For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुपर स्टार राजेश खन्ना उर्फ़ काका की यादें --डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

          मैंने प्रतापगढ़ के के0 पी0 हिन्दू इंटर कालेज से 1967 ई 0  में हाई स्कूल की परीक्षा दी और पिता जी के ट्रान्सफर हो जाने के कारण बाराबंकी आ गया I मेरी परवर्ती शिक्षा बाद में बाराबंकी और लखनऊ में हुयी I उस समय मेरी उम्र 14 वर्ष थी और मैंने तब तक केवल साढ़े तीन हिन्दी फिल्मे देखी थीं I साढ़े तीन इसलिए कि मै मातृहीन  पिता की चोरी से कुछ फिल्मे दोस्तों की मदद से देख सका था जिनमे पहली फिल्म ‘दोस्ती’ थी जिसे आधी देखकर ही मै मारे डर के फिल्म अधूरी छोड़ कर इंटरवल से ही घर भाग आया था I बाद में क्लास बंक कर मैंने तीन फिल्मे देखी- शहीद (मनोज कुमार ), खानदान (सुनीलदत्त ) और गाइड (देवानंद) I इसके बाद गाईड तो कई बार देखी पर बाकी फिल्मे दोबारा नहीं देख सका I  यहाँ तक कि “दोस्ती” भी अभी तक आधी ही देख रखी है  I उस समय लड़को का सिनेमा देखना बड़े बुजुर्गो को कतई पसंद नहीं था I मेरे पिता जी तो वैसे भी बड़े सख्त और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे I

 

           हाई -स्कूल की परीक्षा के बाद परिणाम आने तक जो अवकाश अवधि थी उसमे मेरा गृह जनपद, रायबरेली से एक बार अकेले ही बाराबंकी जाना हुआ i चूँकि यह यात्रा वाया लखनऊ ही होनी थी अतः लखनऊ उतर कर योजनानुसार मैंने काका राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ का टिकट लिया जो उस समय जाने किस दैवयोग से मुझे मिल गया क्योंकि कुछ ही देर बाद हाउसफुल हो गया था  I मुझे याद है कि हाल आधे से ज्यादा कालेज की लडकियों से भरा हुआ था I यह मेर्र चौथी फिल्म थी  I फिल्म तो अच्छी थी ही I उस दिन से राजेश खन्ना मानो मेरे मन में बस गये I   

 

           हाई स्कूल का रिजल्ट आया I  मै प्रथम श्रेणी में पास था I  मेरा एडमिशन आसानी से राजकीय इंटर कालेज, बाराबंकी में हो गया I यह कालेज लाईफ कुछ डिफरेंट थी  I  हम किशोर से युवा हो रहे थे और फिल्मे हमारे मनो भावो को हवा दे रही थी  I कालेज में मेरे दो मित्र थे – ओमप्रकाश अस्थाना और सत्य प्रकाश I  सत्य प्रकाश बाद में इंजीनियर हुए  I अभी चार वर्ष पहले उनका निधन हुआ I  ओमप्रकाश आजमगढ़ में वकालत कर रहे है I उनसे बात मुलाकात होती रहती है I ओमप्रकाश दिलीपकुमार के बहुत बड़े फेन थे और उनके साथ रहकर हमें भी दिलीप का मैंनेरिज्म बहुत भाने लगा I  सत्य प्रकाश तो नहीं पर मै अवश्य दिलीप साहेब का फैन हो गया और आज तक हूँ I उन दिनों राजकपूर, दिलीप कुमार, देवानंद औरराजकुमार फिल्मजगत के स्तम्भ थे पर ये सभी ढलान पर थे I  हम दोस्त काका को दिलीपकुमार जीतेंद्र को देवानंद और संजीवकुमार को राजकुमार का उत्तराधिकरी मानते थे I राज कपूर का कोई जोड़ नहीं मिला I 

 

           काका की खोज  यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने सन 1965 में की I  यह संस्था एक नया हीरो खोज रही थी । प्रतियोगिता के फाइनल में दस हजार में से आठ लड़के चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंततः आख़िरी बाजी भी काका के ही  हाथ लगी । इसके फलस्वरूप काका को राज सिप्पी की फिल्म ‘राज’ में काम करने का मौका मिला जिसमे बबिता जैसी स्टार हीरोइन थी I लेकिन काका की जो पहली फिल्म प्रदर्शित हुयी वह चेतन आनंद की ‘आख़री ख़त’ थी जिसमे इंद्राणी मुखर्जी ने उनके साथ लीड रोल किया था I   काका का पालन पोषण उनके माता पिता ने नहीं किया अपितु खन्ना दम्पत्ति जो जतिन यानि कि काका  के वास्तविक माता-पिता के रिश्तेदार थे उन्होंने  बच्चे को गोद ले लिया और पढ़ाया लिखाया  I काका का दाखिला  बम्बई स्थित गिरगाँव के सेण्ट सेबेस्टियन हाई स्कूल में कराया गया जहां उनके सहपाठी रवि कपूर थे जो आगे चलकर जितेन्द्र के नाम से फिल्म जगत में मशहूर हुये I 

