For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय सुधीजनो,


दिनांक -9 फरवरी'14 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-40 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “तितली जुगनू फूल पतंगा” था.

महोत्सव में 25 रचनाकारों नें  कह-मुकरी, दोहा, रोला, कुंडलिया, हायकू, ताँका , घनाक्षरी, नवगीत,  ग़ज़ल, व अतुकान्त आदि विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
डॉ. प्राची सिंह
संचालक
ओबीओ लाइव महा-उत्सव

*******************************************************************

1. योगराज प्रभाकर जी

कह-मुकरियाँ
चंचल चितवन, मन को मोहे
मोहक रंगत, सब को सोहे 
ऐसे मचले जैसे बिजली 
ऐ सखि साजन? न सखि तितली

आँख मटक्का करके जाए 
पीछे दौड़ूँ, हाथ न आए 
घूमे बनकर, छैला मजनू 
ऐ सखि साजन? न सखि जुगनू  

कर देता माहौल सुहाना
हर कोई इसका दीवाना 
मनमोहक मादक मकबूल  
ऐ सखि साजन? न सखि फूल

हरदम गले लगाना चाहे 
उल्फत में जल जाना चाहे 
आशिक है ये, नहीं लफंगा  
ऐ सखि साजन? न सखि पतंगा  

*****************************************************************

2.   अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

दोहे

स्वागत है ऋतुराज का, मन चंचल हो जाय।

पंछी तितली फूल भी, मन ही मन मुस्काय॥

 

बलिहारी भगवान की, कितने जीव बनाय।

रात हुई जब गांव में, जुगनू राह दिखाय॥

 

सुबह ओस की बूंद भी, चमकीली हो जाय।

फूल-फूल तितली उड़े, हर डाली लहराय॥

 

जुगनू सारे कहाँ गये, सुबह नज़र ना आय।

रंग बिरंगे फूल हैं, खुशबू मन हर्षाय॥

 

दीप स्वयं पहले जले, पास पतंगा जाय।

ऐसी ज्वाला प्रेम की, दोनों जल मर जाय॥

 

शम्मा जल कर रात भर, प्रियतम को भरमाय ।

परवाना नादान है, चाल समझ नहिं पाय ॥

**************************************************************

3.   सौरभ पाण्डेय जी

छंदमुक्त

लौट आये दिन अचानक 
खो गये थे. 
मानता हूँ रात थी 
फिर तम घना था 
किन्तु नक्षत्रों में कितनी सहमति सी हो गयी थी  
अनमनाते दिन अचानक कुनमुनाये,

लौट आये.
आज से जीयें चलो ! 

फूल-कलियों से 
मुलायम सोच ले कर 
धमनियों के रक्त को आवाज़ दें 
गंध को विस्तार दें 
बस प्यार जीयें 
तितलियों की आस का आधार लें 
पुलकनों में स्वर्ण-किरणों को बटोरे 
एक पल में पार कर सदियाँ इकट्ठी.. 
आज से जीयें चलो ! 

रात्रि की उन्मुक्तता पर 
मौन थे दिन 
क्लांत आँखों में चमक अब रोपते हैं 
सिहरनों से बालते उत्साह-आशा की अवलियाँ 
कौंधती द्युतिमान रेखा खींच कर !
रह-रह अनावृत वक्ष पर इस रात के 
उत्सव मनाते जुगनुओं से 
अर्थ पाये हौसलों के ये बढ़े 
तिल-तिल कढ़े..
आज से जीयें चलो ! 

टेर में नम भाद्रपद की आवृति थी 
स्वप्नजीवी आँख की भाषा नरम थी 
जो सदा बेबात अक्सर भीगती थीं - ओ भले दिन ! 
अब तमन्ना है 
अधर से सूर्य छूलें 
बह चलें मिलजुल दिशाएँ भेदते सब 
उंगलियों में धुँध की कूँची सँभाले 
रौशनी की हो सतत रचना अबाधित 
प्रात-आशा को उगाते चित्त-पट पर 
आज से जीयें चलो !

क्या हुआ मन खौलता ज्वालामुखी है 
पर हृदय में दीवटा ही मान पाये 
लौ रहे मंथर.. शलभ* हम, अर्थ पायें, 
सत्य के आयाम जीते पूर्ण हो जीवन

बढ़ें हम ! 
कर्म अपना 
उत्स उन्नत धर्म का जब पा रहा हो 
आज से जीयें चलो.. !!

