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चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-२० की सभी रचनाएँ एक साथ


चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-२० की सभी रचनाएँ एक साथ

इं० अम्बरीष श्रीवास्तव

(प्रतियोगिता से अलग)

(१)

'विष्णुपद' छंद

(चार चरण प्रति चरण सोलह, दस

मात्राओं पर यति, चरणान्त में गुरु)  

चार चरण का छंद 'विष्णुपद', स्वामी हरि जग़ के|

सोलह दस पर यति है शोभित, अन्तहिं गुरु सबके||

नीर बहे जब भक्ति भाव में, दर्शन मन तरसे|

शीश झुका तब दिखे विष्णु पद, नयन सुधा बरसे||

****************************************

(२)

(प्रतियोगिता से अलग)

'कुंडलिया' छंद

(दोहा+रोला)

नैना बरसे नीर बन, दुनिया जो दे दाँव.

चलकर नीचे जा रहे, हैं पानी के पाँव.

हैं पानी के पाँव, पकड़ कर मांगें माफी.

सूख रहे जल स्रोत, सजा इतनी ही काफी.

अम्बरीष ले रोक, हृदय को तब हो चैना.

दिल का धो दें मैल, बरसते जो हैं नैना..

_______________________________________

श्री आलोक सीतापुरी 

छंद कुंडलिया

(दोहा +रोला)

पानी राखें प्रेम का, छाये नहीं अकाल|

पानी को ही खोजने , चरण चले पाताल|

चरण चले पाताल, निथारें दूषित जल को|

समझ रहे सब लोग, समस्या के इस हल को|

दिखा  रहा आलोक, चरण आचरण निशानी|

जो थे पानीदार, हो रहे पानी पानी||
__________________________________________

 

श्री अशोक कुमार रक्ताले

विधाता शुध्गा छंद ( गण +गुरु) x ४

न जानू मै, लगा है क्यों,भरा पानी,मुझे प्यारा /

बची  बूंदें, यहाँ  देखो, गया  जाने, कहाँ सारा/

बचा रक्खो,उड़ा ना दो, मिला नाही,किसी तारा/

लगाना है, हमें  पानी, बचाने  का, यहाँ नारा//

 

हमें देता, दिखाई जो,वहाँ पे है, नहीं पानी/

यहाँ तो रे, मरू फैला,नही कोई, भरा पानी/

लगाओ दो, हरे पौधे, उतारें जो, धरा पानी/

भरें सीना, मरू का भी,दिखाई दे,वहाँ पानी//

**********************************************

(२)

डमरू घनाक्षरी  ( ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति)

 (दूसरी प्रविष्टि)

पग पग हर पल, कल कल छल छल/

हरषत मन  जब, छलकत   जलधर/

भर कर रख अब, जल थल दल दल/

डरपत मन  भय, सरकत    जलधर//

 

मन डरपत भय, व्यरथ खरच जल/

हरकर मद सब,  नयन झरत जल/

करत करम जब, मरम समझ जल/

धरण भरत तब,  बरसत जब जल//

*************************************

(३)

कृपाण घनाक्षरी

(३२ वर्ण,८,८,८,८ पर यति अंत में

गुरु लघु,पद सानुप्रास)

 

पग चले साथ साथ, चिन्ह जल के बनात/

धरती पानी की बात, बदले हैं जो हालात/     

होती ना है  बरसात,पानी भी है  तरसात/   

सूखा ना दे आघात, जिया मोरा घबरात//  

 

अर्जुन का था वो तीर,सीना धरती का चीर/

धारा निकली थी नीर,हर ली थी भीष्म पीर/

बचे ना अब वो वीर, ना ही  धरती में नीर/

सिकुडते  सरि  तीर, मनवा भी है  अधीर//

__________________________________________

श्री रविकर फैजाबादी

कुंडलियाँ (प्रतियोगिता से बाहर )

पावन पादोदक पियो, प्रभु पदचिन्ह प्रभाव ।

प्रथम-पहर प्रचरण प्रचय, पावो प्रग्य सुभाव ।

पावो प्रग्य सुभाव, पारदर्शी दस गोले ।

आयत हैं द्विदेह, गंगधर बोले भोले ।

परजा शील उपाय, ज्ञान सह दशबल वंदन ।

दान वीर्य बल ध्यान, क्षमा प्राणिधि पी पावन ।।

प्रचरण=विचरण

द्विदेह=गणेश

सवैया-

सूखत स्रोत सरोवर नित्य, सहे मन-मीन महा -- बाधा

पैर पखारन हेतु मंगावत, भक्त पखाल भरा -- आधा

बर्तन एक मंगाय भरा, इक यग्य बड़ा रविकर -- नाधा ।

साइत आकर ठाढ़ भई पद चिन्ह बनाय गए -- पाधा ।।

पखाल=मसक

पाधा=उपाध्याय

*************************************************

(३)

