराबर प्यार

ऐसे में फिर क्यों भला,

दूजे सा व्यवहार

मन से तौलों जो कभी, हम सब एक समान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

जात पात से है बड़ा,

मानवता परिवेश.

इस पर सब कुर्बान है,

ऐसा भारत देश

साँसों में सबके बसा, ये है सबकी जान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

*********************************************************

आदरणीय मनन कुमार सिंहजी

दोहा गीत

आया है नवल विहान,
ले लो झंडा तान,
ले यह तुम्हारा मान,
यही नया दिनमान।
आया है नवल विहान!1


हो नहीं दिल में दरार,
जां हो केवल जान।
साँस कहे तेरी कथा,
मधुर-मधुर हो तान।
आया है नवल विहान!!2


आ करें आगाज नया,
बिसरा सब संधान।
आँखों-आँखों बात हो,
नहीं कहेंगे कान।
आया है नवल विहान!!3

*************************************************

आदरणीय रमेश कुमार चौहानजी

दोहा गीत

झूमे बच्चे हिन्द के, 

लिये तिरंगा हाथ ।

हम भारत के लाल है, करते इसे सलाम ।
पहले अपना देश है, फिर हिन्दू इस्लाम ।।
देश धर्म ही सार है, बाकी सभी अकाथ । झूमे......

करे यशगान देश के, मिलकर बच्चे पांच ।।
हॅस कर देंगे जान हम, आये ना कुछ आॅच ।।
बैरी समझे क्यों हमें, हम हैं यहां अनाथ । झूमे......

मेरा अपना देश है, मेरे अपने लोग ।
जल मिट्टी वायु के, करते हम उपभोग ।।
कण-कण में इस देश के, रचे बसे हैं साथ । झूमे......

समरसता सम भाव का, अनुपम है सौगात ।
ईद दिवाली साथ में, सारे जहां लुभात ।।
हिन्दी उर्दू बोल है, अपने अपने माथ । झूमे......

********************************************************************

आदरणीय लक्ष्मण धामी

दोहा छन्द

लिए  तिरंगा हाथ  में,  कहते  बच्चे पाँच
देश प्रेम के भाव को, मजहब से मत जाँच  /1

पूजा पाठ नमाज तो, बस निजता की बात
सबसे   ऊपर   देश   है, कैसे  भी  हालात  /2

मिला हमें भी है तनिक, मजहब से यह ज्ञान
भारतवासी  रूप  में,  रखें  देश  का  मान /3

भले जात से तुम कहो, अफजल और कसाव
दोनों  धब्बे  कौम  पर,  उनसे   नहीं  लगाव  /4

दाउद से तुम जोड़ कर, मत कहना गद्दार
अगर मिलेगा वो  कहीं, हम  ही देंगे मार /5

वंशज  वीर  हमीद के, हम  हैं सच्चे रिंद
कहते बंदे मातरम्, जय  भारत जय हिंद   /6

*********************************************************************

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेयजी

दोहा

अड़सठ का लो हो गया मेरा देश महान
हैप्पी बड्डे टू यू सब मिल कर गाएं गान

अल्प बहु के मुद्दों को दे दें पूर्ण विराम
जाली की या खादी की सब टोपी एक समान

अजब गजब इस देश के अजब गजब हैं रंग
दांत तले उंगली दिए दुश्मन भी हैं दंग

साजिश रचने में लगा दुश्मन सरहद पार
बाज नहीं आता खाके बार बार वो मार

घर के अन्दर भी छिपे दुश्मन कुछ हैं आज
दिल को जिनके चीरता प्रेम प्यार का साज

आज़ादी पर हम अपनी तभी करेंगे नाज़
कोई भी बच्चा अपना भूखा न सोये आज

*******************************************************************

आदरणीया राजेश कुमारीजी

रोला गीत

बैर भाव को त्याग,रखें  बस तन-मन चंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

बच्चे बैठे चार ,लिए हाथों में झंडा

गपशप में हैं व्यस्त,हँसी का कोई फंडा

बचपन है मासूम ,दिलों में निर्मल गंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

उजले हैं परिधान ,टोपियाँ सिर पर उजली

मुख पर है मुस्कान,न कोई कलुषित बदली

बाल हृदय से दूर ,सुलगता  द्वेष पतंगा  

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

धर्म वर्ग के भेद, रहित होते हैं बच्चे  

तोड़ें हम ही लोग,सूत्र होते जो कच्चे   

जाति पाँति के बीज ,उगा भड़काते दंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