*****************************************************

4.   इमरान खान जी 

गज़ल
ऐ मेरे बचपन ले के आ जाना,
तितली ओ जुगनू फूल परवाना।

याद आता है मुझको वो मंज़र,
बातों बातों में ही मचल जाना।

संग तितली के उसको छूने को,
दौड़ते फिरते चोट का खाना।

रात को जुगनू जब निकलते थे,
देखना उनको होके दीवाना।

बाग के फूलों की हिफाज़त में,
सबसे लड़ जाना सबसे टकराना।

रात होने पर जब चराग़ जले,
उन पतंगो का जल के मर जाना।

एक बचपन के दूर जाने से,
खत्म होना ही था ये अफसाना।

 

दोहे

तितली उडती बाग में, धरती से आकाश,

हम भी उड़ते साथ में, पर होते ऐ काश.

 

तितली ढूंढे फूल को, दीप शलभ हैं मीत

अपनी अपनी चाहतें, अपनी अपनी रीत.

 

 जुगनू आते रात में, टिमटिम लेकर साथ,

पीछे कितना भी फिरें, आये कभी न हाथ.

 

किस्मत है ये फूल की, रंग बिरंगी देह,

तोड़े जाएँ डाल से, फिर भी देते नेह.

 

एक पतंगा जल गया, कहते कहते बात,

जल के मर जाना यही, प्रेमी की सौगात.

****************************************************

5.   चौथमल जैन जी 

बन ठन के आती दुल्हन ज्यों ,आया बसन्त बहार। 
अंबिया अमराइयाँ ले रही ,कोकिल करे कुहार।। 
सज धज के डोली चली ,गाये गीत कहार। 
टेसू टहनी लटक गई ,लाल चुनरियाँ सार।। 
गेंदा हजारी मोगरा ,है जिनकी भरमार। 
गुल गुलाब,गुल दाउदी ले ,माली बनाये हार।। 
कानन में गुंजन करे ,अली मद की गुंजार। 
हर डाली यों झुक गई ,स्वागत में सरकार।। 
तितली दल चुम्बन करे ,मधुप करे मधु पान। 
पुष्प पसारे बाहँ ज्यो ,तिस पे लुटाये जान।। 
जुगनू भी चमक-चमक ,करते रोली गान। 
कीट पतंगे आकर यहाँ करते मधु रस पान।। 
मधु मक्खी मधु घट भरे कर पराग का पान। 
पनिहारिन पन-घट करे ,मधु मास का गान।। 
*****************************************************

6.   मोहिनी चोरडिया जी

ऋतु की मार

यौवन का अम्बार
मौसम का मिजाज पहचान,
खोल घूँघट, मुस्कुराई कली
पूरा बदन इत्रदानी और 
मकरंद का मधुघट बनाया
कीटों, जुगनुओं, तितलियों,
पतंगों को आमंत्रण भिजवाया
अभिसार को आतुर पतंगे
शमा पर जलने को तैयार पतंगे
निमंत्रण स्वीकार कर बैठे
परागों पर आ बैठे
झिलमिला कर रोशन किया
प्रेम गलियों को
जुगुनुओं ने
तितलियों ने किया सम्मान
कलियों के निमंत्रण का
स्वयं को
प्रेम के कई रंगों से सजाया
कलियों को रिझाया
मन संयम छूट गया जब
मधुघट लूट लिया फिर...
पराग लूटना और लुटाना  
एक कला है,  
प्रकृति हमें सिखाती 
पहले रिझाना, फिर पाना
और
कली का
सुवासित फूल हो जाना
बसंत बहार हो जाना |
***************************************************
7. राजेश कुमारी जी

 

ग़ज़ल 

की शिकायत फूल ने अपने हबीब से

ख़ार मुझको छू रहे कितने करीब से

 

तितलियाँ भी देख जाने क्यों सहम रही

नर्म  पत्ते भी लगे इनको सलीब से

 

अब भरोसा है कहाँ जग में वफ़ा कहाँ

दोस्त भी अपने लगें देखो रकीब  से

 

जुगनुओं की रौशनी से चाँद है चिढ़ा

बन रहे पैकर चिरागों के अजीब से

 

महफ़िलों में जगमगाती झूमती शमा

बस पतंगे ही  सज़ा पाते नसीब से

 

पर्स में से एक रुपया रख के हाथ पर

ऐश करना आज तो कहते गरीब से

 

नफ़रतों से ‘राज’ कितने दिल हुए तबाह 

डूबती परवाज़ भी देखी करीब से 

 

