For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिष्टाचारी देश में - कुण्डलिया संग्रह // पाठकीय समीक्षा.

कुण्डलिया संग्रह - शिष्टाचारी देश में

रचनाकार – श्री तोताराम शर्मा उर्फ़ तोताराम ‘सरस’

प्रकाशक – संवेदना प्रकाशन , गली-2, चंद्रविहार कॉलोनी (नगला डालचंद), क्वार्सी बायपास, अलीगढ़ २०२००१(उ.प्र.) फोन : 9258779744,9358218907.

मूल्य : 150 रुपये.

 

“शिष्टाचारी देश में” तोताराम शर्मा जी की पुस्तक जब हाथ में आयी तो पुस्तक का नाम देखकर लगा, इसमें देश की राजनीति पर ही कुण्डलिया छंद रचे गए होंगे. पुस्तक खोलते ही आवरण-पृष्ठ के भीतरी भाग में इसी कुण्डलिया संग्रह से लिए गए तीन छंद लिखे हुए हैं, इनमें भी प्रथम वह छंद है, जिसका प्रथम चरण का उपयोग इस पुस्तक के नाम में है. इस छंद में कवि ने देश में भ्रष्टाचार के विकराल रूप लेने से आम जनों की बढ़ी पीड़ा को सुन्दरता से मुखर करने का प्रयास किया है.

 

शिष्टाचारी  देश  में,   भ्रष्टाचार  अपार |

धन अर्जन ही हो गया, जीवन का आधार |

जीवन  का आधार, न आदर्शों की कीमत |

अब तो  वैभवयुक्त, लोग ही पाटें इज्ज़त |

शिष्ट जनों पर आज,भ्रष्ट जन पड़ते भारी |

भ्रष्टाचारी  मस्त ,  त्रस्त  हैं  शिष्टाचारी |

 

प्रथम छंद पढ़कर ही कवि के रचना कौशल और छंद शिल्प पर उनकी मजबूत पकड़ साफ़ नजर आती है. कुण्डलिया छंद जो की एक मिश्रित छंद है इसकी प्रथम दो पंक्तियाँ एक दोहा छंद है और अंतिम चार पंक्तियाँ उक्त दोहे के अंतिम चरण से प्रारम्भ कर रचा गया रोला छंद होता है, दोहे का प्रथम शब्द या शब्द समूह ही रोले के अंतिम चरण के अंत में प्रयुक्त होता है, जिससे कुण्डलिया छंद एक कुंडली मारे बैठे नाग के समान प्रतीत होता है. जिसकी पूँछ उसके मुख सम्मुख आयी हुई है.

 

पुस्तक के प्रारम्भिक पृष्ठों में ख्यात कवि श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी द्वारा प्रस्तावना भी बहुत सुंदर ढंग से लिखी गई है. कविवर लिखते हैं  “कवि भाव-भूमि में स्थिर होकर कविता का सृजन करता है | फिर वही कविता पाठक को भाव-भूमि में ले जाते हुए सुखद अनुभूति कराती है और वह जन सामान्य से ऊपर उठकर लोकसत्ता से जुड़ जाता है | कविता बाह्य प्रकृति के साथ मनुष्य की अन्तः प्रकृति का सामंजस्य करती है और यही कविता का अंतिम उद्देश्य भी है |”

“ कवित्त, सवैया, चौपाई, दोहा, कुण्डलिया आदि अनेक छंद अपने विन्यास के कारण जन-जन को प्रिय हैं. अपनी प्रभावोत्पादकता के कारण कुण्डलिया छंद पाठक को आकर्षित करता है. यही कारण है कि कुण्डलिया छंद लोक-विधा के रूप में प्रचलित रहा है. कविराय गिरिधर, संत गंगादास, बाबा दीनदयाल गिरि की कुण्डलिया आज भी लोगों को कंठस्थ हैं. काव्य की इसी परंपरा में कविवर श्री ताताराम ‘सरस’ जी का अपना विशिष्ट स्थान है.”

 

शिष्टाचारी देश में” कुण्डलिया संग्रह के रचयिता तोताराम ‘सरस’ जी जिनकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में छपती आयी हैं, जिन्हें आकाशवाणी से भी गायन का अवसर मिला है ‘अपनी बात’ में विनम्रता के साथ छंद सिखने में सहयोगी बने कविगणों का आभार प्रकट करना नहीं भूले हैं.