 

            काका के बारे में मजेदार बात यह थी के ये बड़ी सम्पन्नता में पले थे यहाँ तक कि संघर्ष के दिनों में जब वे  फिल्म में काम पाने के लिए निर्माताओं के दफ्तर के चक्कर लगाते तो स्ट्रगलर होने के बावजूद उनकी कार बड़े-बड़े  निर्माताओं के कार से मंहगी होती I उस दौर के टॉप हीरो के पास भी वैसी कार न होती । आराधना के बाद काका की फिल्म ‘दो रास्ते ‘ आयी और काका रातो-रात सुपर स्टार बन गये I इसके बाद तो एक कहावत ही चल पडी ‘ऊपर आका नीचे काका’ I बहुत कम लोग जानते होंगे कि जितेन्द्र को उनकी पहली फिल्म में ऑडीशन देने के लिये कैमरे के सामने बोलना राजेशखन्ना ने ही सिखाया था । आज के युवा खान ब्रदर्स पर चाहे जितना नाज कर ले और अमिताभ बच्चन के चाहे कितने ही कसीदे पढ़े जांए  पर जो लोकप्रियता काका लूट गए वह दिलीप कुमार को भी मयस्सर नहीं हुआ I  दिलीप कुमार के समकालीन प्रसिद्ध  चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश  ने भी उस समय यह माना था कि काका के लिए जैसी दीवानगी खासकर जो लड़कियों में थी वैसी न दिलीप साहेब  को नसीब हुयी और न देवानंद को I लडकियां  उनके आँख झपकाने और गर्दन टेढ़ी  करने के अंदाज पर लट्टू थी I  यह कोई मजाक की बात नहीं है कि उन दिनों लड़कियों ने काका को अपने  खून से खत लिखे । उनकी फोटो से शादी की ।  अपने हाथ या जांघ पर राजेश खन्ना  नाम गुदवाया और उनका फोटो तकिये के नीचे रखकर सोई I किसी स्टुडियो या किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार रुकती  तो लड़कियां उस कार को  चूम लेती थी । लिपिस्टिक के निशान से सफेद रंग की कार गुलाबी हो जाती । शर्मिला और मुमताज जैसी उनकी पसंदीदा हीरोइन जिनके साथ काका ने कई हिट  फिल्मे दी उनका भी यही कहना है कि लड़कियों के बीच जो लोकप्रियता राजेश खन्ना की थी वैसी लोकप्रियता बाद में उन्होंने कभी नहीं देखी । राजेश खन्ना ने स्वयं स्वीकार किया था कि उस समय उन्हें यही लगता था मानो वे भगवान हो और दुनिया उनकी गुलाम I काका ने तत्कालीन फैशन ट्रेंड को बदला i राजेश खन्ना स्टाइल के बाल युवाओ में लोकप्रिय हुए I  उन्होंर पैंट  पर कालर वाले गुरु कुर्तो को पहनना शुरू किया तो सारा भारत वैसा ही हो गया I  काका की लोक प्रियता का यह आलम था कि वे निर्माता को वापस लौटाने के लिए उम्मीद से अधिक पारिश्रमिक बताते पर निर्माता मुहमांगी कीमत देने को राजी हो जाता I  ऐसा काका के साथ एक नहीं अनेक  बार हुआ I

 

             काका ने मार्च 1973 में  डिम्पल कपाड़िया से विवाह किया। विवाह के 8  महीने बाद डिम्पल की फिल्म बॉबी रिलीज हुयी I  बॉबी की अपार लोकप्रियता ने डिम्पल को फिल्मों में बने रहने की प्रेरणा दी I  यहीं से उनके वैवाहिक जीवन में दरार पैदा हुई I परिणामस्वरूप   पति-पत्नी 1984 में एक दूसरे से अलग हो गये । कुछ दिनों तक अलग रहने के बाद दोनों में सम्बन्ध विच्छेद हो गया I काफी दिनों तक जुदा-जुदा रहने के बाद, 1990 में डिम्पल और राजेश में एक साथ रहने की पारस्परिक सहमति फिर बनती दिखायी दी । यहाँ तक कि  डिम्पल ने लोक सभा चुनाव में राजेश खन्ना के लिये वोट भी  माँगे और उनकी एक फिल्म ‘जय-जय शिवशंकर’ में काम भी किया  I 1990 से 2012 तक दोनों ने एक साथ  त्यौहार मनाये |