हास्य कुण्डलिया 

चंदा बरसाता अगन ,सूरज देखो ओस

मूँछ एँठ जुगनू कहे ,चल मैं आया बॉस

चल मैं आया बॉस ,शमा को नाच नचाऊं

कर लूँ दो-दो हाथ ,शलभ को प्रीत सिखाऊं

देख मेरी उड़ान ,भाव भँवरे  का मंदा

तितली करती डाह ,मिटे फूलों पर चंदा

 

************************************************

8.अखंड गहमरी जी


वर्षो बाद आज फिर
आ गये अपने गाँव
वो जानी पहचानी
पगडंडी वो पीपल की छाँव
लहलहाते खेत
वो बाग बगीचे
जाने पहचाने
मेरे अपने
कभी पहचाने
हमारी खुश्‍बू
पदचाल हमारी आवाजे
रस्‍ता निहारते कभी
आम जामुनों के पेड़
जिन पर लगाते सावन में
उमंगो के पेंग
इन बागो की एक एक डाली
कहते बचपन की कहानी
हर फूल भी जाने
हमारी शैतानी की कहानी
रोज शाम चुपके से बागो में धुस जाये
दूर कही बूढ़ा माली चिल्‍लाये
करके आवाज सुनी अनसुनी
कभी भागे हम
तितली जूगनू और पंतगा के पीछे
कभी नन्‍हें हाथो से हम फूल की गर्दन मरोड़े
बह गया  पश्‍चिम की आँधी में सब
भूले खेत खलीहान हम अब
वो ओल्‍हा पाती हम भूले
भूले  सिसुआ पतान
घरो में कैद हमारे बच्‍चे
कहाँ थे हम कहाँ आ गये
कहाँ चले जायेगें
पता नहीं हम पहले सुखी या आज
गाँव से शहर में
गिर पड़े दो अश्‍क मेरे
यादों के बीच
अपनो के बीच
अखंड के बीच

*******************************************************

9.राणा प्रताप सिंह जी

 

गजल

इस जहाँ में हैं जहाँ तितली के पर

दे रहे रंगीनियाँ तितली के पर

 

हमने अपनी जिद में दुनिया बेच दी

रह गए बाकी निशाँ तितली के पर

 

जल ही जाता फूल सा मासूम था  

गर न होते साएबाँ तितली के पर

 

क्या है तेरी जेब में, मालूम है

मुस्कुराकर कह दे हाँ, तितली के पर

 

मुट्ठियों में छटपटाते रह गए

सब के सब थे बेज़बाँ तितली के पर

 

खो गया बच्चों का बचपन साथ में 

खो गए जाने कहाँ तितली के पर

 

अब किताबों में ही ढूंढेंगे इन्हें

बन गए हैं दास्ताँ तितली के पर 

***************************************************

10. डॉ० प्राची सिंह

 

नवगीत 

प्रीत संदेशे 

बाँध कर

अपने परों में

प्रीत के सन्देश को

तितलियाँ जुगनू पतंगे

बाग़ में आने लगे

 

क्या भला ये

फुसफुसाते

पल्लवों के गाँव में,

या निवेदित पल प्रणय के

सुर तरंगित ठाँव में ?

 

द्रुमदलों के

बंद बंधनवार

खुल जाने लगे...

 

नवकुसुम नवपल्लवों से

गंध का

उपहार ले,

राज ऋतु की नव्यता से

ज़िंदगी का सार ले

 

प्रीत पल

मकरंदमय मदिरा मे

रम जाने लगे...

 

मन मलंगी उत्स में

मदमस्त

भँवरे सा चपल,

तरुण तल पर

प्रेम की गाथा

रचे रह-रह मचल

 

चहुँ दिशा में रंग

मदनोत्सव के

छितराने लगे...

****************************************************

11. जितेन्द्र 'गीत' जी 

 

कविता ( अतुकांत)

बेहद खुबसूरत होते हैं

वो पल

जब केवल नजदीकियां रहें

सारी दुनिया एक तरफ

न कोई दुःख, न दर्द

वो प्यारी-प्यारी बतियाँ

बहुत याद आती है

अब तो इस तन्हाई में

कुछ भी नहीं भाता है

तुझ बिन मुझे

सब बे-जान सा लगता है

न जाने क्यूँ?

 फूलों की छुअन भी अब

चुभने लगी है

यह रंग-बिरंगी तितलियाँ

बेरंग सी हो गई है

रात के पहर में

टिमटिमाते यह जुगनू

न जाने क्यूँ?

आँखों से ओझल से

होने लगे है

बहुत शोर सा लगता है

जब भी कोई पतंगा

गुनगुना रहा हो

न जाने क्यूँ?

