For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतियोगिता परिणाम : "चित्र से काव्य तक" अंक -2

 

नमस्कार साथियों ! 

"चित्र से काव्य तक" अंक-2 प्रतियोगिता से संबधित निर्णायकों का निर्णय मेरे पास आ गया है जिसे आप सब तक पहुँचाने के दायित्व का निर्वहन करने का एक प्रयास कर रहा हूँ | यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि लगातार पाँच दिनों तक चली यह प्रतियोगिता पछले अंक-१ की तुलना में बड़ी ही उत्साहवर्धक रही जिसके अंतर्गत अंत तक पिछली ५१६ रिप्लाई की तुलना में कुल १०२५ रिप्लाई आयीं  हैं जिसमें अधिकतर गज़ल,  कुंडली, घनाक्षरी, रुबाई, व छंदमुक्त सहित अनेक विधाओं में मनभावन रचनाएँ प्रस्तुत की गयीं| इस बारे में सबसे खास बात तो यह है कि भाई योगराज प्रभाकर जी द्वारा ओ बी ओ पर पहली बार मुकरियां पेश की गयीं जो अधिकतर मित्रों द्वारा सराही गयीं  इसके अतिरिक्त यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि प्रतिभागियों में एक ओर जहाँ पर आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी नें अंत तक अपनी बेहतरीन टिप्पणियों के माध्यम से सभी प्रतिभागियों व संचालकों में आपसी संवाद कायम रखा तो वहीं दूसरी ओर आदरणीया शारदा मोंगा जी नें अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से चित्र आधारित अभिव्यक्ति देने का प्रयास तो किया ही साथ-साथ उन्होंने कृष्ण-भक्ति भाव को इस चित्र से जोड़ते हुए का अपनी रचनाधर्मिता का अद्वितीय उदाहरण भी प्रस्तुत किया........ उनके द्वारा अंत में पोस्ट की गयी रचना "सिया,शोकग्रस्तिता एकाकिनी......."  सभी मित्रों के मन को बहुत ही भायी |  इस प्रतियोगिता के आयोजकों एवं संचालकों यथा भाई योगराज जी, भाई बागी जी,  आचार्य "सलिल" जी, भाई तिलक राज कपूर जी, भाई राणा जी, भाई धर्मेन्द्र जी आदि सहित अन्य मित्रों नें भी प्रतियोगिता से बाहर रहकर मात्र उत्साहवर्धन के उद्देश्य से ही अपनी-अपनी स्तरीय रचनाएँ तो पोस्ट कीं ही साथ-साथ अन्य साथियों की रचनायों की खुले दिल से समीक्षा व प्रशंसा भी की जो कि इस प्रतियोगिता की गति को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करती रहीं|  इस प्रतियोगिता के अंतर्गत पोस्ट की गयीं प्रायः अधिकतर रचनाएँ दर्शाए गए चित्र पर काफी हद तक आधारित थीं फिर भी ऐसा देखा गया कि बहुत सी कवितायेँ स्तरीय तो थीं परन्तु वह चित्र की आत्मा तक नहीं पहुँच सकीं........आशा है कि माह जून में होने वाली अगली प्रतियोगिता में इस दिशा में अपेक्षित सुधार आएगा...... वास्तव में हमनें  इस  प्रतियोगिता को एक ऐसे साहित्य-यज्ञ की तरह महसूस किया है जिससे उत्पन्न सुगन्धित काव्यमय वातावरण के संपर्क में आने पर मित्रों के हृदय से साहित्य सरिता की अगणित काव्य धाराएँ फूट पडतीं हैं |

इस साहित्य-यज्ञ में काव्य रूपी आहुतियाँ डालने के लिए  के लिए सभी ओ बी ओ मित्रों हृदय से का बहुत-बहुत आभार...