आजादी का पर्व,मनाता भारत मेरा  

देश प्रेम का भानु,डालता मन में डेरा     

सभी मनाते जश्न, मसूरी या दरभंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

ध्वज है अपनी जान, इसी से चौड़ा सीना  

भारत की ये शान ,इसी पर  मरना जीना   

हम हैं इसके लाल , न लेना हम से पंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

(संशोधित)

*****************************************************************

आदरणीया डॉ. नीरज शर्माजी

दोहे

श्वेत वस्त्र धारण किए , सिर पर टोपी गोल।

लिए तिरंगा हाथ में ,जय भारत की बोल॥

गहन मंत्रणा कर रहे ,  बैठे बालक पांच।

अब भारत की शान पर,  कभी न आए आंच॥

बालक तो कोमल मना, और न मन में मैल।

हंसते बतियाते हुए , लगें छबीले छैल॥

धर्म , जात के नाम पर , बिखर रहा है देश।

नहीं संभाला  तो  इसे , बढ़  जाएगा क्लेश॥ 

धीरे - धीरे ही सही , बदल रहा माहौल।।

छोटी-छोटी बात पर , जो जाता था खौल॥

आजादी पाए, हुए  , भैया अड़सठ वर्ष।

दुविधा मुंह बाए खड़ीं , बुझी न अब तक तर्ष॥

वीरों के बलिदान से , भारत हुआ स्वतंत्र।

चलो जपें हम भी वही , देश-भक्ति का मंत्र॥

***************************************************************************

भाई सचिनदेवजी 

दोहे

सिर पर टोपी हाथ में, भारत का सम्मान

आँखों मैं फैली चमक, मुख पर है मुस्कान     II1II

  

मजबूती से देश का, लिया तिरंगा थाम

धीरे-धीरे बांटते,  आपस मैं पैगाम                 II2II

 

यारो मिलकर ठान लें, अपने मन में आज   

झंडे की हर हाल में, हमको रखनी लाज        II3II

  

गिनती मैं हम पांच हैं, मुटठी के हम रूप  

काम करेंगे देश की, मर्यादा अनुरूप         II4II   (संशोधित)

हमको तो बस आज से, ये रखना है याद 

सबसे पहले है वतन, सब हैं उसके बाद        II5II

 

इसको छूने का हमें, आज मिला सम्मान      II6II

हम सबकी है साथियो, झंडे से पहचान 

 

हिन्दू-मुस्लिम-सिख यहाँ, ईसा धरम अनेक

लेकिन झंडे के तले, भारतवासी एक             II7II 

 

रखना गीता हाथ में, चाहे तुम कुरआन

लेकिन सब रखना सदा, दिल मैं हिन्दुस्तान  II8II  

***********************************************************************

आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी 

कुण्डलिया

बातें करते मित्र दो, सुनते दिखते तीन |

सबके वस्त्र सफ़ेद हैं, ध्वज लेकिन रंगीन ||

ध्वज लेकिन रंगीन, सभी की शान बढाता,

बैठे लिए किशोर, राष्ट्र-ध्वज है फहराता,

ध्वज के तीनों रंग, सदा सबका मन हरते,

धर्म चक्र के संग, धर्म की बातें करते ||

 

 

मन को पावन ही करें, उन बच्चों के भाव |

जिनने थामा राष्ट्र-ध्वज, लेकर पूरा चाव ||

लेकर पूरा चाव, तिरंगा वे फहरायें

भारत माँ का प्रेम, दुआ जन-जन की पायें,

रहे सरसता नेह , बरसता जैसे सावन,

गंगा की हर बूँद , बना दे मन को पावन ||

दोहे 

सभी श्वेत हैं टोपियाँ, लेकिन अलग विचार |

हर मुख की मुस्कान का, कहता है आकार ||

 

रहें तिरंगे के तले, मिलजुल कर हम साथ |

बैर द्वेष को त्याग कर, ले हाथों में हाथ ||

 

संस्कृति का इस देश की, करता जग गुणगान |

नवयुवकों से आस है , और बढाएं मान ||

*********************************************************************************

आदरणीय रवि शुक्लजी

दोहा गीत

बैठे बालक पांच ये, हाथ तिरंगा थाम

मिलकर देना साथियो, चर्चा को आयाम

 

विधवा की इक मांग सा

सरहद का संदेश

आज़ादी के नाम पर

अलग हुआ इक देश

उसका फल हम पा रहे कहां मिला आराम ?