सब कुछ तो बदला-बदला सा

लगने लगा है

अब यह तन्हाई मुझे

जीने नहीं देती

न जाने क्यूँ?

******************************************************

12. कल्पना रामानी जी 

 

 गज़ल

बदला मौसम, फिर बसंत का, हुआ आगमन।

खिला खुशनुमा, फूल-तितलियों, वाला उपवन।

 

ऋतु रानी का, रूप निरखकर, प्रेम अगन में

हुआ पतंगों, का भी जलने, को आतुर मन।

 

पींगें भरने, लगे प्यार  की, भँवरे कलियाँ,

लहराता लख, हरित पीत वसुधा का दामन।

 

पल-पल झरते, पात चतुर्दिश, बिखरे-बिखरे,

रस-सुगंध से, सींच रहे हैं, सारा आँगन।

 

टिमटिम करती, देख जुगनुओं, वाली रैना,

खा जाता है, मात चाँदनी, का भी यौवन।

 

लगता है ज्यों, उतरी भू पर, एक अप्सरा,

प्रीत-प्रीत बन, जाता है यह, मदमाता मन। 

 

काश! गीतमय, दिन बसंत के, कभी न बीतें,

और बीत जाए इनमें, यह सारा जीवन।  

****************************************************

13. अशोक कुमार रक्ताले जी

 

घनाक्षारी छंद

बेटियों से माताएं हैं माताओं से बेटियाँ हैं,

बेटी से ही सारे घर भर में उमंग है,

कोई कहे तितलियाँ कोई कहे फूल इन्हें,

कोई कहे छोरी बिन डोर की पतंग है,

 

जानता है मन का पतंगा हर हाल यहाँ,

होती घर-घर बिटिया ही जब तंग है,

कहीं पे दहेज़ कहीं आग के हवाले किया,

कहीं बिटिया की व्याभिचारियों से जंग है  ||   

 

जुगनू सी रोशनी भी नहीं मिल पाती यहाँ,

कहने को समाज में उजाला ही उजाला है,

काले अँधियारे मन, काले ही वसन धारें,

काले दिल वालों की जुबानो पर ताला है.

 

चुप है समाज बिटिया के अधिकार पे,

कहीं छीने भाई बाप बेटी का निवाला है,

माताएं तो जन्म देने से ही कतराने लगी,

बिटिया का एक प्रभु तू ही रखवाला है ||

 

गज़ल

2122    2122    2122    2122

खिल गई हैं मस्त कलियाँ, फूल हैं हर डाल पर अब |

आम पर है बौर का सिंगार, खुश हर हाल पर अब ||

 

अब बसंती हो गया मधुमास यह धानी चुनर से,

लग रहे हैं गाल गोरी के गुलाबी लाल पर अब |

 

उड़ रही हैं तितलियाँ भँवरे लिए मद पुष्प से हर,

और जुगनू टिमटिमाते रात के घुप भाल पर अब |

 

खेत में सरसों खिली टेसू खिला वन ग्राम में तो,

भोर में महुआ गिरा, हर शाख से हर पाल पर अब |

 

कूकती है आम्र तरु पर भोर कोयल काग बोले,

आसमानों में पतंगे हैं पतंगे ताल पर अब |

****************************************************

14. शशि पुरवार जी

 

गज़ल

फूल बागों में खिले ये सबके मन भाते भी हैं।
मंदिरों के नाम तोड़े रोज ये जाते भी हैं।

फूल माला में गुंथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल मुरझाते भी हैं।

फूल का हर रूप-रंग और सुरभि भी पहचान है
फूल डाली पर खिले भौरों को ललचाते भी हैं।

फूल चंपा के खिलें या फिर चमेली के खिले 
फूल सारे बाग़ के मधुबन को महकाते भी हैं।

भोर उपवन की सदा तितली से ही गुलजार है

फूलों का मकरंद पीने भौरे मँडराते भी हैं।

पेड़ पौधों से सदा हरियाली जीवन में रहे
फूल पत्ते पेड़ का सौन्दर्य दरसाते भी हैं।
******************************************************

15.  नादिर खान जी 

 

हाइकू

प्यार की शिक्षा

तप करे पतंगा

अग्नि परीक्षा ।।

 

गम की हाला

प्राणों की आहुती

अग्नि की माला

 

खुद को हारा

अमर प्रेम गाथा

पतिंगा न्यारा

 

शब्दों का बाग

फूल हैं रचनाएं

मधुर राग  ।।

 