 

     काका ने 1969-72 में लगातार 15 सोलो  सुपरहिट फिल्में दी - आराधना,  इत्तेफाक,  दो रास्ते,  बंधन,  डोली,  सफ़र,  खामोशी,  कटी पतंग,  आन मिलो सजना,  दि ट्रेन,  आनन्द,  सच्चा-झूठा , दुश्मन,  महबूब की मेंहदी,  हाथी मेरे साथी, अंदाज़ और मर्यादा सभी सुपरहिट रही ।  बाद के दिनों में 1972-1975 तक अमर प्रेम,  दिल दौलत दुनिया,  जोरू का गुलाम, शहज़ादा,  बावर्ची,  मेरे जीवन साथी,  अपना देश,  अनुराग,  दाग , नमक हराम,  अविष्कार,  अज़नबी,  प्रेम नगर,  रोटी,  आप की कसम और प्रेम कहानी जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। काका ने  कुल 180 फिल्मों किया I  163 फीचर फिल्मों में काम किया I 128 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभायी I 22 में दोहरी भूमिका के अतिरिक्त 17 छोटी फिल्मों में भी काम किया  I फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिये उन्हें 14 बार मनोनीत किया गया और तीन वार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला I बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी अधिकतम चार बार उनके ही नाम रहा I 2005 ई0  में उन्हें फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेण्ट अवार्ड दिया गया ।

 

              1991 ई0  के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा था । इसी वर्ष वे राजनीति में आये और नई दिल्ली से कांग्रेस के  टिकट पर संसद सदस्य चुने गये। 1994 में उन्होंने एक बार फिर ‘खुदाई’ फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की। 1996 में उन्होंने सफ़ल फिल्म ‘सौतेला भाई’ किया। आ अब लौट चलें,  क्या दिल ने कहा,  प्यार ज़िन्दगी है,  वफा जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली ।

 

               डिंपल कपाडिया से सम्बन्ध विच्छेद के अलावे राजेश खन्ना की असफलता में उनके अहंकार की भूमिका भी बताई जाती है I  इतनी सफलता से किसी को भी अभिमान हो सकता है I  आखिर काका भी मनुष्य ही थे I उन्होंने अपने शुभचिंतको से ही दुश्मनी मोल ली I चाटुकार-चापलूसों के साथ बैठकर शराब पी I उनके व्यक्तिगत फ्रस्टेशन का प्रभाव उनके  अभिनय पर पड़ा I  अमिताभ जैसा सितारा प्रतिद्वंदिता में आ खड़ा हुआ i उम्र बढ़ने के कारण रोमांटिक छवि समाप्त हो चली  I  काका अपनी निराशा और अवसाद में बीमार हो गए i लम्बी बीमारे के बाद अंततः  18 जुलाई २०१२ को उनका देहांत हो गया I  इसी के साथ उस  युग का अंत हो गया जो हम दोस्तों ने अपने जीवन में अपनी आँखों से देखा था I  मुझे तत्कालीन एक समाचार पत्र का वह अंश याद आता है जब एक बच्चे ने सुपर स्टार से पूंछा था कि मुझे नेहरु बनना चाहिए या राजेश  खन्ना I  काका इस प्रश्न पर सहम गए थे उन्होंने झेंप कर उत्तर  दिया बेटा तुम्हे नेहरु बनना चाहिए i ऐसे थे राजेश खन्ना और ऐसी थी उनकी लोकप्रियता  I  ऐसी आत्माये धरती पर कभी-कभी आती है, शायद  I   

 

 

                                                                                                         ई एस-1/436 ,सीतापुर रोड योजना

                                                                                                        सेक्टर ए ,अलीगंज, निकट, राम-राम                                                                                                           बैंक चौराहा, लखनऊ

(मौलिक/अप्रकाशित )

 

Views: 694

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Monday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जातेवगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस…See More
Monday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदरणीय समर कबीर जी को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं "
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब को ज़िन्दगी का एक और नया साल बहुत मुबारक हो, इस मौक़े पर अपनी एक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आ. भाई समर जी को जन्म दिन की असीम हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"ओ बी ओ पर तरही मुशायरा के संचालक एवं उस्ताद शायर आदरणीय समर कबीर साहब को जीवन के अड़सठ वें वर्ष में…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Friday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आ. भाई सुशील जी, सादर आभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service