 

अमन चैन की बात हो

या स्‍वतंत्र अभियान

दोनो ही अविभाज्‍य है

मूल मंत्र को जान

मंजि़ल को पाए बिना हमें कहां विश्राम ।

फिर से आया लौट कर

पंद्रह आज अगस्‍त

आजादी आनंद है

इसी सोच में मस्‍त  

हमें किसी से क्‍या गरज तू रहीम मैं राम

 

नियत समय अब आ गया

देना मेरा साथ

अलम उठा कर हम चलें

छोड़ न देना हाथ

नहीं किसी के भी रहें गर्दिश में अय्याम ।

 

देश प्रेम का राग हो

मनभावन हो गान

भाव यही अभिव्‍यक्त हो

भारत देश महान

रज कण चंदन शीश धर करते इसे प्रणाम ।

******************************************************************

आदरणीय जवाहर लाल सिंहजी

दोहे

बाल मंडली देख कर, मन में उठी उमंग.

हम भी होते बाल गर, खूब जमाते रंग.

क्यों बांटे मजहब हमें, चलें सभी के साथ

देश बढ़े आगे सदा, मिले हाथ से हाथ

भारत देश महान है, बच्चे इनकी शान

इसी तिरंगा के लिए, दिया बीर ने जान 

राम रहीम कबीर हैं, भारत की पहचान

रंग बिरंगे फूल हैं, गुलशन हिन्दुस्तान

 

कुण्डलियाँ

देखो आज सलीम को, मन में है उत्साह,

कादिर भी है साथ में, साबिर भरता आह!

साबिर भरता आह, कबीरा गीत सुनाये    

चारो से ही आज, धरा पर मस्ती छाये

इन बच्चों को देख, सभी मिल रहना सीखो

निश्छल है मुस्कान, तिरंगा कर में देखो  

 

सपने बुनते बीतते, बाल युवा के आज

फिर से आया है भला, देखो नया सुराज 

देखो नया सुराज, मित्र हम छोटे छोटे

मन में है उत्साह, तनिक भी ना है खोटे

ठगा बहुत ही बार, कहाते थे जो अपने

क्या पूरा कर पाय, दिखाये थे जो सपने 

(संशोधित)

*************************************************************************

आदरणीय सुशील सरनाजी

दोहा छंद 
१. 
आज़ादी   का   पर्व   है  ,  आज़ादी    के  रंग 
पाँचों मुख पर खिल रही ,इक स्वाधीन उमंग

२. 
फर्क नहीं है धर्म का, सब मिल रहते संग
भूल  गए  सब  प्रेम  में , कैसी होती जंग 
३. 
वीरों के बलिदान का ,सदा करो गुणगान 
कभी  तिरंगे  का  न हो ,भूले से अपमान

४. 
भारत की इस भूमि को, चूमो बारम्बार 
हर कतरे से खून के , हुआ धरा शृंगार     (संशोधित)

५. 
आज़ादी में खिल रहे ,चेहरे सब इक सँग 
लिये  तिरंगा  हाथ  में, खुशियों के हैं रंग

***************************************************************************

Views: 4442

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ भाईजी

स्वयं पर आश्चर्य हुआ कि आपके बताने से पूर्व इस बड़ी गलती की ओर मेरा ध्यान क्यों नहीं गया ! !  धन्यवाद भाईजी।

सात दिन बाद कम्प्यूटर खोलने का अवसर मिला। निम्न संशोधित को हरे रंग से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।   

टोपी श्वेत लिबास, हाथ में झंडा न्यारा॥

सादर   

समस्त आदरणीय / आदरणीया रचनाकारों को बहुत - बहुत बधाई !!

जय-जय 

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ जी, आयोजन के श्रम-साध्य और महती संकलन पर हार्दिक बधाई आपको ! साथ ही आयोजन में प्रस्तुत मेरे दोहों मैं से दोहा क्रमांक 4 को इस प्रकार संशोधित करने का अनुरोध प्रार्थनीय है ..... 

