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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा"-अंक 32 में प्रस्तुत सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

तरही मशायरा अंक-32 में ग़ज़ल के तीन मूलभूत तत्व रदीफ़, काफ़िया और बहर को ध्यान में रखते हुए अशुद्ध मिसरों को लाल रंग से चिन्हित किया गया है,
हम आभारी है आदरणीय श्री वीनस केशरी जी के जिनके अथक प्रयासों से अशुद्ध मिसरों को चिन्हित किया जा सका है.

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नोट - कुछ अशआर में फ़िक्र (२१), सुब्ह(२१) आदि को क्रमशः फिकर(१२), सुबह(१२) अनुसार हिन्दी शब्दावली मानकर तद्भव रूप में भी बाँधा गया है जो हिन्दी भाषा में सर्व सम्मत स्वीकार्य हैं
ऐसे मिसरों को लाल नहीं किया गया है.

-- वीनस केशरी

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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)


वो जो गुलशन में महकता नाम है
हर नज़र में आज भी इक राम है ।

 

वक़्त पीरी काम है न धाम है
बस ज़माने का यही इलज़ाम है ।

 

जो किसी सूरत कभी झुकते नही
टूट जाते हैं यही अंजाम है ।

 

रोयेंगे अब अहले मयखाना मुझ़े
हाँथ में ये आखरी अब जाम है ।

 

आबरू है अपने हिन्दुस्तान की
जो है लक्षमन जिसका भाई राम है ।

 

फल की इच्छा कौन करता है यहाँ
नेकियाँ करना हमारा काम है ।

 

जो वतन के वास्ते देते हैं जान
अब किताबों में उन्ही का नाम है ।

 

आप की नज़र-ए-इनायत के सबब
"अब यहाँ आराम ही आराम है " ।

 

महके महके फूल हैं 'गुलशन' यहाँ
महकी महकी आज की ये शाम है |

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Mohd Nayab


मुरली वाले का बड़ा ही नाम है 
गोपियों का जो हुआ घनशयाम है

 

आज कल उनपर बड़ा इनआम है 
जो ज़माने में बहुत बदनाम है

 

प्यार से कहते हैं मोहन भी उसे 
शहर मथुरा जिसका गोकुल धाम है

 

मेहर हो मुझपर भी मेरे साकिया 
देख ले हाथों में खाली जाम है

 

ग़म के आंसू जो मेरी आँखों में हैं 
क्या मोहब्बत का यही इनआम है

 

इक धमाका शहर में शायद हुआ 
हर तरफ ये आज जो कोहराम है

 

वो समझते हैं धमाका मौत का 
ज़ालिमों का आखरी अंजाम है

 

इश्क में जीना है क्या, मरना है क्या 
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

जो ग़ज़ल 'नायाब' लिखते हैं यहाँ 
नाम उनका ही यहाँ गुमनाम है |

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Tilak Raj Kapoor

 

जेब में गर आपके भी दाम है

आइये बतलाइये क्‍या काम है।

 

प्‍यार का ही दोस्‍तों अंजाम है
नाम हो पाया नहीं, बदनाम है।

 

अब किसे फ़ुर्सत तुम्‍हारी याद की
दर्द है, तन्‍हाई है, औ जाम है।

 

हैं नई तहज़ीब की मजबूरियॉं 
हैं पिताजी डैड, अम्‍मा माम है।

 

ग़म बढ़ा तो याद की महफि़ल सजी 
अब यहॉं आराम ही आराम है।

 

कीजिये कुछ अक्‍ल की बातें मियॉं
कट चुकी है दोपहर अब शाम है।

 

तिश्‍नगी ही तिश्‍नगी ही तिश्‍नगी
जि़न्‍दगी शायद इसी का नाम है।

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Rajesh kumari

 

=======1=========
बेवड़े के हाथ में अब ज़ाम है
झिलमिलाई नालियों की शाम है

 

होश में तो रास्ता मैं रोकती
सामने अब हर जतन नाकाम है

 

मान जायेगा सुना था प्यार से
छूट देने का यही अंजाम है

 

नालियों में लेट कर वो सोचता
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

भाग आई छोड़ कर माँ बाप को
बद गुमानी का यही ईनाम है

 

प्यार का है ये नशा कह्ता मुझे
ये सुरा तो बेवज़ह बदनाम है

 

बोलता था डॉक्टर हूँ मैं ब ड़ा
बाद में निकला अदद हज्ज़ाम है

 

ज़िन्दगी अब 'राज' ये कैसे कटे
रोज़ पीने पर छिड़े संग्राम है

 

========2=========
गीत से जिसके बहलती शाम है
माँ उसी संगीत का ही नाम है

 

माँ बिना तो नज़्म भी पूरी नही
हर ग़ज़ल की तर्ज़ भी नाकाम है

 

