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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २२ सभी ग़ज़लें एक साथ

(श्री तिलक राज कपूर जी) 

सज्‍़दे में जो झुके हैं तेरे कर्ज़दार है
दीदार को तेरे ये बहुत बेकरार हैं।

मेरे खि़लाफ़ जंग में अपने शुमार हैं
हमशीर भी हैं, उनमे कई दिल के यार हैं।

ऑंधी चली, दरख्‍़त कई साथ ले गई
बाकी वही बचे जो अभी पाएदार हैं।

ऐसा न हो विदाई के लम्‍हों में हम कहें
अपने किये पे हम तो बहुत शर्मसार हैं।

बेचैनियों का राज़ बतायें हमें जरा
फ़ूलों भरी बहार में क्‍यूँ बेकरार हैं

गर वायदा है याद तो चल साथ आ मेरे
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं।

किससे मिलायें हाथ यहॉं आप ही कहें
जब दिल ये जानता है सभी दाग़दार हैं।

सपने नये न और दिखाया करें हमें
दो वक्‍त रोटियों के सपन तार-तार हैं।

सौ चोट दीजिये, न मगर भूलिये कि हम
हारे न जो किसी से कभी, वो लुहार हैं।

कपड़ों के, रोटियों के, मकानों के वासते
जाता हूँ जिस तरफ़ भी उधर ही कतार हैं।

तुम ही कहो कि छोड़ इसे जायें हम कहॉं
इस गॉंव में ही मॉं है सभी दोस्‍त यार हैं।

कहता नहीं कि हैं सभी 'राही' यहॉं बुरे
पर जानता हूँ इनमें बहुत से सियार हैं।
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(श्रीमती राजेश कुमारी जी)
(१)
जो भी फेंसले हों अब तेरे अख्तियार हैं
अपने किये पे वे बहुत शर्मसार हैं

कैसे लिखे पैग़ाम कोई उस दीवार पर
बन्दूक के निशां तो वहां बेशुमार हैं

उनको निकल आये हैं पंख दोस्तों
अब घर से बाहर उड़ने को बेकरार हैं

जिन्हें जिंदगी की बाजी है जीतनी
वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं

मुठ्ठी में जो बंद हैं तब तक वो मोती हैं
गर गिर पड़े जमीं पर तो खाकसार हैं

जब से बढ़ गई मुल्क की आबादियाँ
कदम दर कदम पर लम्बी कतार हैं

लगता है जिंदगी में वो उड़ न पायेंगे
बरसों से इसी पिंजरे में गिरफ्तार हैं

वे कब से खड़े हैं मिलने की चाह में
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं

भेज के आश्रमों में कैसे भूल जाते हैं
माता-पिता के प्यार के वो कर्जदार हैं

कैसे करे भरोसा हम उनकी बात का
रिश्वत के मामले में सभी दागदार हैं
(२)
खुशियों के पैरहन यहाँ तार -तार हैं
हर राह में खड़ी सिसकती मज़ार हैं

रखना संभाल के तू अपने पाँव को जरा
झाड़ी में छुपे सांप यहाँ बेशुमार हैं

बाहर निकल के कुँए से तू देख तो जरा
दुनिया में यहाँ बड़े-बड़े चमत्कार हैं

करके दफ़न नफरतों से प्यार की फसलें
क्यूँ वादियों में ढूँढ़ते अब वो चिनार हैं

फुर्सत मिले तो उनके लिए सोचना जरा
वतन के लिए कर चुके जो जाँ निसार हैं

कैसे रचाए ब्याह कोई उस जमीन पर
लुटते हैं जहां दुल्हनों के हार- सिंगार हैं

कहते थे कभी जिसको जन्नते-ऐ-सरजमीं
अशआर वो उस बादशाह के शर्मसार हैं

अमनों चमन के रास्ते तो सामने बहुत
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं
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(श्री अरुण कुमार पांडे "अभिनव जी)
(१)
जब तक गरीब देश के भूखे लाचार हैं ,
नारे भगत शहीद के हम पर उधार हैं |


हमने फकत किताबों में आज़ादी पायी है,
सहते कदम कदम पे अभी अत्याचार हैं |

लोटे घडी की चश्मे की नीलामी होती है ,
बापू तुम्हारे खून ने पाए बाज़ार हैं |

जन्नत का थी नजारा वो केसर की क्यारियाँ ,
उन क्यारियों के सीने पे फौजी कतार हैं |

माँ की दवा के वास्ते जो चोर बन रहे ,
वो एम ए पास होके भी बैठे बेकार हैं |

हाँ अब भी खुल तो सकती है तकदीर मुल्क की,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं |

(२)
चर्चे तो हुस्नो इश्क के यूं बेशुमार हैं ,
मेरी ग़ज़ल के शेर ही गुल हैं बहार हैं |