 

पुस्तक में अनुक्रमाणिका के पूर्व के पृष्ठ पर अपना कुण्डलिया संग्रह पाठक को समर्पित करते हुए एक कुण्डलिया छंद के माध्यम से तोताराम ‘सरस’ जी द्वारा अपनी भावनाएं कुछ इस तरह व्यक्त की गई हैं.

 

मन से मन जोड़े रहें , करें नेक व्यवहार |

मानवता से पूर्व में, उत्तम भाव-विचार ||

उत्तम भाव-विचार, न्याय-पथ के अनुगामी|

शिष्टाचारी सभ्य, सत्य के निर्भय हामी |

करें सदा सहयोग, राष्ट्र-हित तन-मन-धन से |

‘सरस’ रचित यह ग्रन्थ, समर्पित उनको मन से ||

 

पुस्तक में शुरूआती पृष्ठों में माता सरस्वती वंदना, प्रथम पूज्य श्री गणेश वंदना, गुरु वंदना, ईश वन्दना, हनुमत वन्दना के छंदों के साथ ही मातृ वन्दना में भी सुंदर छंद रचा गया है. “माँ का शुभ आशीष पा,सिद्ध हुए सब काम | करता माँ की वन्दना, हर पल आठो याम || हर पल आठो याम,बसाया माँ को मन में | खिले ख़ुशी के पुष्प, ‘सरस’ जीवन उपवन में | माँ के सदृश महान, न कोई अब तक आँका | जग भर में उपमान, नहीं मिलता है माँ का ||”

 

छियानवे पेज तक छपी इस पुस्तक में अस्सीवें पेज तक विषयवार छपे कुण्डलिया छंद प्रति विषय तीन या अधिक छंद रखे गए हैं. जबकि इसके आगे के भाग को ‘विविधा’ नाम दिया गया है और वहां भिन्न विषयों पर प्रति विषय एक छंद छपा है. तोताराम जी ने जहां समाज में ‘दहेज़’ ‘भ्रूण ह्त्या’ जैसी बुराइयों को अपने छंदों का विषय बनाया है वहीँ कुछ पाठक को आकर्षित कर सकें ऐसे विषय ‘त्यौहार’ ‘क्रिकेट’ ‘दूरदर्शन’ ‘फैशन’ ‘सास-बहू’ जैसे विषयों पर रचे छंदों का भी इस कुण्डलिया संग्रह में समावेश किया है.

 

भ्रूण ह्त्या पर रचे एक छंद में कवि ने समाज को एक हल्की सी लताड़ लगाते हुए बेटियों की समाज के ढाँचे को बनाये रखने के लिए कितनी गरज है इस तरह कहा है –

“अपने बेटों के लिए, बहुओं की दरकार |

किन्तु स्वयं करते नहीं, बेटी को स्वीकार ||

बेटी को स्वीकार, बहू क्या बने चाक पर |

लोगों ने आदर्श,  आज सब रखे ताक पर |

आये बहू सुशील, देखते सुंदर सपने |

कैसे हों साकार, कर्म जब खोटे अपने ||”

 

एक समय था जब देश में अधिकाँश संयुक्त परिवार हुआ करते थे दादा-दादी, काका-काकी और घर में दूर के रिश्तेदार भी इतने अपने से होकार रहा करते थे की कुछ भी समझ पाना मुश्किल होता था. कई बार तो आगंतुक को कई सारे बच्चों में यह समझ पाना मुश्किल हुआ करता था कौन किसके बेटा-बेटी हैं. किन्तु आज एकल परिवार का चलन बढ़ा है और रिश्तों में भी वह बात नहीं रही है. वर्तमान की इस दशा पर “रिश्तों में दूरियाँ” शीर्षक के अंतर्गत रचे छंद में  ‘सरस’ जी ने लिखा है –

 

“खानापूरी हो रही, रिश्तों में भी आज |

रिश्तों के निर्वाह के, बदल रहे अंदाज ||

बदल रहे अंदाज, स्वार्थ पर रिश्ते निर्भर |

दिन-दिन होते क्षीण, चलें रिश्ते मर-मरकर |

जो थे अति नजदीक, बढ़ रही उनमें दूरी |

अब रिश्तों में लोग, निभाते खानापूरी ||”