 

चित्र की आत्मा तक पहुँचती हुई व दृश्य में अदृश्य को चित्रित करती हुई  अनमोल रचना  

: आचार्य संजीव वर्मा सलिल 

//एक कविता- मैं समय हूँ
संजीव 'सलिल'
*
मैं समय हूँ, साथ उनके
जो सुनें आवाज़ मेरी.
नष्ट कर देता उन्हें जो
सुन न सुनते करें देरी.
चंद दशकों बाद का
संवाद यह सुन लो जरा तुम.
शिष्य-गुरु की बात का
क्या मर्म है गुन लो जरा तुम.
*
''सर! बताएँ-
घास कैसी और कैसी दूब होती?
किस तरह के पेड़ थे
जिनके न नीचे धूप होती??''
*
कहें शिक्षक- ''थे धरा पर
कभी पर्वत और टीले.
झूमते थे अनगिनत तरु
पर्ण गिरते हरे-पीले.
डालियों की वृक्ष पर
लंगूर करते खेल-क्रीडा.
बना कोटर परिंदे भी
रहे करते प्रणय-लीला.
मेघ गर्जन कर बरसते.
ऊगती थी घास कोमल.
दूब पतली जड़ें गहरी
नदी कलकल, नीर निर्मल.
धवल पक्षी क्रौंच था जो
युग्म में जल में विचरता.
व्याध के शर से मरा नर
किया क्रंदन संगिनी ने.
संत उर था विकल, कविता
प्रवाहित नव रागिनी ले.
नाचते थे मोर फैला पंख
दिखते अति मनोहर.
करें कलरव सारिका-शुक,
है न बाकी अब धरोहर.
*

करी किसने मूढ़ता यह?

किया भावी का अमंगल??
*

क्या बताऊँ?, हमारे ही
पूर्वजों ने किया दंगल.
स्वार्थवश सब पेड़ काटे.
खोद पर्वत, ताल पूरे.
नगर, पुल, सडकें अनेकों
बनाये हो गये घूरे.
नीलकंठी मोर बेबस
क्रौच खो संगी हुई चुप.
शाप नर को दे रहे थे-
मनुज का भावी हुआ घुप.
विजन वन, गिरि, नदी, सरवर
घास-दूबा कुछ न बाकी.
शहर हर मलबा हुआ-
पद-मद हुआ जब सुरा-साक़ी.
*
समय का पहिया घुमाकर
दृश्य तुमको दिखाता हूँ.
स्वर्ग सी सुषमा मनोरम
दिखा सब गम भुलाता हूँ.''
*
देख मनहर हरीतिमा
रीझे, हुई फिर रुष्ट बच्चे.
''हाय! पूर्वज थे हमारे
अकल के बिलकुल ही कच्चे.
हरीतिमा भू की मिटाकर
नर्क हमको दे गये हैं.
क्षुद्र स्वार्थों हित लड़े-मर,
पाप अनगिन ले गये हैं.
हम तिलांजलि दें उन्हें क्यों?
प्रेत बन वे रहें शापित.''
खुली तत्क्षण आँख कवि की
हुई होनी तभी ज्ञापित..
*
दैव! हमको चेतना दो
बन सकें भू-मित्र हम सब.
मोर बगुले सारिका शुक
घास पौधे हँस सकें तब.
जन्म, शादी अवसरों पर
पौध रोपें, तरु बनायें.
धरा मैया को हरीतिमा
की नयी चादर उढ़ायें.
*


प्रतियोगिता का निर्णय कुछ इस प्रकार से है...

प्रथम स्थान: श्री सौरभ पाण्डेय जी
मैं क्या अब?

था मैं नभ
था धरती मैं ही...
मन-उर, पल-परिवेश सभी
हर बंधन से था मुक्त विचरता
राग-रागिनी,
रुन-गुन-धुन सुन,
वन-उपवन में उन्मन-उन्मन
मन-मोहन था, थिरका करता
जोश भरे परवाज़ लिये...
*
आज वही पर
कहीं नहीं हूँ
अपनेपन से दूर कहीं हूँ
खेल खेलना, ठुनक-मचलना..
भूला ठुमकी, फुदक-मचलना

यादें.. यादें.. कितनी यादें

यादें जीना और पिघलना
बोशीदा दिल, धज्जी-धज्जी
बेरौनक अंदाज़ लिये.. .
*
अहह..!
विरही यादें सीता देखो
क्रौंच एकाकी जीता देखो
नेपथ्य हुआ अब रीता देखो... .. .
धरती की सुख-सुविधा,

सुषमा की रौनक को रहा समर्पित
मानव वोही भूल मनुजता..