रखते हैं आज पांव कहीं, पड़ते हैं कहीं
ग़ालिब जुनूने इश्क में बे इख्तियार हैं |

कुछ ख़त, हसीन लम्हे, मेरे सर की इक कसम ,
सारी अमानतें तेरी मुझपर उधार हैं |


दस्तूर भी है, मौका भी ग़ज़लों की बात हो ,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं |

हैं जिसको कहते प्यार वो नाज़ुक सी पौध है,
इसकी हिफाज़तों में कई जांनिसार हैं |

गोया बना सका नहीं ईंटों का कोई ताज ,
ग़ज़लों में तेरी याद की सौ सौ मीनार हैं |
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(श्री अहमद शरीफ कादरी "हसरत")

वो तो हमारे दिल का सुकूनो क़रार हैं
हर इक अदा पे उनकी दिलो जां निसार हैं

यूँ तो तेरे इंकार की कोई वजह नहीं
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं

मालूम था के जायेगा इक दिन वो छोड़ कर
आँखें हमारी किस लिए फिर अश्क़बार हैं

लिख लिख के मेरा नाम मिटाते हैं बारहा
लगता हे वो भी मेरे लिए बेकरार हैं

मुमकिन नहीं के ख़ाब में आ जाये तू सनम
मुद्दत से मेरी आँखों से नींदें फ़रार हैं

हसरत है मेरे दिल में तुझे पाने की सनम
अरमान मेरे दिल में सनम बेशुमार हैं
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(श्री आलोक सीतापुरी जी)

बैठे हैं सोगवार तो कुछ अश्कबार हैं
आ जाइए के लोग बहुत बेक़रार हैं

कितने अदब से कहते हैं दुनिया के सारे ग़म
हम तो हुजूर आपके खिदमत गुज़ार हैं

तुमने न जाने कैसे हमें फूल कह दिया
हम तो ज़माने भर की निगाहों में ख़ार हैं

धुल जांयगे वो अश्क नदामत से एक दिन
दामन पे गुनाहों के दाग बेशुमार हैं

किसकी मजाल है के कभी हुक्म टाल दे
दोनों जहां तो खादिम-ए-परवरदिगार हैं

कैसे बुरा कहें वो पड़ोसी के मुल्क को
जिनके अजीज़दार भी सरहद के पार हैं

‘आलोक’ चल के आ गए खुशियों के गाँव में
लेकिन नगर के गम मेरे सर पर सवार हैं
--आलोक सीतापुरी
गिरह का शेर
वैसे तो हर तरह से वो बा ऐतबार हैं
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं
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(श्री राकेश त्रिपाठी बस्तिवी जी)

लौटा दिया ये कह के, वो जाहिल-गंवार हैं,
किस काम के ये मंदिर, या फिर मजार हैं!

क्यों दोष दें किसी को भी, अपने बचाव में,
हिन्दू पे सब से पहले हिन्दू के वार हैं.

पत्थर उठाये जिन्हें, मुसलमान जान कर,
पाया कि वो 'कलाम' हैं, 'अशफाक' यार हैं.

बिकता है चैन-सुख सरे ईमान इस शहर,
पर खास कीमतें लेते इसके बजार हैं.

कहने को तो नहीं है गरीबी यहाँ कहीं
पाते सभी जो बत्तिस रुपया पगार हैं.

बिखरी है संपदा सुनो! सारे जहान में,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं,

जलवे तुम्हारे हुस्न के, गहरे उतर गये,
दिखते नहीं हैं मर्ज, के नाना प्रकार हैं. .

सूरत तेरी गगन में है, यों चाँद की तरह, 
इक ही अनार पर, सब तारे बिमार हैं.

करता है 'बस्तिवी' जब वादा वो गैर से,
डर कर के दिल-जिगर मेरे, यों ज़ार ज़ार हैं.
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( श्री दिलबाग विर्क जी)

नजरों से छूटे तीर हुए आर-पार हैं
बेहोश दिल हुआ और हम बेकरार हैं |

दीवार गिर सके है इशारे के साथ ही
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं |

मिल बैठकर जो सुलझा सको बात है वही
लड़ते रहो न , जिन्दगी के दिन तो चार हैं |

कोई अमीर हो भले हो वो गरीब ही
कोई अमर नहीं यहाँ सब खाकसार हैं |

हम जी रहे तलाश में साया मिले कभी
रहमत हुई न विर्क अभी बेदयार हैं |
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(श्री प्रवीण पर्व जी)

आवाज़ दे के देख दिलो जान निसार है,
तेरा ही जी ना चाहे तो बातें हज़ार हैं ll

उतनी तलब किसे तेरी जितनी तलब हमें,
हर इक नफस मे इंतज़ार ही शुमार हैं ll

नज़रें चुरा के बारहां देखे हैं मेरी सिम्त,
इनकार मे छुपा रहे वो क्यों ये प्यार हैं ll