आज जिस आकाश पर मैं उड़ रही
ये उसी आशीष का परिणाम है

 

गोद में उसकी हमेशा सोचती
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

जिंदगी की दौड़ जब मैं जीतती 
आज भी देती मुझे ईनाम है

 

याद में उसकी भरी संदूकची
ये धरोहर प्यार की बेदाम है

 

दीप रोशन कर मुझे ख़ुद बुझ गया
रोशनी अब बाँटना निज़ काम है

 

माँ नही तो 'राज'अब ये सोचती
बिन तिरे मेरा कहाँ अब धाम है

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Harjeet Singh Khalsa

 

==========1=========
चार सूं इक ही तलब का नाम है,
है कहाँ साक़ी कहाँ पर जाम है .//1//

इस जहाँ को जीतकर क्या पा लिया,
हो चुके जब इश्क में नाकाम है, //2//

फिर उदासी छा रही है क्या करें,
आपके बिन ढल रही फिर शाम है, //3//

कशमकश ही ज़िन्दगी बनती गई,
ये वफ़ा का मिल रहा ईनाम है, //4//

पूछिए मत इश्क में है हाल क्या 
दिल जिगर धड़कन सभी नीलाम है //5//

लाख समझाया मगर सुनता न था,
खामखा ये दिल हुआ बदनाम है ..........//6//

यूँ अकेले जी रहे है ज़िन्दगी,
अब यहाँ आराम ही आराम है ....... //7//

 

===========2========
साक़िया कैसा पिलाया जाम है,
होश में आने से दिल नाकाम है |

कर दिया जब से तुम्हारे नाम दिन,
फिर सुबह अपनी न अपनी शाम है |

आरजू हसरत सभी चुप हो गये,
अब यहाँ आराम ही आराम है |

लुट गए यूँ इश्क के बाज़ार में,
बे पता है, बेखबर, बे दाम है |

रातभर करते सितारे गुफ्तगू,
ये नजारा अब यहाँ पर आम है |

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Abhinav Arun

जबकि सबकुछ उस खुदा का काम है ,
आदमी बेकार ही बदनाम है ।१।

 

है मुझे कुछ कुछ लकीरों पर यकीं ,
बोलिए ताबीज़ का क्या दाम है ।२।

 

जो किसी मठ में नहीं अफसर नहीं ,
हाँ वही शाइर यहाँ बेनाम है । ३।

 

क्या लिखा कितना लिखा मत पूछिये ,
चापलूसी का मिला इन्आम है ।४।

 

नोयडाओं की भरी झोली मगर ,
मोतिहारी आज भी गुमनाम है । ५।

 

आज भी हम सब गुलामी जी रहे ,
आज भी शासक उधाड़े चाम है ।६।

 

हाथ कंगन के लिए भी आरसी ,
न्याय का अब ये तरीका आम है ।७।

 

रौब रुतबा राजपथ पर चल रहा ,
आप कहते थे ये रस्ता आम है ।८।

 

हम सभी का नाम है हिन्दोस्तां ,
बाद में मैसूर या रतलाम है ।९।

 

गीत ग़ज़लों का तरन्नुम है यहाँ ,
अब यहाँ आराम ही आराम है ।१०।

 

ताजगी तेरी बनारस की सुबह ,
सादगी तेरी अवध की शाम है ।११।

 

कुमार गौरव अजीतेन्दु

 

वीरता अब हो रही गुमनाम है।

कायरों की रोज रंगीं शाम है।

 

हाल भारी है बुरा इस देश का,

मच रहा चहुँओर ही कुहराम है।

 

भौंकता "नापाक" सीमा लाँघ के,

दंड अपना क्यों पड़ा बेकाम है।

 

घूमते हैं सेठ बनके लोग वो,

भीख से जिनका भरा गोदाम है।

 

बाँकुरों के हाथ बाँधे "वोट" ने,

मान अपना हो रहा नीलाम है।

 

पामरों का झुंड भारत बन गया,

जा रहा जग को यही पैगाम है।

 

चोट जो खाई हमारे गर्व ने,

दीखती हमपर बड़ा इलजाम है।

 

बोल दें कैसे बता "गौरव" हमें,

अब यहाँ आराम ही आराम है।

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SANDEEP KUMAR PATEL

==========1==========
शहर की क्या शब सहर क्या शाम है 
रेप चोरी लूट हत्या आम है

 

बीच में ही शहर के इक बाग था 
प्रेमियों का आज तीरथ धाम है

 

हर बुराई आदमी ही कर रहा 
झूठ है हम सब में काबिज राम है

 

दर्द उस आशिक़ को कैसे हो पता 
जिसकी महबूबा ही झंडू बाम है

 

