For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

१२ मार्च की काव्य-गोष्ठी : एक रिपोर्ट // --सौरभ

साहित्य का संसार रचनाओं के पठन-पाठन के अलावे सद्साहित्य के संसरण और इसी क्रम में इसके संवर्धन के कार्य की अपेक्षा करता है. साहित्यिक गोष्ठियाँ या अदबी नशिश्त इस कार्य हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण इकाइयाँ हैं. आत्मीय माहौल में रचनाकार की रचनाओं को सुनना तथा उन रचनाओं से जुड़े अन्य तमाम पहलुओं को उन रचनाकारों से सुनना अक्सर सामुदायिक कार्यक्रमों या आयोजन में न संभव हो पाता है न इसका वहाँ उचित वातावरण ही होता है.

शहर की गोष्ठियों और सम्मेलनों में शिरकत करते रहने के क्रम में कई सुखनवर, कई साहित्यिक सज्जनों से आत्मीय रिश्ता-सा बन गया है. इन सुधीजनों का साहित्य के प्रति अनुराग न केवल चकित करता है बल्कि उनका व्यक्तिगत समर्पण हिन्दी-उर्दू जैसे वर्गों-अनुवर्गों को खुल्लमखुल्ला नकारता हुआ आम जन की बोलचाल की भाषा को अपना हेतु समझता है, जहाँ आम जन का सुख, दुख, व्यवहार, भरोसा, रिश्तों की कश्मकश और उत्साह स्वर पाता है.

कहते हैं, विचारों की नींव पर बना रिश्ता अन्य किसी नींव पर बने रिश्तों से कहीं अधिक स्थायी और सार्थक होता है.


वीनसभाई का मुझे इसी महीने की ९ तारीख की सायं फोन पर ये सूचना देते हुए कहना कि विवेक मिश्र सोलन (हिप्र) से १२ मार्च को नैनी, इलाहाबाद में होंगे क्यों न इस क्रम में नैनी स्थित मेरे आवास पर एक अनौपचारिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन हो जाय. समझिये तो बातें भले वीनसजी की थीं, लेकिन मेरे सोचे को ही स्वर मिल रहा था ! एक अरसे से मेरी  इच्छा थी कि इलाहाबाद के आत्मीय सुधीजनों की सात्विक उपस्थिति से अपने आवासीय वातावरण को कभी तरंगित करने के अवसर पाता.  अतः, इससे पहले कि वीनसजी की बात पूरी होती, मैंने एकदम से हाँ कर दिया. साथ ही, यह भी जड़ दिया कि वे इस नितांत पारिवारिक वातावरण में आयोजित कार्यक्रम हेतु आत्मीय जनों को सूचित कर दें और कुछ अपनों को मैं सूचित कर दूँगा. 

१० मार्च को महाशिवरात्रि के अवसर पर गंगा-स्नान, पूजा-अर्चन और उपवास के बाद ११ मार्च को लोगों को सूचित करने का क्रम प्रारंभ हुआ. कई-कई विन्दुओं के आलोक में कवियों और ग़ज़लकारों के नामों पर चर्चा कर मैं और वीनसजी ने कुछ नामों पर अपनी परस्पर सहमति कायम की. १२ मार्च को गोष्ठी का समय सायं चार बजे नियत हुआ ताकि वह साढ़े चार तक प्रारंभ हो जाय.


समयानुसार वीनसभाई, फ़रमूद इलाहाबादी, तलबजौनपुरी, रमेश नाचीज़, विवेक मिश्र, शक्तीश सिंह, प्रो. कर्णाकान्त तिवारी, प्रो. विभाकर डबराल, घनश्यामजी, अश्विनी कुमार, शुभ्रांशु पाण्डेय और मैं हाल में उपस्थित हो गये. कुछेक अपेक्षित कवि और ग़ज़लकार कतिपय व्यक्तिगत कारणों से चाह कर नहीं आ पाये, जिनकी कमी सभी ने महसूस किया. वीनसजी ने संचालन का दायित्व स्वीकार किया तथा गोष्ठी की अध्यक्षता के लिए तलबजौनपुरी का नाम सहर्ष अनुमोदित हुआ. सामुहिक तौर पर यह सर्वमान्य हुआ कि प्रस्तुतकर्ताओं पर सिर्फ़ एक रचना या एक ग़ज़ल की बंदिश न लगायी जाय. बल्कि रचनाकार तीन से चार रचनाएँ या ग़ज़ल प्रस्तुत करें. इसके अलावे श्रोताओं के अनुरोध पर रचनाकार-कवि इस संख्या के आगे भी जा सकते हैं.


