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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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ज्यादा फूल नहीं जाना भारत खाने वालों
अंत समय बस चार जनों का कंधा लगता है।
रंग बिरंगे झूठों से सजती हैं दूकानें
सच्चाई का सड़क किनारे ठेला लगता है
अजब शजर ये भ्रष्ट जड़ें फैली हैं भारत में
दूर विदेशों में जाकर फल इसका लगता है।
रंग बिरंगे झूठों से सजती हैं दूकानें
सच्चाई का सड़क किनारे ठेला लगता है।
Dharmendra ji...bahut hi umda khayalaat...badhai ho aapko...
धर्मेन्द्र जी आपने तो लाजवाब शे'अरों की झड़ी लगा दी
मतले से मकते तब सभी शेर लाजवाब
अजब शजर ये भ्रष्ट जड़ें फैली हैं भारत में
दूर विदेशों में जाकर फल इसका लगता है।
वाह वाह वा ...
मैं एक सिपाही हूं ख़ामोश पसंद ज़ुबां है मेरी,
दिल की बात मुकम्मल, सरहद पे मेरी तलवार कहे।
BAHUT HI BADHIYA PRASTUTI SANJAY SAHAB.....HAR BAAR KI TARAH IS BAAR BHI AAPKI RACHNA ZORDAAR HAI....KEEP IT UP
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