प्रतियोगिता से अलग

दुर्मिल सवैया

जलबिंदु जमें दस-बारह ठो, कवि वृन्द जमे जलसा जमता |

जलहार खड़ा पद-चिन्ह पड़ा जलकेश जले जल जो कमता ।

जलवाह खफा जलरूह मरे जलमूर्ति दिखे खुद में रमता ।

जलथान घटे जगदादि सुनो जलशायि जगो जड़ जी थमता ।।

जलहार=जल वाहक

जलकेश=सेंवार घास

जलवाह=बादल

जलारूह = कमल

जलथान =जलस्थान

जलमूर्ति = शंकर

जगदादि = ब्रह्मा

जलशायि = विष्णु

जड़ =अचेतन , चेष्टाहीन, मूर्ख

जी = चित्त मन दम संकल्प

(दुर्मिल के रूप में इसे पोस्ट करने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में आदरणीय

रविकर जी द्वारा इसे मदिरा सवैया कहा गया है जबकि यह दुर्मिल ही है)

*************************************************

प्रतियोगिता से बाहर

मदिरा सवैया

तुलसी तमिसा तड़के तटनी तरखा तर की परवाह नहीं ।

तब तामस तापित तृष्णज से तनु-तृप्ति बुझावन चाह रही ।

धिक नश्वर देह सनेह बड़ा, पतनी ढिग दुर्गम दाह सही ।

तन सूख गया झट लौट गए, पग चिन्ह लखे भर आह रही ।।

तमिसा = घना अँधेरा

तरखा = तेज बहाव

ततनी = नदी

तृष्णज = प्यासा, लोभी

(आदरणीय रविकर जी द्वारा इसे मदिरा

सवैया कहा गया है जबकि यह भी दुर्मिल ही है)

________________________________________

श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

(१)

मोती सी चमका्य (दोहे)
 
मनोहर मोती सी बुँदे, नैनन से छलकाय, 
उनके दुख को देखकर,मन करुणा आ जाय ।
 
पानी के इस मोल को, देख कृष्ण समझाय 
नैनन में जल देख कर, मीत मान आ जाय
 
माटी में पड़ बूंद  भी, पाद चिन्ह बन जाय,
अनजान राहगीर को, दिशा सुलभ मिल जाय ।
  
पानी जिसका मर गया, उसका फिर क्या मान,
पानी बिन सब सून है,  आटे की क्या शान  ।
 
दिखती बुँदे राह पर,  बारिश के ही बाद,
दिलाते पद चिन्ह हमें, किसी सफ़र की याद । 
 
पाँव तले वर्षा बुँदे, मोती सी चमका्य, 
मोती सी बूंद भी जा, धरा में ही  समाय
**********************************************
******************************************
(२)
लो पानी फिर थोक  (दोहे)
 
भूजल का दोहन करे, नलकूपों की बाढ़ 
भूजल नीचे जा रहा, नलकूपों पर रार
 
अंधाधुंध दोहन को, देख प्रक्रति मौन,
संतुलित ना धरा रही, इसे बचाये कौन ।
 
नदियों का यह देश है, बहता पानी रोक 
सब नदियों को जोड़ दो, लो पानी फिर थोक ।
 
तीन चोथाई जल है, फिर संकट का भान,
जल दोहन समुचित करे,होवे तभी निदान ।   
 
बरसा जल भूजल करो, करो न यह बर्बाद,
भूजल स्तर बढे तभी, धरती हो आबाद ।
 
नदियों के इस देश में, क्यों संकट जल पेय 
भूजल कर जल काम लो,मिले शुद्ध जल पेय ।
 
पड़ी ओंस की बूँद भी, मोती सी जल बूँद,
देख चमकती जल भरी,मुदित भई द्रग मूँद ।
 
मोती सी जल बूँद भी, धरा में ही समाय,
पड़ी दूब पर ओंस भी, जड़ में जाय समाय । 
 
घास पर जल बूंद पड़े, वसुधा नम कर जाय,
प्रक्रति जब साथ देती, मानव को समझाय ।
*********************************************
(३)
दोहे
   