कार्यक्रम फ़रमूद भाई की हास्य-ग़ज़लों सेशु्रु हआ. फ़रमूद भाई अपनी चुटीली और हास्य ग़ज़लों के लिए इलाहाबाद ही नहीं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुशायरों में आज जाने-माने नाम हैं. बेशक कहा जा सकता है कि आपने इलाहाबाद में अकबर इलाहाबादी की परिपाटी और उनके अंदाज़ के परचम को बखूबी संभाला हुआ है. आपकी हास्य ग़ज़लों का प्रस्तार वास्तव में अत्यंत व्यापक है.
आपने हास्य ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए उनके पीछे की घटनाओं का भी दिलचस्पघटनाएँ सुनायीं इससे प्रस्तुतियों का असर दूना होगया था.


काश गर्मी के महीनों में भी जाड़ा होता
तो शबेवस्ल का मेरी यों न कबाड़ा होता
कैस ने फाड़ लिये जोशेजुनूं में कपड़े
पैरहन हमने तो लैला का ही फाड़ा होता


या,
रटता आया रट्टू तोता आता जाता कुछ नहीं
बना है ’अकबर’ का पोता आता जाता कुछ नहीं.. 


आपकी ग़ज़लों के बाद तो महफ़िल एकदम से परवान चढ गयी. ’अकबर’ का संदर्भ इतना सटीक था कि हँसते-हँसते श्रोतागण के दोहरे हो गये.


फ़रमूद भाई के बाद घनश्यामजी ने अपनी एक ग़ज़ल और कतिपय दोहे छंदों से सभी का मन जीत लिया. घनश्याम जी का साहित्यानुराग प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है. आपके दोहे पूरी तरह से छंद शिल्प और कथ्य के तथ्य को संतुष्ट करते हैं.  आपके दोहों का कथ्य इतना व्यापक और आधुनिक परिवेश से उपजे मानवीय कश्मक को सस्वर करता हुआ था कि सभी उपस्थित सुधीजन वाह-वाह कर उठे.


रोजी-रोटी के लिए, भटक रहे हैं लोग
कहने को तो है यहाँ, बड़े-बड़े उद्योग ॥


शुभ्रांशुजी हास्य की गद्यविधा में तेज़ी से उभरते हुए नाम हैं. आपकी शैली चुटीली तथा किस्सागोई अत्यंत मुखर है. गद्य-हास्य ’खाली ज़मीन’ में आपने आज की आवासीय कॉलोनियों में नवधनाढ् दबंगों की ’हड़पाऊ’ संस्कृति पर ग़ज़ब का वार किया है. आपकी लेखन क्षमता का लोहा एक तरीके से सभी ने माना.

विवेक मिश्रा ने अपनी एक प्रखर ग़ज़ल से उपस्थित समुदाय को चकित कर दिया. आपके लगभग सभी अश’आर ग़ज़ब कर रहे थे !

 
एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --
जाने कैसी मारा मारी रहती है ॥
इक ख्वाहिश की ख़ातिर ख़ुद को बेचा था
अब तक शरमाई, खुद्दारी रहती है ॥

कहना न होगा, विवेक ने इस ग़ज़ल की सोच और शेरों के अंदाज़ पर खूब वाहवाहियाँ बटोरीं.


प्रो. करुणा कात तिवारी ने सरकारी मौसम विभाग को इंगित कर बहुत सटीक हास्य कविता पढी.
तूफ़ान से पीड़ित महिला ने कहा
खबर भी सुनी थी
और जान भी प्यारी थी
पर विश्वास नहीं हुआ
क्योंकि खबर सरकारी थी. ..

वीनस केसरी ने अपनी ग़ज़लों से समा को ऐसा बाँधा कि माहौल अश-अश कर उठा.

 

शाम ढलते उतर रहा होगा
जो कभी दोपहर रहा होगा ॥
मंज़िलें जैसे तंज हों मुझपर
सोचिये क्या सफ़र रहा होगा ॥

या,
खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |

या,

मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |





प्रस्तुत रिपोर्ट का लेखक इस ख़ाकसार ने भी जो बन सका प्रस्तुत किया जिसमें फ़ागुनी दोहों और दो-एक ग़ज़लों का पाठ पसंद किया गया.


फगुनाई  ऐसी  चढ़ी,  टेसू धारें आग
दोहे तक तउआ रहे, छेड़ें मन में आग॥

बोल हुए मनुहार से, आकुल मन तस्वीर
मुग्धा होली खेलती, गद-गद हुआ अबीर ॥


या, ग़ज़ल -
सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है ।
इस धुंध में अगन है.. तूफ़ान पल रहा है ॥


ग़र खंडहर चिढ़े हों ख़ामोश पत्थरों से  
ये मान लो कि जुगनू को ख़ौफ़ रात का है !!

सुधीजनों की उदार हौसलाअफ़ज़ाई के हम सदा आभारी रहेंगे.  अपनी रचना ’पान-सुपारी..’ का भी हमने पाठ किया, जिस हेतु सभी सुधीजनों की विशेष मांग थी. 