गिनती मैं हम पांच हैं, मुटठी के हम रूप  

काम करेंगे देश की, मर्यादा अनुरूप         II4II  
( संशोधित ) 

भाई सचिनदेवजी, आपकी संशोधित पंक्ति अत्यंत सार्थक और उद्येश्यपूर्ण भाव को अभिव्यक्त करती हुई है. 

धन्यवाद

गिनती मैं हम पाँच हैं  को आप अवश्य ही गिनती में हम पाँच हैं  कहना चाह रहे हैं.

शुभ-शुभ

 

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी, आपने बिलकुल सही कहा " गिनती में हम पांच हैं " ही कहना चाहा था, किन्तु अक्सर मैं और में का अंतर निगाहों मैं छल कर जाता है, लेकिन सिर्फ हमारी आपकी तीक्ष्ण नजरों से नहीं :) :) - आपकी इस शार्प दृष्टि के लिए आपका विशेष आभार आदरणीय ! 

ऐसी बहुतेरी बातें और कई-एक विन्दु हैं, सचिन भाई. कई बार जानबूझ कर ’महटिया’ देता हूँ. कि, लोग ऐसे ही बिदकते रहते हैं. मारे झुंझलाहट के संवाद ही न बन्द कर दें .. :-))

परन्तु, जो आग्रही और संलग्न अभ्यासी है उनको कुछ कहना रुचता है, क्योंकि वे सतत अभ्यास के प्रति उत्साहित और लगनशील हुआ करते हैं.

शुभेच्छाएँ. 

आपके प्रत्येक सुझाव और मार्गदर्शन का सदैव ह्रदय से आभार आदरणीय ! 

शुभेच्छाएँ एवं हार्दिक धन्यवाद 

सभी संकलित रचनाओं को फिर से पढकर आयोजन की याद आ गई । बहुत ही सार्थक और सफल आयोजन रहा इस बार भी । बडा काव्यमय छंदमय बयार चलती रही । देशप्रेम से ओत प्रोत रचनाएँ विविध रंगों में छंदों को बरसाती रही । रसमय प्रतिक्रिया और छंदों के जबाव भी छंदों से ! ये दृश्य कहीं और देखने को आजतक नहीं मिला है ओबीओ के सिवाय । इन मनोहारी पलों को हम तक पहुँचाने के लिए आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के साथ समस्त ओबीओ परिवार को मेरा बारम्बार नमन ।

किसी आयोजन का संबल सक्रिय सदस्य ही होते हैं, जिनकी रचनाओं और सार्थक टिप्पणियों से आयोजन सदिश बना रहता है तथा इसके उद्येश्य की भी पूर्ति होती है. छान्दसिक रचनाओं के आयोजन में आपका पाठक के तौर पर उत्साहवर्द्धन करना तथा रचनाओं के मर्म तक पहुँचना विशेष आशान्वित कर रहा है, आदरणीया कान्ताजी.

आपका सादर धन्यवाद

पुनः पुनः समस्त रचनाओं को पढ़कर वर्तनीं/व्याकरण  सम्बन्धी अशुद्धियों एवं शिल्पगत कमियों के इंगित करने का श्रमसाध्य कार्य एक समर्थ व कुशल काव्य रचनाकार ही कर सकता है | इसके लिए शब्द नहीं मेरे पास |obo को समृद्ध करने में आपका योगदान अतुलनीय है |

मेरे द्वारा अंतिम दिन प्रस्तुत दोहें\रोला/कुण्डलिया हो सकता है चित्रानुरूप न लगी हो ? नेट  काम नहीं कर रहा था, अतः टिप्पणिया भी रविवार को ही देख पाया था | आपकी टिपण्णी पढ़ कर विशेषतः "लेकर" शब्द पर दी गई  जानकारी  की  लिए  आपका हार्दिक  आभार  आदरणीय |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं टंकण त्रुटि…"
14 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
"अधूरे ख्वाब (दोहा अष्टक) -------------------------------- रहें अधूरे ख्वाब क्यों, उन्नत अब…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
"निर्धन या धनवान हो, इच्छा सबकी अनंत है | जब तक साँसें चल रहीं, होता इसका न अंत है||   हरदिन…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।  दुर्वयस्न को दुर्व्यसन…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर रोला छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)

कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।ब्रह्मसरोवर तीर पर,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service