मगरूर यूँ ना होइए इस फानी हुस्न पे,
दो दिन मे इस नशे के उतरते खुमार हैं ll

दूनियाँ का डर न उनको उदू का है कोई खौफ,
जब इश्क की बीमारियाँ बे-इख्तियार हैं ll

उल्फत हमारी जो ना मुकम्मल हुयी कभी
इश्क-ए-जुनू-ए-तमन्नाएँ खाकसार हैं 
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(श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी)
(१)
कहते तो पीठ पीछे सभी लोग खार हैं
समझे तो कोई हम तो सरापा ही प्यार हैं

हर तीर देख अपने कलेजे के पार हैं
फिर भी तो चोट खाने को हम बेकरार हैं

रिश्वत का बोलबाला बढ़ा इस कदर के दोस्त
वो लोग आ जुड़े हैं जो ईमानदार हैं

बत्तीस रूपये में गरीबी को भूल जा
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं

कैसे चलेगी भाइयों यूपी में गुंडई
मौजूद कैबिनेट में कहाँ दागदार हैं

है खेल राजनीति भला खूब खेलिए
हथियार हैं कहाँ जो बड़े धारदार हैं

इल्म-ओ-अदब का साथ ज़रा आजमाइए
दौलत न हो जो साथ तो भी मालदार हैं

पकड़े गए जो कह दिया है लीला राम की
‘अम्बर’ को देख रोने लगे ज़ार-ज़ार हैं
(२)
जो लोग साथ लूट रहे राजदार हैं
रिश्वत उन्हें मिली न तभी गमगुसार हैं

पाला कहाँ कसाब को अफजल तो है गुरू
किस्मत से फिर भी जी वो रहे खुशगवार हैं

हमने तो कह दिया है भले मानिए नहीं
आतंकियों से खूब जुड़े उनके तार हैं

रूहानियत को बेच जहाँ वोट चाहिए
उर्यानियत के दाग लगे बेशुमार हैं

जो खामियों के साथ भी अपना रहे हमें
‘अम्बर’ का लें सलाम वो ही अपने यार हैं
--अम्बरीष श्रीवास्तव
गिरह का शेअर :
होना तो खत्म चाहिए कोटा रिजर्व अब
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं
(३)
अहसान मेरे आज भी जिन पे उधार हैं
ढूंढे कहाँ मिलेंगे बड़े फर्जदार हैं

रिश्तों में प्यार चाह रहा हर कोई यहाँ
मिलता ही सबको वक्त नहीं शर्मसार हैं

वो खुश नसीब हैं जो फ़तह पा गए यहाँ
हर जंग जीतते ही कहाँ शहसवार हैं

चाहा जिन्हें था आज भी मुझको मिले नहीं
वे बेवफा भले हैं मगर मेरा प्यार हैं

‘अम्बर’ की रकम यार के खाते में आ गयी
देना नहीं तो किस लिए लेते उधार हैं
--अम्बरीष श्रीवास्तव
गिरह का शेअर:
दिल चाहता है संग तेरे ख्वाब में चलूँ
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं
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(श्री अरुण कुमार निगम जी)

अपने पसंदीदा कई संगीतकार है
नौशाद, दान सिंह, रवि, हेमंत कुमार हैं.

खैय्याम,ओ पी नैय्यर, शंकर औ जयकिशन
सी. राम चंद पे हजारों जाँ - निसार हैं.

कल्याण जी आनंद जी, जयदेव,चित्रगुप्त
हुस्न लाल भगत राम के भी तलबगार हैं.

बुलो सी. रानी, सचिन दा , एस.एन.त्रिपाठी
इनकी धुनें तो अब तलक सर पे सवार हैं.

बसंत देसाई, ऊषा खन्ना, लक्ष्मी और प्यारे
ये भी तो वीणापाणि की वीणा के तार हैं.

ठेके वो दत्ताराम के, पंचम की शोखियाँ
गुलाम मोहम्मद की धुनें खुशगवार हैं.

आजा कि रात भर सुने हम गीत पुराने.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं.
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(श्री सतीश मापतपुरी जी)
(१)
कैसे कहें हुज़ूर, आप गुनाहगार हैं.
दिल में दफ़न तो राज़े मोहब्बत हजार हैं.

हुस्न तो अता किया परवरदिगार ने.
वो किस लिए सोचें भला, कितने बीमार हैं.
आँखों को सज़ा दी तो सच सामने आया.
चाहत वफ़ा की रस्में, ये सब बेकार हैं.
 
एकरार भी किया इज़हार भी किया.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं.
 