लो फूल खिला

खुशियाँ ही खुशियाँ

मन मुस्काया  ।।

 

रोज़ डे आया

फूलों की बली चढ़ी

जी घबराया  ।।

 

पैरों की धूल

बड़े बूढ़ों का साथ

खिलते फूल

 

ऐलाने जंग

लामबन्द जुगनू

एक है रंग  ।।

 

घना अंधेरा

जुगनुओं की जंग

फैले उजाला  ।।

 

एक सदका

मन तितली हुआ

फैली खुशियाँ  ।।

 

तितली बन

यादों का उपवन

उड़ता मन  ।।

**************************************************

16. शिज्जू शकूर जी 

 

दोहे

  

रंग बिरंगे रूप हैं, कुदरत तेरे देखl

फूल करे तितली करे, इन सबका उल्लेखll

 

फूलों ही के नाम पे, बने ग़ज़ल औ गीतl

फूलों से ही हो प्रकट, छिपी ह्रदय की प्रीतll

 

इर्द गिर्द इक दीप के, करे पतंगें नृत्यl

इन दोनों का साथ है, एक पुराना सत्यll

 

एक परी मुझको मिली, सुबह -सुबह ही आजl

नर्म- नर्म है फूल सी, मोहक है अंदाजll

 

जैसे तारों की चमक, जुगनू चमके रात।
कभी- कभी उनमें लगे, दीपों वाली बात।।

 

अतुकांत

स्वच्छ चाँदनी

टिमटिमाते हुये तारों वाली रात

मद्धम रौशनी में

आँखें उनींदी सी

सहसा खुल जाती हैं

और दिखते हैं

खिड़की से बाहर

ख्वाब से

कुछ पेड़ों के पैकर

और

तारे जुगनु से

 

सुबह की नर्म धूप में

बाग में दिखें

फूलों की नई पुरानी शाखों पर

चमकती शबनम की बूँदें,

हर फूल का आलिंगन करती सी

फूल दर फूल मँडराती हैं तितलियाँ

 

शाम के वक्त

डूबते सूरज के साथ

जल उठे दिये भी

और, काम से लौटे

पिता की तरफ भागते बच्चों से

लौ की ओर लपकते हैं

पतंगे

**********************************************************

17. सरिता भाटिया जी

 

हायकू

हाइकु रंगा 

जुगुनू तितलियाँ 

फूल पतंगा 

 

ख़ुशी अनंत 
निर्मल है आकाश 
दिल बसंत 

 

खिले हैं फूल 
रंगीन तितलियाँ 
उड़ा पतंगा

 

धरा शृंगार 
कुसुमाकर लाया 
पीली ओढ़नी

 

सूरज भागा 
दूर क्षितिज पर 
जुगुनू जागा

 

आँख का धोखा 
टिम टिम जुगुनू
उतरे तारे

 

प्रेरणा बड़ी 
संघर्ष ही जीवन 
छोटा जुगुनू

आग से नाता 
दीवाने ये पतंगे 
पनपा प्यार

 

मन पतंगा 
इन्द्रधनुषी फूल 
बासंती प्यार

 

मन मचला 
रंगीन तितलियाँ 
प्रसन्न बच्चे

***************************************************

18. केवल प्रसाद जी

 

दोहा..........तितली रानी

तितली रानी प्रेम की, सुलझाती है डोर।
बच्चे पीछे भागते, मन के प्यारे चोर।।1


तितली आती धूप में, भाते रूप अनूप।
चंचल तन मन प्यार का, दिखलाती सदरूप।।2


फूल कली पर बैठकर, सिखलाती है नेह।
आचल जैसे पंख से, दुलराती सस्नेह।।3


बच्चे धागा प्रेम के, तितली उड़ी पतंग।
धरा गगन को जोड़ते, मन में लिए उमंग।।4


तितली रानी क्या करे, लोग-बाग बदरंग।
जाति-पाति अति लोभ की,कालिख रखते संग।।5


दूर देश की लाडली, तितली सब की नाज।
पर संकट में फस गयी, रंग- बिरंगे राज।।6


तितली का अब अपहरण, करते देश-विदेश।
क्रूर कलह तकरार से, फैलाते हैं द्वेष।।7

तितली पकड़ी प्रेम से, कापी में रख नाज।
गाज गिरे जब देखते, जान रही नहि लाज।।8

****************************************************

19. रमेश कुमार चौहान 

 