 

रिश्तों में दूरी की शुरुआत के कारणों में एक प्रमुख कारण सास-बहू के बीच की खींच-तान भी है. किन्तु जब तक आय का स्त्रोत एक था, लोकलाज का भय था तबतक यह बात चहारदीवारी के भीतर तक ही रही मगर जैसे-जैसे परिस्थिति बदली बातें सार्वजनिक होने लगीं. इसी सास-बहू की खींचतान पर ‘सरस’ जी लिखते हैं –

“खींचातानी रोज की, सास-बहू के बीच | एक दूसरी से कहे, तू है भारी नीच || तू है भारी नीच, कहानी है घर-घर की | है यह व्यापक बात, आज हर गाँव-नगर की | यत्र-तत्र-सर्वत्र, सभी की सुनें जुबानी | सास-बहू के बीच, रोज की खींचातानी ||”

 

 

तोताराम ‘सरस’जी  ने “जीवन की कला” और “बुढापा” जैसे विषयों पर भी,अपने ढलान पर आये वय के कारण ही शायद, छंद रचे हैं – “बीमारी कोई लगे, है संभव उपचार | किन्तु बुढ़ापे से नहीं, पड़े किसी की पार || पड़े किसी की पार, बुढापा भारी सब पर | बड़े-बड़े बलवान, बैठते हार मानकर | धन्वन्तरि लुकमान, सभी ने हिम्मत हारी | रही पहुँच से दूर, बुढापे की बीमारी ||”

 

“विविधा” पेज अस्सी से पेज छियानवे तक में ‘नव वर्ष’ ‘सूखा’ ‘मित्र सुख’ ‘दीपक’ ‘भाईचारा’ ‘इच्छा अच्छे दिनों की’ जैसे विभिन्न विषयों पर अड़तीस छंद लिखे हैं.

 

धनबल का  आज के समय में कितना प्रभाव है यह किसी से छिपा नहीं है. धन रिश्तों-नातों से भी बढ़कर हो गया है, यदि धन ही ईश्वर हो गया है कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. इसके कारण आपस का भाइचारा कम हुआ है और इसी पर ‘सरस’ जी ने लिखा है “भाईचारा आजकल, भूल गया इंसान | आज वही बस ख़ास है, जो भी है धनवान || जो भी है धनवान, उसी से पटरी खाती | यदि भाई धनहीन, बात उसकी न सुहाती | जिससे सधता स्वार्थ, वही लगता है प्यारा | खो बैठा अस्तित्व, आजकल भाईचारा ||”

 

“शिष्टाचारी देश में” कुण्डलिया संग्रह को कुछ छंदों के साथ प्रयुक्त श्री अशोक ‘अंजुम’ जी के रेखा चित्र भव्यता प्रदान कर रहे हैं.

 

तोताराम ‘सरस’ जी के इस कुण्डलिया-संग्रह में जहां विभिन्न विषयों पर बहुत अच्छे छंद हैं, वहीँ कई जगह पर शब्दों के स्वरुप से की गयी छेड़खानी उचित नहीं जान पड़ी.जैसे बिचारे, दुकान लूट-खसूट शब्दों के इन अशुद्ध रूप का प्रयोग नहीं किया जाना  चाहिए था. ‘विविधा’ के अंतर्गत छपे छंदों पर भी छपाई के पूर्व जितना ध्यान दिया जाना था वह शायद नहीं दिया गया है. फिरभी यह एक अच्छा कुंडलिया-संग्रह है.

 

 

मैं ‘सरस’ जी को इस प्रकाशित पुस्तक के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ उनकी आगामी पुस्तक “सरस दोहावली” भी  उत्तम दोहे छंद प्रेमी समाज के लिए उपलब्ध कराएगी. हार्दिक शुभकामनाएं.

 

समीक्षा

अशोक कुमार रक्ताले,

५४, राजस्व कॉलोनी, फ्रीगंज, उज्जैन (म.प्र.)

मो. ९८२७२५६३४३.

Views: 954

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service