फर्क क्या है नज़्म, गीत या ग़ज़ल कहें.
लिखता हूँ मगर जो, वो तुम्हारे अशआर हैं.
(२)
राष्ट्र का सौदा भी कोई रोज़गार है ?
करने को जब इस मुल्क में लाखों व्यापार हैं.
सरे आम शर्मसार हैं हर घर की बेटियाँ .
आँखों के धृतराष्ट्र हम, कितने लाचार हैं.
तारीख़ ने भी कैसे करवट बदल लिया.
कृष्ण तो रहे नहीं, द्रौपदी हजार हैं.
संतों की हम संतान हैं , पहचान है इतनी.
वाणी तो उनकी खो गयीं, उनके मज़ार हैं.
फिर वक़्त दे रहा है , एक वक़्त बदलने का.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं .
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(योगराज प्रभाकर)
तूफ़ान खौफनाक हैं, मौजें गँवार हैं.
हालात हौसलों के लिए, साज़गार हैं.

ऊँचे मीनार मुल्क में, जो शानदार हैं
उनमे हमारे खून के, कतरे शुमार है.

जिसने उजाड़ फूल, उगाये मदार हैं,
उसके चमन से आज, बहारें फरार हैं,

महरूम रौशनी से, गरीबों के झौपड़े
बस कागजों में बोलते सारे सुधार हैं
.
आँसू बहाते देख, हसीं ज़ाफ़रान को
वादी में सोगवार, ये बूढे चिनार हैं

कैसे न हों उदास, ये मासूम तितलियाँ
मौजूद आस पास, हजारों ही खार हैं

चाहे तो आसमान ज़मीं पे उतार ले
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं

ऐसा समाजवाद किसी काम का नहीं
जिसमे नकाब ओढ़ छुपे लाख जार हैं
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(श्रीमती सीमा अग्रवाल जी)
(१)
बैठे हुए जो चोटियों पे खबरदार हैं,
ऊँची चढाइयों के ही तीखे उतार हैं ll

माँ की दुआएं तीरगी मे दीप सी जलीं,
उसकी नवाज़िशें ओ करम बेशुमार हैं ll

आयेंगे आ रहे हैं पर आते नहीं हैं वो,
कैसे ये उनके वादे हैं कैसे करार हैं ll

आठों पहर पे तेरा इंतज़ार लिख दिया,
तेरा ही जी ना चाहे तो बातें हज़ार हैं ll

चेहरों पे कुछ लिखा है यहाँ दिल में कुछ निहां,
जो दर्द दे रहे हैं वही गमगुसार हैं ll

इन पे यकीन है कोई न उन पे ऐतबार,
रिश्तों में आ रही हैं ये कैसी दरार हैं ll

थी साफ़ नज़र साफ़ दिल ओ साफ़ जुबां भी,
बस इसलिए हमारे हमसे शर्मसार हैं ll
(२)
संवेदनाएं मर चुकीं झूठे विचार हैं
हर गाँव गली घूमते रंगे सियार हैं

है व्याकरण से दूर का नाता नहीं कोई
कहने को बन गए वो बड़े ग्रंथकार हैं

शायद ये उनके आगमन की सूचना ही है
मुकुलित प्रसून ,बज रहे मीठे सितार हैं

बादल पहाड़ शूल नदी पवन तितलियाँ
क्या-क्या खुदा की कल्पना के चमत्कार हैं

हर एक योजनाये जो सुधार की बनी
खूंखार योजनायों का केवल प्रसार हैं

प्रयाण हेतु मार्ग तो पथिक असंख्य हैं
तेरा ही जी ना चाहे तो बातें हज़ार हैं
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(आचार्य संजीव सलिल जी)

आसों की बात क्या करें, साँसें उधार हैं.
साक़ी है एक प्यास के मारे हज़ार हैं..

ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं..

खोटा है आदमी ये खुदा भी है जानता.
करते मुआफ जो वही परवर दिगार हैं..

बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..

मंज़िल पुकारती है 'सलिल' कदम तो बढ़ा.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं..
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(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)

सीने से उनके सारे सुकूं यूँ फ़रार हैं;
सेहत दुरुस्त थी कभी अब वो बिमार हैं;

ख़्वाबे विसाल दिल में मेरे बेशुमार हैं;
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं;

इक उम्र हो गई है उसे चौक पर गए,
जलवे हज़ार अब भी मगर बरक़रार हैं;

कल तक बड़ी अज़ीम इमारत थे वो मगर,
बच कर निकल के आज वो गिरती दिवार हैं;

जब तक ज़मीं पे पैर थे वो सामने रहे,
दिखते नहीं वो आज हवा पर सवार हैं;

उनके बिना तो साँस भी लेना मुहाल था,
पर आज उनके ही लिए हम नागवार हैं;

बस नाम ही तेरा कोई जादू जगा गया,
दीदार को तेरे बड़े ही बेक़रार हैं;

इज़्ज़त उछाल कर सरेबाज़ार वो अभी,
फ़िकरा हैं कसते आप के हम राज़दार हैं;

हालात और वक़्त पे इल्ज़ाम किस लिए,
इंसान अपनी ख़्वाहिशों के ख़ुद शिकार हैं;
(२)
मंज़र है ख़ौफ़नाक ये उड़ते ग़ुबार हैं;
थम जाएँ आंधियां के सभी बेक़रार हैं;