कुण्डलिया छंद

इन्द्रधनुष की ले छटा, आये राज बसंत ।
कामदेव के पुष्‍प सर, व्यापे सृष्‍टि अनंत।।
व्यापे सृष्‍टि अनंत, झूमती डाली कहुवा।
टेसू लाल गुलाल, आम्र पित मादक महुवा ।।
वितरित करे प्रसाद, समेटे बूंद पियुश की ।
सुमन खिले बहुरंग, छटा यह इन्द्रधनष की ।

तितली पर बहुरंग है, रंग रंग के फूल ।
झूमे तितली फूल पर, मेटे सबके शूल ।।
मेटे सबके शूल, हृदय तल ऊर्जा भरती ।
आबद्ध प्रेम पाश, सुधा रस घोले जगती ।। जगती-जगत
तितली रंग बिरंग, सुकुन मन भरती तितली ।
बच्चो की भी चाह, हाथ में आये तितली ।।

जुगनू चमके रात में, तारा का आभास ।
तारा काफी दूर है, जुगनू अपने पास ।।
जुगनू अपने पास, रोशनी नभ तो भरता ।
अंधियारा है घूप, उसे कुछ ना कुछ हरता ।।
अपने निज उर ज्ञान, रखो जस प्रकाश जुगनू ।
टिम टिम करते रोज, रात में चमके जुगनू ।।

शलभ है मित दीप का, सदा सदा का साथ ।
वह तो आशिक नूर का, प्राण रखे निज हाथ ।
प्राण रखे निज हाथ, नूर से मिलना चाहे ।
प्रबल मिलन की चाह, प्राण निज छुटे न काहे ।।
प्रदक्षिणा करे चहु ओर, कहो ना उसे गरभ है  ।
जीवन अपना वार, प्रेम पर मरे शलभ है*  ।।

 

ताँका  (पाँच पंक्तियों और 5,7,5,7,7 कुल 31 वर्णों के लघु कविता)
1.तितली रानी
सुवासित सुमन
पुष्‍प दीवानी
आलोकित चमन
नाचती नचाती है ।

2.पुष्‍प की डाली
रंग बिरंगे फूल
हर्षित आली
मदहोश हृदय
कोमल पंखुडि़यां ।

3.जुगनू देख
लहर लहरायें
चमके तारे
निज उर प्रकाश
डगर बगराये ।

4.कैसी आशिकी
जल मरे पतंगा
जीवन लक्ष्य
मिलना प्रियतम
एक तरफा प्यार ।

*****************************************************

20. सुरिंदर रत्ती जी

 

स्वर्ग से सुंदर फूलों के बाग़ 

तितलियाँ गायें काफी राग 

जुगनू रात में गुनगुनाये 

पतन्गा कहे जागे भाग .....

रेशमी किरनो का कोमल स्पर्श 

कलियाँ खिली पाया हर्ष 

तितलियाँ भवरों को चिढ़ाये 

कहे बैरी हैं ये नाग .....

सूरज जाते लालीमा फैलाये 

कीट-पतंगे पत्तियों को डराये 

संध्या कुमारी करे स्वागत 

जुगनू पधारे जले चिराग .....

टीम-टीम तारों की भली कहानी 

जुगनू पगडण्डी पे करे नादानी 

मनचला पतंगा हुआ दिवाना 

खुद जले तो कभी लगाये आग .....

राम ने अद्भुत रचना बनायीं 

जीव-जंतु न जाने गहरायी

चर-अचर का विचित्र सुभाव

"रत्ती" किसीका न, ज़रा सहभाग 

**************************************************

21.सत्यनारायण सिंह जी

 

रोला छंद 

आते ही रसराज, बाग़ बन उपवन फूले ।
तितली जुगनू फूल, पतंगा सुध बुध भूले ।।
रंग बिरंगे पंख, सजा मतवाली तितली।
फूलों का रस चूस, रही नखराली तितली।१।

 

हुये सभी मदहोश, मदन पटु संत लुभायें।

खोल प्रेम पट कोश, आज सौगात लुटायें।।

घोर अँधेरी रात, प्रणय की बात सुहाये ।

जुगनू बन फिर दीप, खोज निज प्रिया रिझाये।२।

 

ऋतु वसंत की शान, जान उपवन कहलाता।

चढे ईश के शीश, दर्प तज जग महकाता।।

रंग बिरंगे फूल, सदा मन को हर्षाते।

कोमलता का पाठ, हमें है फूल सिखाते।३।

हुआ दबंग वसंत, संग पा मीत अनंगा।

प्रेम अनल जल राख, हुआ मन आज पतंगा।।

करे निछावर प्राण, प्रेम पर जो मिट जाता।   

वही पतंगा प्रेम, अमर जग नाम कमाता।४।

*******************************************************

22. लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

 