इश्क़ का करते नहीं आगाज़ वो 
सोचते हैं होना क्या अंजाम है

 

हमको लो रोटी मकां कपड़ा मिला 
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

दीप बुझते शहर भर में तेल बिन 
खामखा चलती हवा बदनाम है

 

============2=========
उम्र भर “मैं” को रखा गुमनाम है 
कर लिया हमने कठिन ये काम है

 

बढ़ रहा आतंक शासक सो रहे 
खामखा इक कौम क्यूँ बदनाम है

 

लुट रहे थे हम मगर चुप ही रहे
आज अस्मत हो रही नीलाम है

 

माँ की गोदी में रखा अपना जो सर 
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

चंद सिक्कों की चमक में खो गए 
आज चुप हो उसका ही परिणाम है

 

खुद ब खुद सत्ता थमा दी चोर को 
मुफलिसी उसका बड़ा इनआम है

 

पत्थरों को ढूंढता हूँ “दीप” मैं 
सुन रखा है अब उन्ही में राम है

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Mohan Begowal


=========1===========
बदल युग लेता जब अपना नाम है,
साथ वो ले के आता नया पैगाम है ।

 

हम नहीं हर कोई इस में बह गया,
गाँव का चाहे शहर यही अंजाम है ।

 

'खाश' बन कर चलता जो था कभी,
आज बन कर चल रहा वो आम है ।

 

बस इतना सा वो करता है सफर, 
टूट जाता है बदलता कभी जाम है ।

 

बोलता अब क्यूँ बस्ती का आदमी,
लग रहा उस पे अब ये इलज़ाम है ।

 

===========2===========
युग बदल लेता जो अपना नाम है I
साथ वो लाता नया पैगाम है I

 

बिक रहा हर कोई जब बाज़ार में ,
शहर गाँव अब, भुगत रहें अंजाम है I

 

'खाश' बन कर चल रहा था जो कभी, 
आज बन कर चल रहा वो आम है I

 

गिलास करता है बस यही एक सफर, 
टूट जाता है यां बदले जाम है I

 

बोलती अब है क्यूँ बस्ती मेरी ?
लगता उसपे बस यही इलज़ाम है I

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Er. Ganesh Jee "Bagi"

 

आंटियों ने कर दिया बदनाम है, 
बीवी हेडक मुन्नी झंडू बाम है ।

 

सात है उसकी बहन सुन खुश हुआ,
जो थी छुटकी वो ही मेरे नाम है ।

 

किचकिचाती थी गई वो मायके,
अब यहाँ आराम ही आराम है ।

 

शेर सुन बीवी भड़क सकती मेरी,
मुन्नी उसकी इक बहन का नाम है ।

 

राज़ है क्या लाल चश्मे का सुनो,
जल पियो तो यूँ लगे ज्यों ज़ाम है ।

 

दाम ईंधन का बढ़े मेरी बला,
लिफ्ट ले चलना हमारा काम है ।

 

पत्नी बोली मिल गया "बागी" पिया,
सब बुरे कर्मो का ही परिणाम है |

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विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय

 

जिसके सिर जितना बड़ा इल्जाम है।
वो यहां उतना ही आला नाम है॥

 

कर सको तो जुल्म मेरे तय करो।
लूट हत्या जालसाजी काम है॥

 

जानते हो देश की पहचान क्या?
भेड़ राजा शेर अब गुमनाम है॥

 

है वही ज्ञानी गुणी धीवान भी।
पास जिसके बाहुबल छल दाम है॥

 

तय करे जो देश की तकदीर को।
बन गया देखो विधाता आम है॥

 

मुफलिसी से तंग आकर मर गया।
अब यहां आराम ही आराम है॥

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Majaz Sultanpuri

 

रुबरु मेरे जो इक गुलफाम है 
गुफ्तगू उससे ग़ज़ल का नाम है

 

अम्न से बढकर कोई शेवा नहीं 
सारी दुनिया को मेरा पैग़ाम है

 

मज्हबो मैं इब्ने आदम बट गया 
कोई ईसाई कोई इस्लाम है

 

सिर्फ भाषा भेद है वर्ना मियां 
जो यहाँ रहमान है वो राम है

 

मेरे मदफन ने कहा मुझसे 'मजाज़'
अब यहाँ आराम ही आराम है ।

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वीनस केसरी

 

खुल के हंसने का यही अंजाम है |
हर खुशी के साथ इक कुहराम है |

 

खुदकुशी से मस्अले हल हो गए, 
लिख गया वो, ज़िंदगी नाकाम है |

 

हद तो ये है, कोई हैरां तक नहीं, 
गम की बोली पर खुशी नीलाम है |

 

हक के खातिर बोलना आसां था पर, 
बागियों में अब हमारा नाम है |

 