लोभ-लाभ की आँच उबलता
विद्रुपता की परम कामना
बड़वानल-सी स्वार्थ-साधना
लूट घोंसला, कोटर-गह्वर,
हरके घर को करके बेदर
उन्मादी अंदाज़ लिये...

क्यों मानव कर्कश साज़ लिये..

क्यों मानव कर्कश साज़ लिये... ?

द्वितीय स्थान : श्री अरुण पाण्डेय "अभिनव" जी
छिटपुट : - मोर हूँ

कंक्रीटों का ये जंगल

और हरियाली है कुंद

ठूंठ की लहरें चतुर्दिक

घोर नाउम्मीदी की धुंध !

है भयानक दौर

और मैं ढूँढता एक ठौर हूँ

मैं तुम्हारे शहर में एक चोर हूँ

मैं मोर हूँ !

घर हमारा अब तुम्हारा

हो गये हम बे सहारा

मूक हूँ समझो इशारा !

रात अंधियारी

न समझो मैं चमकती भोर हूँ

मैं मोर हूँ !!//


प्रथम व द्वितीय स्थान के उपरोक्त दोनों विजेताओं को सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से बहुत-बहुत बधाई...

उपरोक्त दोनों विजेता आगामी "चित्र से काव्य तक- प्रतियोगिता अंक २" के निर्णायक के रूप में भी स्वतः नामित हो गए हैं |


अंत में हम सभी की ओर से इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सदस्यों, आदरणीय कुंवर योगेन्द्र बहादुर सिंह उर्फ़ "आलोक सीतापुरी"जी व आदरणीय श्री चैन सिंह "शेखावत" जी का विशेष रूप से आभार  ..........

जय ओ बी ओ !
सादर:
अम्बरीष श्रीवास्तव

 

Facebook

Views: 3118

Replies to This Discussion

आदरणीय भाई तिलक  राज  जी ! आपका स्वागत है .....बहुत बहुत आभार .....:)

सौरभ पांडेय जी और अरुण पांडेय जी

aap dono ko bahut bahut badhai

आपका स्वागत है भाई रविकुमार जी !

भाई अरुण पाण्डेय ’अभिनव’ जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

संवेदनशील हृदय की कोई बात क्यों न हो पारे की तरह उतरती जाती है.

मैं संदर्भ दे रहा हूँ आपके उस कथन का जिसमें आपने अपनी रचना को हड़बड़ी में लिखा हुआ बताया था.

इस हड़बड़ी को मेरा नमस्कार. 

 

हर रचना का अपना कैनवास हुआ करता है और उसीके अनुरूप वह स्वयं को बुनती जाती है. रचनाकार उस कैनवास पर ही समय लगाता है जिसका आकार-विस्तार कईएक बात पर निर्भर करता है. आप सुधीजनों को मेरा प्रयास भाया है, मेरा मन आज कुछ और नत-मस्तक हुआ है. मैं अपने प्रवास में होने के कारण आपसबों के समक्ष विलम्ब से उपस्थित हो पारहा हूँ, इसका हार्दिक खेद है. चर्या थोड़ी अतुकांत हो जाती है. 

 

आदरणीय आचार्य सलिलजी की रचना को पुनः प्रस्तुत कर आपने रचनाधर्मिता और लेखन-संस्कार के क्रम में वैचारिक प्रौढ़ता के आवश्यक विन्दुओं को रेखांकित किया है. इस हेतु आभार.

आपका स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! .बहुत-बहुत बधाई आपको ......:))
आपका स्वागत है
 
बधाई सौरभजी   चित्रसे काव्य तक  २   में प्रथम स्थान लाने के लिए .......आपकी कविता में सचमुच दृश्य के साथ न्याय   हुआ है
अभिनव जी चित्र से काव्य तक-2  में द्वितीय स्थान के लिए बधाई आप  की रचना में चित्रण के साथ भविष्य दर्शन की   अपार क्षमता है......   

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service