पांच दोहे

तितली की अठखेलियाँ, वन उपवन के पास

रंग बिरंगी तितलियाँ, करे फूल पर वास |

 

मंडराते है भंवरे, वन उपवन में ख़ास,

भँवरों की गुनगुन सुने, आवे जब मधुमास |

 

सूरज गया विदेश में, जुगनू की अब रात,

हुई विदाई भोर में, कौन करे अब बात |

 

जुगनू चमके रात में, दिन होते आघात,

जब सूरज हो सामने, उसकी क्या औकात |

 

कहे पतंगा शान से, देख त्याग का रंग

मेरा भी तो त्याग है, दीपक बाती संग |

********************************************************

23. विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी  

 

रोला छंद
फूलों सा मधुहास, घोल जग को महकाऊँ।
या तितली सम डोल, डोल खुशियाँ बिखराऊँ॥
जुगनू बन घनघोर, तिमिर में कुछ प्रकाश भर दूँ।
शलभ सृदश मैं प्रेम, यज्ञ में जीवन आहुति दूँ॥

नहीं सिर्फ उपमान, प्रकृति अभिधान सभी हैं।
प्रतिपग देते सीख, किन्तु अज्ञान हमीं हैं॥
कुछ लें इनसे सीख, नहीं जीवन से उलझें।
खुशियाँ, हास, प्रकाश, प्रेम मय जीवन समझें॥

 

****************************************************

24. सरिता भाटिया जी

 

दोहे 

फूल खिले हर डाल हैं खुश है आज बयार 
रंग बिरंगी तितलियाँ मन में भरती प्यार /


बसंती जो हवा चली ,प्रणय निभाता रीत 
बौराए हैं आम जो कोयल गाती गीत /


टिम टिम करते रात में, तारे जैसी देह 
ओझल होते भोर में ,जुगनू बाँटें नेह /


मन को हर्षाते सदा ,रंग बिरंगे फूल 
कोमलता का ज्ञान दें, नहीं बाँटते शूल /

 

कह परवाना या शलभ,सच्चा है यह मीत 
अनल से पतंगा मिले ,सदा निभाये प्रीत /

 

आते ही मधुमास के उपवन मद में चूर 
प्रेम फूल औ' तितलियाँ बढ़ा रहे हैं नूर /

*********************************************************

25. अन्नपूर्णा बाजपेई जी

अतुकांत

बागों बहारों और खलिहानों मे

बांसो बीच झुरमुटों मे

मधुवन और आम्र कुंजों मे

चहचहाते फुदकते पंछी

गाते गीत प्रणय के

श्यामल भौंरे और तितलियाँ

फुली सरसों , कुमुद सरोवर

नाना भांति फूल फूलते

प्रकृति की गोद ऐसी

फलती फूलती वसुंधरा वैसी

क्या कहूँ किन्तु कुम्हलाया 

है मन का सरोवर मेरा 

भावों के दीप झिलमिलाये ऐसे

रागिनी मे  कुछ जुगुनू  जैसे 

नेह का राग सुनाता 

जीवन को निःस्वार वारता 

 एक पतंगा हो जैसे 

प्रकंपित अधर है शुष्क 

ज्यों पात विहीन वृक्ष । 

**************************************************************

Views: 4209

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीया प्राची दी सर्वप्रथम क्षमा प्रार्थी हूँ इस बार महोत्सव अंक 40 में किन्हीं निजी कारणवश भाग नहीं ले सका, सभी रचनाओं का एक साथ संकलन होने से जो रचनाएँ महोत्सव में पढ़ने से रह गईं थीं यहाँ पढ़ने को मिली, सभी रचनाओं को एक साथ पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता है. सभी रचनाकारों की रचनाओं को एक साथ संकलित करने हेतु आदरणीय प्राची दी एवं समस्त प्रतिभागी गुरुजनों, अग्रजों एवं मित्रों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.

प्रिय अनुज अरुन ,

सक्रीय सदस्य ख़ास तौर से कार्यकारणी सदस्यों से लाइव उत्सवों में सहभागिता और सभी सदस्यों के उत्साहवर्धन व अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करने की अपेक्षा हो ही जाती है और ऐसा न होने पर कमी भी अवश्य ही महसूस होती है...

लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि निजी व कार्यालयी व्यस्तताएं हम सभी को यदा-कदा बाध्य कर ही देती हैं की हम चाह कर भी उपस्थित नहीं हो पाते.