इक आरज़ू थी अपनी जगह मुस्तकिल रही,
थे इंतज़ार तब भी, अभी इंतज़ार हैं;

पाया बहुत है हमने तो खोया भी है बहुत,
थोड़ा ग़ुरूर है सही फिर भी वक़ार हैं;

इक रोज़ तेरे नाम पे जो कर दिए वही,
लम्हात ज़िन्दगानी के हम पर उधार हैं;

उम्मीद कुछ तो हमको हुकूमत से थी लगी,
लेकिन वो उनके वादे कहीं दरकिनार हैं;

तू हौसला न छोड़ के मंज़िल है सामने,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं;

अपने वतन की शान ओ अंदाज़ हैं जुदा,
मिट्टी पे इसकी यां कई वाहिद निसार हैं;
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(श्री अशफाक अली जी)
हम तो रहीन-ए-गर्दिशे लैलो निहार हैं.
क्यों आज आप किसके लिए बेक़रार हैं.

एक तू है जिसने हमको फरामोश कर दिया
एक हम कि तेरे इश्क में ही नेक़रार हैं

क्या हाज़त-ए.-रफू नहीं अब इनको दोस्तों
दामन जो जिंदगी के यहाँ तार-तार हैं

कुछ बात है जो तुझपे नज़र डालता हूँ मैं
वैसे तो मेरे चाहने वाले हज़ार हैं.

आँखें वो आज बंद किए हैं, कमाल है
कहते हैं जिनको लोग बड़े हक निगार हैं

इक दूसरे के हाल से वाकिफ हैं सब के सब
मोबाइलों के दिल से जुड़े ऐसे तार हैं.

"गुलशन" निगाहें हुस्न से देखे कोई हमें
हम आज भी तो मंज़रे फसल-ए-बहार हैं
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(श्री आशीष यादव जी)

अब हर गली में प्यार के लगते बजार हैं
लैला-ऒ-हीर नाम हुए शर्मशार हैं।।

ये फूल ये कली ये गमक पूरे बाग की।
इक तू नही तो फिर ये नजारा बेकार हैं।।

यादों के कैदखाने मे होते हो हर समय
पर फिर भी तुमको देखने को बेकरार हैं।।

आगे की बेंच से भी तेरा मुझको देखना।
ऐसी ही ढेरों याद अभी बरकरार हैं।।

मरता हूँ तुझ पे अब भी दिल-ऒ-जान से मगर।
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं।।
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(श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह मृदु जी)

यारों हमारे यार ने छीने करार हैं.
लाखों यहाँ उसी के लिए बेकरार हैं.

है मजनुओं की भीड़ यहाँ पर लगी हुई,
सपनें हुए कहीं न कहीं तार तार हैं.

मजबूर दिल हमें न अभी छोंड़ मुस्कुरा,
नजरों के तीर यार हुए आर पार हैं.

मैं छोंड़ दूँ जहान अगर जान तुम बनो,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं.

बरबादियाँ नसीब में आईं सदैव 'मृदु',
अपने वजूद में ही हुए शर्मशार हैं.
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(श्रीमती सरिता सिन्हा जी)
ता-सर-पा काट डाला , ये ऐसे अज़ार हैं,
रिश्ते हैं क्या कि समझो, खंजर की धार हैं..

लो आप की आंखें तो अभी से बरस पड़ीं,
ऐसे न जाने कितने मेरे ग़म हज़ार है..

कोई दवा न पाई किसी चारागर के पास,
बीमार-ए-दर्द को देखने आते हज़ार हैं..

अब इन का क्या करें चलो ऐसे ही छोड़ दें,
है ज़ीस्त कम और पाँव में काँटे हज़ार हैं..

ऐ ज़िन्दगी थोडा सा और वक़्त बख्श दे,
सर से उतार लूँ वो जो कर्ज़े हज़ार हैं..

हाँ, हमसफ़र हो फिर भी ज़रा फासला रखो,
ऐसा भी क्या कि हर घड़ी सर पे सवार हैं..

दरिया भी डूब जाये इन चश्म-ए-गज़ाल में,
तेरा ही दिल न चाहे तो बातें हज़ार हैं..
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(श्री सुरिंदर रत्ती जी)

चुप रह के रुसवा दुनियाँ में ख़्वार हैं
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं

दामन लगे हैं दाग़ धुलेंगे न अश्क से,
दौलत सवाब की कम है, इन्तिशार हैं

अरमान पालना दुश्वारी से कम नहीं,
फिर भी तलब, नशा इतना हम शिकार हैं

वो खौफ़, दर्द थामे खड़े तकते चार सू,
ऐसे हबीब ज़ख्म दें तो नागवार हैं

चिंगारियां छुपी थी दबे पाँव आ गयी,
जलता रहा बदन हवायें साज़गार हैं

ये वलवले बड़ी उम्मीद ले आये हैं,
हलके वरक महज़ लगते इश्तहार हैं

शीशा कहे रहम करो तन्हा मुझे छोडो,
फितरत है टूटना ग़म भी बेशुमार हैं

मुड़ती गली सुहावने मंज़र दिखायेगी,
"रत्ती" किसे ख़बर वहां पे आबशार हैं
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(श्री अरविन्द कुमार जी)

जाने ना दूर दूं तुझे, ऐसे करार हैं,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं.