सीख इन घटनाओं से, अब सच्चाई  जान, 
मन मंदिर को छोड़कर, कहाँ मिलेगा मान ।-1
 
त्यौहार घर में मना, घर का भी रख मान,
घर लक्ष्मी का वास है, तुझे न इसका भान ।-2
 
अर्ध्य जल छत पर करे, पानी का भी मोल,
पानी का भी मोल रख, पानी है अनमोल ।-3
 
सूर्य चन्द्र को अर्ध्य दे, धर्म अगर तू मान,
अर्ध्य जल पौध पर पड़े, सिंचित का हो भान ।-4
 
बार बार घटना घटे, संकट में है जान,
जीवन भी अनमोल है, इतना तो तू मान । -5
 
पग तले आ सिसक रही,बूँदों की आवाज,
घायल पँछी फड़क रहे, देख रहे परवाज ।-6
 
अर्ध्य देते मरण भये, मर गए वे सब मौन,
तर्पण उनका भी करे, अर्ध्य देय अब कौन ।-7
 
तर्पण करता प्राण है,सरिता बहती माय,
तट तब निरा मसान है, जब कूड़ा आ जाय ।-8
 
तर्पण अर्पण कर अगर, भूजल का कर भान,
अति दोहन जल ना रहे, रहे न  तर्पण मान ।-9
 
अंधाधुंध दोहन है, जन जीवन की मार,
जल ही जीवन तत्व है, सब बाँतो का सार ।- 10
_____________________________________
डॉ० ब्रजेश कुमार त्रिपाठी

भ्रष्ट तंत्र पर दो कुण्डलिया

चुल्लू भर रह गया है अब जल का अस्तित्व

फिर भी डूबें नहीं वे बेशर्मी स्तुत्य

बेशर्मी स्तुत्य नीलकंठी बाना है

करे विश्व विषपान यही मन में ठाना है

सोन-चिरैया उडी  बाग़ में बैठे उल्लू

पानी मरा आँख का  खाली  हो गया चुल्लू

 

पानी जैसे दिख रहे नेता के पग-चिन्ह 

कहिये कैसे लगे हैं ये आपस में भिन्न

नीले-पीले-लाल बदलते रंग ये ऐसे

जितना बड़ा पतीला चम्मच उसके वैसे  

देश चलायें भ्रष्ट- तंत्र से जो अज्ञानी

कैसे देखोगे उनकी आँखों में पानी      

____________________________________
श्री उमाशंकर

(प्रतियोगिता से बाहर)

दोहे

चरण बने जल देव के, पारदर्शी बेरंग |

पञ्च बूंद है कह रही,पंच तत्व मम अंग||

देव चरण को दे रहे,धन वैभव का मान|

धन वैभव जरुरी नहीं, जल जरुरी है जान||  

जहाँ मिले जल के निशाँ,वहाँ बसे संसार|

गांव नगर है बस रहे, सब सरिता के पार||

वसुधा नभ को जोड़ती, वरुण मेघ ले साथ|  

अमृत बन वर्षा करे,जल नाथों के नाथ||

प्राणी जीवन साधिए,जीवन है हर बूंद|  

पग पग पानी बाँध लो,वरना जीवन धुंद||

जहां नियति है दे रही, दिन रात और साँझ|

वसुधा को नम राखिये,जल बिन होवे बाँझ||

______________________________________

श्रीमती शन्नो अग्रवाल

(१)

दोहे

''जल की महिमा''

पग-पग जल मिलता रहे, जल जीवन की आस 

हरियाली हो हर तरफ, कुदरत लेती साँस l

आँचल फैलाये तके, जब धरती आकाश

जलद बिना ना जल कहीं, भू हो बड़ी निराश l 

हांफें मरुथल तपन से, जल जीवन-आधार

कायनात इस बिन नहीं, ये अनुपम उपहार l

बिन इसके बेरंग सब, देह नहीं ना प्राण

भूतल में जब नीर हो, जी उठते पाषाण l  

*********************************************

(२)

कुंडलिया

नदियों के सूखे बदन, झरने बने लकीर

तड़प रहीं हैं मछलियाँ, सूख रहा है नीर

सूख रहा है नीर, पिघलतीं बर्फ शिलायें

करें किफ़ायत सभी, और ना रोज नहायें

‘शन्नो’ जिनके गान, न हम थकते थे गाते

उन नदियों का नीर, भक्त दूषित कर जाते l

______________________________________

श्रीमती राजेश कुमारी जी

कुंडलिया

(प्रतियोगिता से अलग )

पानी है संजीवनी ,मत करना बरबाद 

बूँद बूँद है कीमती ,इतना रखना याद 
इतना रखना याद ,करते रहोगे दोहन  
नदियाँ जायँ सूख, बचे कैसे  संसाधन 
नीर  पादुका रोय   ,देख तेरी मनमानी
धरा गर्भ को भेद  , कहाँ से आये पानी