संकलन के पन्नों से गुज़ारना आपको रुचा, तो संकलन कर्म सार्थक हुआ 

धन्यवाद 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 40

विषय - "तितली जुगनू फूल पतंगा" ओबो एडमिन टीम और डॉ. प्राची सिंह का धन्यवाद, इसके साथ अपने कवी मित्रो जीतेन्द्र गीत जी, अशोक कुमार रक्तले जी, सौरभ पाण्डेय साहब, डॉ. प्राची सिंह, योगराज प्रभाकर जी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, कल्पना रामानी जी, रमेश कुमार चौहान, अखिलेश कृष्णा श्रीवास्तव जी, और अन्नपूर्णा वाजपयी जी का तहे दिल से शुक्रिया, आप सबने मेरी इक छोटी सी रचना को सराहा - सुरिन्दर  रत्ती मुम्बई  

लाइव महोत्सव में आपकी प्रस्तुति द्वारा सहभागिता, सार्थक पाठन व उत्साहवर्धन के साथ ही संकलन के पन्नों से आपको गुज़रते देखना अच्छा लगा आ० सुरिंदर रत्ती जी 

सक्रीय सार्थक सहयोग सतत बना रहे..

सादर.

आदरणीया डॉ प्राची जी सर्व प्रथम सफल मंच संचालन एवं इस श्रम साध्य कार्य के लिए आपको हार्दिक बधाई देना चाहूंगा. तदुपरांत आपसे निवेदन है कि रचना में निम्नवत संशोधन किसी कारणवश रह गया है कृपया संशोधन कर अनुग्रहित करें सादर

आते ही रसराज, बाग़ बन उपवन फूले ।
तितली जुगनू फूल, पतंगा सुध बुध भूले ।।

रंग बिरंगे पंख, सजा मतवाली तितली।
फूलों का रस चूस, रही नखराली तितली।१।

संशोधन कर दिया गया है आ० सत्यनारायण सिंह जी 

सादर.

आदरणीया प्राचीजी, 

महा उत्सव - 40 के  सफल शुभारम्भ,  सफल संचालन, सफल सम्पादन और सफल समापन के लिए  मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥

सादर.................... अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव 

आदरणीय योगराज भाई, 

महा उत्सव - 40 के सुंदर   शुभारम्भ, " कह - मुकरियाँ " पर एक बार फिर मेरी बधाई स्वीकार करें ।  सचमुच  आनंद आया । 

आदरणिया प्राची दीदी महोत्सव के सफल सन्चालन हेतु आपको भुरिश बधाइ!`
सभी रचनाए एकत्रित रूप से पढ़कर सुखद अनुभूति होरही है.

संचालन व संकलन कर्म को मान देने के लिए धन्यवाद भाई विन्ध्येश्वरी जी 

आदरणीया मंच संचालिका , प्राची जी ,  भतीजे की शादी के कारण महा उत्सव मे  भाग नही ले पाया , क्षमाप्रार्थी हूँ । संकलित रचना  एक साथ पढ के बहुत आनन्द हुआ , सफल आयोजन के लिये आपको बधाइयाँ । सभी प्रतिभागियों को बहुत बहुत बधाइयाँ । आदरणीय योगराज भाई जी को नई  विधा - कह मुकरियाँ  जानने का अवसर देने के लिये बहुत शुक्रिया और रचना क्रे  लिये विशेष बधाइयाँ ॥

आयोजन में आपकी अनुपस्थिति पर आश्चर्य था... पर कारण नहीं पता था... आपको भतीजे के विवाह की हार्दिक बधाई आ० गिरिराज भंडारी जी 

आपको कह मुकरियाँ पढ़ कर आनंद आया, मुझे ये जान बहुत अच्छा लगा. आपके लिए भी जानना रोचक होगा की अमीर खुसरों के युग की ये विधा लुप्त प्राय हो गयी थी जिसे पुनर्जीवित करने का श्रेय साथ ही विधा के मानक स्वरुप को सिस्टेमेटिक रूप से देखने व कलमबद्ध करने का श्रेय आ० प्रधान सम्पादक महोदय व आ० सौरभ पाण्डेय जी के माध्यम से ओबीओ को ही जाता है.

इस विधा को जानना समझना आपके लिए बहुत रोचक होगा... आयोजन के पन्नों में उस पोस्ट पर काफी चर्चा है इस विधा केबारे में और लिंक भी साझा किये गए हैं..आप उन्हें अवश्य ही देखिएगा 

सादर.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service