मीलों भटकते आजकल, तेरी तलाश में,
कहने यही कि जीस्त पे हम शर्मसार हैं.

सँवारे जुल्फ की नाईं, कोई इसको भी तो हमदम,
मेरी इस जिंदगी के ख़म भी देखो, पेंचदार हैं.

शायद सिवाए गम के, हमने कुछ नहीं दिया,
दिखते तभी बिछड़ के, अब वो खुशगवार हैं.

तूने है रोका आज, जब वादा सफ़र का था,
तेरी ख़ुशी पे सब के सब वादे निसार हैं.

इस बात का है रंज हमें सालता बहुत,
मेरी हंसी में आपके, कुछ गम शुमार हैं.
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(श्री संजय मिश्र हबीब जी)

हम लाख चाहे सोच लें हम होशियार हैं।
लेकिन हवाओं में भी बड़े तेज धार हैं।

दिल में सँजो रखे थे जो यादों के पैरहन,
देखा जो आज झांक सभी तार तार हैं।

हर सांस ये ही बात हमेशा सिखा गयी ,
सय्याद वक़्त, हम हैं परिंदे, शिकार हैं।

चारागरी है दर्द की मुमकिन सही मगर,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं।

खामोश यां हबीब हैं लफ्जों के काफिले,
आँखों के आसमान में रिमझिम गुबार हैं।
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(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)

जिन्दगी में देखे कई चढ़ाव उतार हैं।
मुश्किल हैं ठोकरें हैं गम बार बार हैं॥

चुनौती जिन्दगी की आसान है नहीं।
हाइल खड़े हैं रास्ते हम इजतिरार हैं॥

मां बाप और बीबी बेटे और बेटियां।
इक जिन्दगी है मेरी कई हकदार हैं॥

हैरान सरगिरदान हम जायें तो कहां।
चारों तरफ हमारे यां बंधन हिसार हैं॥

चाहें जिन्दगी की हर सलाख तोड़ दें।
देखा इसके हक से हम बेइख्तियार हैं॥

तन्हाई में परछाईयां पूछती हैं मुझसे।
मुश्किल उसूले जिन्दगी से लाचार हैं?

कल के सवाल तैरते आंखो में रोज ही।
है जवाब कुछ नहीं आज अश्कबार हैं॥

मुश्किले जिन्दगी आसान कुछ बनेगी।
लेते चले दुआ उनकी जो बुजुर्गवार हैं॥

बदबख्त जिन्दगी हंस-हंस के जी ले।
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार है॥
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(श्री मोहम्मद नायब जी)

तेरे जहाँ में आज भी कितने दयार हैं.
गर्दिश ज़दा हैं कोई, कोई मुश्कबार हैं.

मस्लिम हैं और हिन्दू भी सिख है इसाई भी.
अपने जहाँ में सिर्फ यहीं लोग यार हैं.

हम कुछ कहें तो मान ही लेगा हमारा दिल .
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं.

सिद्दीक हैं उमर हैं ग़नी और हैं अली.
मेरे नबी के देखो यही चार यार हैं.

महशर का खौफ़ दिल में रहे भी तो किस तरह .
हम जैसे लोग बन्दे परवर दिगार हैं.

कामिल यकीं है बाबे इरम खुल ही जायेगा.
हम भी तो वलिदैन के खिदमत गुज़ार हैं.

किसको ख़बर थी आज भी "नायाब" की यहाँ.
ये तो कहो की दिल से जुड़े दिल के तार हैं.
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(श्री मजाज़ सीतापुरी जी)

बेला कभी चमेली कभी हरसिंगार हैं.
मामूर खुशबुओं से सभी मेरे यार हैं.

कोठी है उनकी, कार है, नौकर हज़ार हैं.
कैसे कहूँ मैं उनको की वो पुर वक़ार हैं.

रखते हैं कौलो फ़ेल में जो फर्क दोस्तों.
अल्लाह की नज़र में वही लोग ख्वार हैं.

मालिक ने अपनी खल्क में अफज़ल बना दिया.
हम लोग इस जहाँ के लिए शाहकार हैं.

रौशन करेंगे नाम जो दुनियाए इल्म में.
मेरे नगर में ऐसे भी साहित्यकार हैं.

सुक़रात बन के मैंने गुज़ारी है जिंदगी.
प्याला है ज़हर का तो सलीब और दार हैं.

छूने से उनको डरती हैं खुद मेरी उँगलियाँ.
शाखे गुलाब की तरह जो ख़ारदार हैं.