रमेश नाचीज़ ने फागुनी दोहों के अलावे ग़ज़लें भी कहीं जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई.
लिक्खो ज़िन्दाबाद लिखो
भगतसिंह आज़ाद लिखो
भ्रष्टाचार में देश अपना
है तो है उस्ताद लिखो
अदबी राजधानी में लोगो
लिखो, इलाहाबाद लिखो


यह अवश्य था कि आपके इन फागनी दोहों का उन्मुक्त हुलास सभी को तिर्यक मुस्कानों में लिपटी परस्पर कनखियों से देखने को बाध्य कर रहा था. बाद में, माहौल ’बुरा न मानों होली है’ करता हुआ आगे बढ़ गया.


अध्यक्षता कर रहे तलबजौनपुरी साहब की ग़ज़लों का अपना एक अलग अंदाज़ है. आप अपनी ग़ज़लों में फ़लसफ़ाना फ़िक़्र को बड़ी काबिलियत से पगाते हैं.

महारत हमको हासिल ’तलब’ मर्दुम शनासी में -
मुखौटे तुम लगाओ लाख हम पहचान लेते हैं ॥



अल्पाहार में जो कुछ बन पड़ा नीचे रसोई से उपलब्ध कराया गया.

गोभी के, प्याज के, साबुदाना-आलू के गर्मागर्म पकौड़ों का मनोहारी स्वाद, इमली की चटनी का खटमिट्ठापन, भरवां कचौरियों का खास्तापन, पुदीने की चटनी का चटखारापन , मसालेदार खास्ता मठरियों मुँह में जाते घुलते जाना, कलाकन्द की मुलायम मधुरता बार-बार खाली होते प्लेटों को खाली न रहने देने को बाध्य करतीं रही. आखीर में गर्मागर्म फेनिल कॉफ़ी का स्वागत तो यों हुआ मानों सारी जिह्वाएँ और सारे कण्ठ तर होने को आतुर बैठे हों. 

यह सारा कुछ घरेलू रसोई के ही सौजन्य से था.  इन प्रस्तुतियों में माताजी के स्नेहिल स्पर्श तथा स्नेहाशीष और बहुओं की संलग्नता तथा भावमय समर्पण को सभी ने महसूस किया.

सायं आठ बजे तक चली इस काव्य-गोष्ठी ने उस रोज़ की सध्या को लगभग बाँधे रखा था. गोष्ठी पर अश्विनीकुमार और प्रो. विभाकर डबराल ने अपने-अपने मंतव्य दिये. इस आयोजन की सफलता को सभी ने मुखर रूप से स्वीकारा.

**************

--सौरभ

Views: 2289

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ जी , सादर

     महाकवि तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में कहा है की, “जापर जाकर सत्य सनेहू सो तेहिं मिलहिं न कछु  संदेहू”,   रचना के इस भाव को मैं स्वयं से जोड़कर अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ,  उत्कट स्नेह एवं पुण्य के संयोग से ही यह संभव हो सका की, मैं महाशिवरात्रि के अवसर पर पावन भूमि प्रयागराज स्थित संगम तट पर महाकुम्भ के समापन स्नान पर्व का लाभ उठा सका,  मैं अपने आपको इस मायने में भी बडभागी  मानता हूँ की, इस बीच आपके निवास पर काव्य गोष्ठी  आयोजित हुई,  भले मैं इस गोष्ठी का आनंद प्रत्यक्ष रूप से न ले सका हूँ किन्तु भौगोलिक रूप से आपके एवं काव्य संगोष्ठी के निकट अवश्य रहा. मैं इसे भी  महाकवि की उपरोक्त रचना का ही प्रतिफल मानता हूँ.  आशा है भविष्य में हम सबको आपसे ऐसी काव्य गोष्ठियों से आनंद के साथ साथ बहुत कुछ सीखने को मिलता रहेगा, साहित्यिक सेवा में इस सराहनीय सफल आयोजन हेतु आपको तथा आ. वीनस जी को भूरि भूरि बधाई| धन्यवाद.

चित्त रपट पढ़ तृप्त हुआ । कविता के अमृत का असर शाश्वत है और कालजयी भी । इतने सशक्त रचनाकारों की जुटान -  उनका सम्मान स्वयमेव कठिन संधान है । रचनाओं का स्तर बताता है आयोजन का मेयार बहुत ऊँचा रहा । हम सबने भी उन रचनाओं का पान करने का सौभाग्य पाया इस रपट के ज़रिये इस हेतु हार्दिक साधुवाद ! आपको व् समस्त साथी साहित्यिकों को होली की दिली मुबारकबाद भी !!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
14 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
9 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service