______________________________________

श्री धर्मेन्द्र कुमार शर्मा

दोहे

बूँद बूँद जस आँगुली, घट भर हो तो पाँव 

दोहन की इस धूप में, जल भी मांगे छाँव

बहती सरिता में रहा, कल कल करता प्राण

कूड़ा करकट झेल कर, लागे निरी मसाण

दबे पाँव आती रही, चिंतित सी आवाज़

रोग सदा हरती रही, गंगा है नासाज़

__________________________________________

श्री अरुण कुमार निगम जी

मदिरा  सवैया (सगण x 8)

जल से मनते जलसे सच है पदचिन्ह दिखा जलदेव कहैं ।

जल-स्रोत बचाय रखें कल के प्रति लोग सदैव सचेत रहैं ।

हर बूँद बड़ी अनमोल अमूल्य न व्यर्थ कभी जलधार बहैं ।

यदि भूमि हरी जलहीन हुई मरुताप तपै जगजीव दहैं ।

(आदरणीय रविकर जी द्वारा श्री अरुण निगम जी

की ओर से इसे मदिरा सवैया के रूप में पोस्ट किया गया

है जबकि यह मदिरा सवैया न होकर दुर्मिल सवैया है )

__________________________________________

श्री कुमार गौरव अजीतेंदु

कुण्डलिया

पानी है तो प्राण है, थे पुरखों के बोल।
नवपीढ़ी नहिं जानती, क्या पानी का मोल॥
क्या पानी का मोल, तभी तो दोहन जारी,
जाते जल के पाँव, कुपित हो लेने बारी।
नाचे नंगा पाप, नहीं है दूजा सानी,
नैनों से है लुप्त, भरा है मुख में पानी॥

घनाक्षरी

बगिया बसानेवाले, हरियाली लानेवाले,
फूलों को खिलानेवाले, यही तो चरण हैं।

मरु को मिटानेवाले, प्यास को बुझानेवाले,
जिंदगी बचानेवाले, यही तो चरण हैं।

बड़े शील गुणवाले, परमार्थ धनवाले,
जैसे हों मधु के प्याले, यही तो चरण हैं।

नैनों को सजानेवाले, चित्त को लुभानेवाले,
वचनों के रखवाले, यही तो चरण हैं॥

___________________________________________

श्री लतीफ़ खान

दोहे

[1]   जल चरणों के श्लोक यह, जग हित में शुभ-लाभ !
       पी कर  विष  प्रदूषण  का,  हुआ  नीर  अमिताभ !!

[2]   पाट कर सब ताल कुँए, हम ने की यह भूल !
       पानी-पानी  हो  गई,   निज चरणों की धूल !!

[3]   कर न पायें दीपक ज्यों, तेल बिना उजियार !
       उसी  भाँति  यह  नीर  है, जीवन का आधार !!

[4]   पिघल-पिघल कर ग्लेशियर, देते नित संकेत !
       जल प्रलय अब दूर नहीं, सब जन  जाएँ  चेत !!

[5]   सूरज  आग  उगल  रहा,  बढ़ता  जाए  ताप  !
       जल बिना यह जीवन है, जैसे इक अभिशाप !!

[6]   पानी का क्या मोल है,  जाने  रेगिस्तान !
       जहाँ उसे इक बूँद भी, लागे सुधा समान !!

[7]   कहीं बाढ़ सूखा कहीं,  कहीं  सुनामी  ज्वार !
       मूर्ख मानव खोल रहाजल प्रलय के द्वार !!

[8]   सागर से  बादल बनें,  बादल  से  यह  नीर !
       जल बिना यह जीवन है, सचमुच टेढ़ी खीर !!

[9]   अत्यधिक जल दोहन से,  सूख रहे सब स्रोत !
       कैसे जल बिन फिर चलें, इस जीवन के पोत !!

[10]   नीर बिना  जीवन नहीं,  बाँधो  मन में गाँठ !
         जीवन रूपी पुस्तक का, जल ही पहला पाठ !!

[11]   धन-दौलत से कीमती, पानी की हर बूँद !
         पानी को  बरबाद कर,  यूँ ना  आँखें मूँद !!

[12]   जल कहे यह  मानव से,  नष्ट न  करियो मोय !
         अपितु मैं जल समाधि बन , नष्ट करूँगा तोय !!

[13]   जो मानव जन नित करें, पानी का सम्मान !
         उस के  जीवन में रहे, सदा  मधुर  मुस्कान !!