मेरी हर एक बात पे कहता है तू 'नहीं'.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं.

अब शिल्प की यहाँ कोई क़ीमत नहीं रही.
वैसे तो मेरे शहर में भी शिल्पकार हैं.

उस शायरी को मिलती है मकबूलियत "मजाज़".
जिस शायरी में दोस्तों सोलह सिंगार हैं .
----------------------------------------------------------
(श्री नफीस अंसारी जी)

लम्हात जिंदगी के दिल-ओ-जां पे बार हैं.
ए गर्दिशे-ज़माना तेरे हम शिकार हैं.

अब भी सदaaक़तों के हम आइनादार हैं.
चर्चे हमारे सात समंदर के पaaर हैं.

बेशक विरासतों को रखेंगे सहेज कर.
मैं मुतमईन हूँ बच्चे बड़े होनहार हैं.

किरदार राम जैसा कोई एक भी नहीं.
सदियों से इस समाज में रावन हज़ार हैं.

बातों के बल पे हो न सका आदमी बड़ा.
ऊँचे हैं लोग ऊँचे जो उनके विचार हैं.

पैहम मुशाहिदों के सफ़र से बंधा हूँ मैं.
पथरीले रास्ते में घने देवदार हैं.

बेरोज़गारी फ़ाकाकशी खौफ वस्वसे.
दिन रात सौ बालाएं सरों पर सवार हैं.

उम्मीद के चराग जलाऊँ बुझाऊँ मैं.
तू ही अगर न चाहे तो बातें हज़ार हैं.

मैं तेरी जुस्तजू में किधर जाऊं क्या करूँ.
दरिया हैं रास्ते में कहीं कोहसार हैं.

बेशक तुम्हारा जौके-समाअत है दोस्तो.
अशआर मेरे वरना कहीं शाहकार हैं.

आइना-आइना ही रहा और संग-संग.
फिर क्यूँ मेरे खुलूस के दुश्मन हज़ार हैं.

हमको ये गफलतों की सजा दे रहा है वक़्त.
अपने ही घर में रह के गरreeबुद दायर हैं.

हद से गुज़र न जाये कहीं मौजे-इज़तेराब.
हम आपकी ख़ुशी के लिए बेक़रार हैं.

देखूं "नफीस" तेरे लबों पर सदा हंसी .
आँखों से बहते अश्क मुझे नागवार हैं.
-------------------------------------------------
(डॉ० अब्दुल अज़ीज़ अर्चन ‘खैराबादी’ जी)

जो लोग जिंदगी में हवस के शिकार हैं|
सर पर लिए वो कितने गुनाहों का बार हैं||

आईन-ए-ख़ुलूस के जो पासदार हैं|
इस दौरे कश्मकश में बहुत बेकरार हैं||

अजदाद के उसूल से जो हमकनार हैं|
तहजीब के वो भी आज आईनादार हैं||

निकले हैं एक चटान के सीने को चीर कर|
प्यासी जमीं के वास्ते हम आजशार हैं||

वह था कि वादे रेशमी जालों के बुन गया|
खुशफहमियों में लोग यहाँ तो शिकार हैं||

क्या हो गया तुझे मेरे पुरखों की ऐ जमीं|
फल क्यों तेरे दरख्तों के अब दागदार हैं||

पढ़िए बगौर देखिये मगमूम हैं सभी|
चेहरे तुम्हारे शह्र के सब इश्तहार हैं||

अपनी ही जुस्तजू में जो खुद डूबते रहे|
वो लोग बहरे आलमे-इम्काँ के पार हैं ||

बेचैनियाँ हैं कैसे मनाऊं तुझे मगर|
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं||

रखते हैं पास अपने नबी की हदीस का|
हर मुल्को कौम के लिए हम ऐतबार हैं||

लिपटी हुई है जिस्म से खाके वतन ‘अज़ीज़’|
हम जान हैं वतन की वतन पे निसार हैं||

बार: बोझ, ख़ुलूस: सच्चाई का दर्पण, पासदार: ध्यान रखने वाले, अजदाद: पुरखे, हमकनार: निकट रहने वाले, आईनादार: दर्पण रखने वाले, आजशार: झरना, मगमूम: दुखी, इश्तहार: अखबार, जुस्तजू: खोज (आत्म मंथन), आलमे-इम्काँ: वश के संसार का सागर, पास: ध्यान, हदीस: वह हदीस (मुख-वाणी) जिसमें पैगम्बरे इस्लाम नें फरमाया “लोगों जिस मुल्क में रहे उसके वफादार होकर रहो”
---------------------------------------------------------------
(श्री विवेक मिश्र जी)

इस जिंदगी पे क़र्ज़ तेरे बेशुमार हैं.
हम इस लिए ही तेरे लिए बेक़रार हैं.

तुझसे चमन की रौनकें सब लालाज़ार हैं.
तेरे ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं.

तुम हंस दिए तो हंस दिए महफ़िल के सारे लोग.
वरना तो सबके दिल ही यहाँ तार-तार हैं.

होठों पे एक पल की हंसी उनको खल गयी.
रोये कि जिनकी याद में हम जार-जार हैं.

लब पर हंसी कि चादरें ओढ़े हुए हूँ पर.
आंखें हमारी फिर भी अभी अश्कबार हैं.

ना जिंदगी कि चाह है न मौत का है गम.
तेरी ख़ुशी पे मेरी तो खुशियाँ निसार हैं.

आंखें खुली हैं अब भी तेरे इंतजार में.
ले चलने को तैयार तो बैठे कहार हैं.

आ जाइये आ जाइये आ जाइये "विवेक".
अब राह तेरी तक चुके हम बेशुमार हैं.
.
*************************************************************************
.
लाल रंग के फॉण्ट में वह अशआर हैं जोकि बहर के हिसाब से दुरुस्त नहीं हैं.
नीले रंग के फॉण्ट में वह अशआर हैं जिन्हें मुशायरा समाप्त होने के बाद रचनाकार के अनुरोध पर बदला  गया. 
.
.
(संकलन - श्री योगराज प्रभाकर)
 

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अहा!! नायाब फूलों का हसीन गुलदस्ता...! अति सुन्दर...

Bahut bahut aabhar sir ji ,mai kisi karanvash mushayre me bhag nahi le saka par yahaa par sabhi rachnaae ek sath padh kar dil khush ho gaya.
सभी ग़ज़लों को एक स्थान पर संगृहित कर हम सब के लिए संजोने का कार्य किया गया हार्दिक आभार | हर ग़ज़ल एक नगीना है और इस तरही पूरी प्रस्तुति एक खुबसूरत जेवर !! सभी रचनाकारों को हार्दिक आभार और विशेष कर उन साथियों का जिन्होंने मेरी अनुपस्थिति में मेरी ग़ज़लों को सराहा और उनपर टिप्पणी की |

इत्मिनान से पढ़ूँगा.

कई-कई कारणों और उलझनों के चलते मुशायरे में नियत नहीं रह पाया.  कुछ बातें बस से बाहर की होती हैं, न.

वैसे, एक उचित परिपाटी का चलन बना है तो बना ही रहे. संचालक राणाजी को मेरा निवेदन संप्रेषित है, अन्य अन्यथा न लें.. . प्लीज़.

आदरणीय योगराज भाईसाहब, आपने ख़ाकसार की बात पे तवज़्ज़ह दे कर हमारे साथ-साथ उन नए शायरों पर भी अपार उपकार किया है जो रोज़ाना के हिसाब से पाठ दर पाठ सीखते जा रहे हैं.

सादर.

पूरी पोस्‍ट कॉपी करी टिप्‍पणी देने के लिये और आरंभ किया तो दंग रह गया अश्‍'आर देखकर। एक पूरी पोस्‍ट टिप्‍पणियों की बन जायेगी। बेहतरीन शेर आये हैं। बधाई सभी भाग लेने वालों को और निमंत्रण भाग लेने वालों को।

अरुण कुमार जी की अपने पसंदीदा कई संगीतकार है नौशाद, दान सिंह, रवि, हेमंत कुमार हैं.नायाब लगी ।

sari gazale damdar hai. sunder...safal...saras aayojan ke liye BHAI Yograj ji ko sadhuwad...

एडमिन  जी अभिनव कुमार अरुण जी की पहली (१)ग़ज़ल मेरी (राजेश कुमारी )की जो रिपीट   हो  गई  गलती से आ गई है आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी 

आदरणीय एडमिन जी ! आदरणीय प्रधान संपादक महोदय ने एक खूबसूरत गुलदस्ते के रूप में इन ग़ज़लों को संकलित करके अत्यंत श्रम साध्य कार्य किया है ! और तो और बाबह्र अशआर का चयन तो और भी दुष्कर कार्य है ! इससे कम से कम हम यह तो जान सकेंगे कि हमसे त्रुटि कहाँ पर हुई है परिणामतः आगे आने वाली गज़लें बाबह्र तो होंगीं ! इस सराहनीय कार्य हेतु बहुत-बहुत बधाई ! सादर

आपके कहे को मेरा भी अनुमोदन है आदरणीय अम्बरीष भाई साहब.

सादर

बहुत खुबसूरत नजराना है ये संकलन. आदरणीय योगराज जी को सादर बधाई. अंतिम समय में मैंने अपनी ग़ज़ल में बहर में बहुत से परिवर्तन किये थी जो नहीं आये हैं, उनका लिंक निम्न है, अगर संभव है तो यहाँ फेर बदल कर दें, धन्यवाद.
http://openbooksonline.com/forum/topics/mus22?commentId=5170231%3AC...

बहुत शानदार ग़ज़लें कही हैं सबने इस बार। मैं कुछ व्यस्त था इसलिए आ नहीं पाया। सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।

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