[14]   पानी से मत  पूछिए,  क्या है  उस का रंग !
         रंग जाए उस रंग में, मिल जाए जिस संग !!

[15]   जल जीवन का सार है, परखो जी श्रीमान !
         देते  हैं  सन्देश  यही,  गीता  और  क़ुरान !!

[16]   स्वार्थ   पूर्ति   ही    बनें,  जीवन  का  अभिप्राय !
         "लतीफ़" हम सब मिल करें , जल रक्षण के उपाय !!

_________________________________________________________________

_________________________________________________________________

प्रयुक्त रंगों से तात्पर्य

हरा रंग : मेरी प्रतिक्रिया

नीला रंग : अस्पष्ट भाव / वर्तनी से सम्बंधित त्रुटि /बेमेल शब्द /यथास्थान यति का न होना

लाल रंग : शिल्प दोष

_________________________________________________________________

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Replies to This Discussion

जी शन्नो जी ओ बी ओ की यही तो खूबी है अपनी कमियाँ पता चलती हैं 

हार्दिक आभार आदरेया शन्नो जी  :-)

आदरणीय अम्बरीष  श्रीवास्तव जी, सभी रचनाएँ एक साथ पढने को उपलब्ध कराकर इस बहुत उपयोगी बना दिया है 
हार्दिक आभार । त्रुटीवश मेरी निम्नांकित तीनो रचने एक साथ नहीं आ पाई है । पर इसे अन्यथा न ले 
मोती सी चमका्य (दोहे) 2. लो पानी फिर थोक  (दोहे) 3. बिहार में अर्ध्य देते हुई दुर्घटना पर काव्यात्मक दोहे
हार्दिक आभार 

स्वागत है आदरणीय लड़ीवाला जी, आपकी रचना अपनी जगह पर आ गयी है !

वाह !
पहली बार (मेरी जानकारी में) चित्र से काव्य तक आयोजन की रचनाओं को एकत्रित करके लाल हरा नीला रंग का प्रयोग किया गया है
यह मंच की पारदर्शिता, उपादेयता और स्तरीयता का एक और सोपान है जिसके लिए प्रबंधन समिति बधाई पात्र है
हार्दिक बधाई

रंगों का अभिप्राय बता दें तो मुझे भी कुछ समझ आये

धन्यवाद मित्र वीनस जी ! रंगों के अभिप्राय से सम्बंधित जानकारी यथास्थान जोड़ दी गयी है !

आदरणीय अम्बरीषजी, रचनाओं को एक स्थान पर संकलित करना अपने आप में कष्टसाध्य कार्य है. आपकी कोशिश रंग लायी है.

रचनाओं की पंक्तियों को रंग देने से संकलन में रंग आगया है. लेकिन यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विधा-नियमावलियों के समानान्तर नियमों पर कतिपय व्यक्तिगत मान्यताएँ एक जागरुक पाठक के लिये भ्रम का कारण होती हैं.  दूसरे, रंग का निहितार्थ दे दिये जाने से त्रुटियों का अर्थ तथा उनकी डिग्री स्पष्ट हो जाती है.

सादर

आदरणीय सौरभ जी, कतिपय व्यक्तिगत मान्यताओं की अपनी जगह है उनका यहाँ पर कोई स्थान होना भी नहीं चाहिए | रंगों के निहितार्थ को यथास्थान जोड़ दिया गया है |

आदरणीय अम्बरीश जी ,

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता की सभी प्रविष्टियों को न केवल संकलित कर , बल्कि उनमें अपेक्षित सुधार को भी इंगित कर के प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार। इस बार मेरे लैपटॉप का मदरबोर्ड खराब हो जाने की वजह से मैं आयोजन की प्रविष्टियाँ को यथा समय न ही पढ़ सकी और न ही उनपर कोइ टिप्पणी दे सकी, अब सभी प्रविष्टियों को एक साथ पढ़ना बहुत सुखद लग रहा है। इस संकलन हेतु हार्दिक आभार। 

स्वागत है आदरेया डॉ० प्राची जी, इस संकलन को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

आभार आदरणीय अम्बरीश जी -
अरुण भाई क्षमा करना -

दुर्मिल को मदिरा कहे, रविकर खुद तो डूब |
अरुण भ्रात को दे डुबा, मदिरा चढ़ती खूब ||

स्वागत है आदरणीय रविकर जी,

मदिरा चढ़ती तेज है, फांस गले में फंद.

डूबे उबरेंगे सभी, रच-रच दुर्मिल छंद..

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