प्यास का दरिया से इक रिश्ता है जो, 
खूबसूरत है मगर बेनाम है |

 

सारे मुद्दों को हटा कर देखिये, 
खूबसूरत आज भी आसाम है |

 

पहुंचे जन्नत और वाइज़ कह पड़े, 
अब यहाँ आराम ही आराम है |

 

उस हज़ल पर तब्सिरा करते हैं लोग, 
पढ़ की जिसको गम मिले इनआम है |

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Ashok Kumar Raktale

 

खुल गई है नींद अब क्या काम है/

फिर न कहदे आखरी ये जाम है/

 

कब सुनी बातें कही मैंने मगर,
नाम होता पर मेरा बदनाम है/

 

तन गई उनकी भवें लो जब कहा,
बस करो जी और कितने काम हैं/

 

चल दिए हैं बिन कहे ही काम पर,
अब यहाँ आराम ही आराम है/

 

रब न जाने क्या रहा अब देखना,
कौन जाने कौनसा मोकाम है/

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Arvind Kumar


देख लो, ये ज़िन्दगी-ए-आम है,
भूख खौली, बासी ठंडी शाम है।

 

किसकी खातिर मैं यहाँ रातें जगूँ,
दूर जा बैठा मेरा घनशाम है।

 

इक शज़र पे मैंने लायी है खिज़ां,
सर पे मेरे ये नया इलज़ाम है।

 

तर्क-ए-उल्फत सोच कर रोये मगर,
अब यहाँ आराम ही आराम है।

 

मुड़ न पाओगे, जो उस जानिब गए,
बच के चलना, राह-ए- सच बदनाम है।

 

शौक से जलते नहीं चूल्हे कभी,
शायरी इक भूलता सा नाम है।

 

बुतकदों में ढूंढता हूँ फिर तुझे,
फिर मुझे तुझसे पड़ा कुछ काम है।

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Saurabh Pandey

 

साधना है, योग है, व्यायाम है 

घर चलाना घोर तप का नाम है ||1||

 

इश्क़ में खुद को फ़ना कर बोल तू 
अब यहाँ आराम ही आराम है ||2||

 

आज होगा दफ़्न कल की कब्र में 
है पता फिर भी मचा कुहराम है ||3||

 

न्याय करता है ग़ज़ब का वक़्त भी 
था कभी इक शोर, अब गुमनाम है ||4||

 

थी मुलायम जिस वज़ह उसकी ज़ुबां 
वो उसे अब दे रही इनआम है ||5||

 

भूख की सारी लड़ाई जिस लिए 
पट गया चूहों.. . वही गोदाम है ||6||

 

सोचता है बाप इस बाज़ार में 
बच्चियों को क्या खबर क्या दाम है ||7||

 

झील है तू, रोज़ मत नज़दीक आ 
एक पत्थर हूँ मुझे इल्ज़ाम है ||8||

 

लोग जाने क्यों कहें खारा पहर 
पास आ ’सौरभ’ सुहानी शाम है ||9||

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बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)
=========1==========
जुल्फ में तेरी कटी हर शाम है
अब सिवा तेरे कहां आराम है

 

जाम तो खाली सभी मैंने किये
तिश्नगी नाहक हुई बदनाम है

 

जख्म जो तूने छुआ मेरा, लगा
अब यहां आराम ही आराम है

 

रोशनी तो थी यहां होनी मगर
गुम अंधेरों में सिसकती शाम है

 

रात के सोए अभी जागे नहीं
वो जो लाए सुब्ह का पैगाम है

 

========2==========
राहों के निशां का ये काम है
मुझ पर घिसटने का इल्जाम है

 

पत्ते बज रहे हैं साज की तरह
न साकी, न मयकदा, न जाम है

 

अपनी सूरत आईने में देख लो
इस वक्त संवरना ही काम है

 

तूफां गुजर जाए तो ही कहना
अब यहां आराम ही आराम है

 

रौशनी की तलाश में पहुंचे यहां 
बताइए यहां क्या इंतजाम है

 

धुआं धुआं सा छाया है हर तरफ
लोग कहते हैं यहां बहुत घाम है

 

तेरी बातों का बुरा नहीं मानते अब
पहले से ही हम पर ये इल्जाम है

 

पांव कुछ इस तरह उखड़ने लगे
सम्हलने की हर कोशिश नाकाम है

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AVINASH S BAGDE


झूठ की बस्ती में सच गुमनाम है,
हर तरफ कोहराम ही कोहराम है. 

ये चलन है आजकल की सोच का!
बगल में छूरी ओ मुँह में राम है .


भीड़ में हर शय नहायी है यहाँ ,
बढती आबादी का ये अंजाम है .

 

भ्रूण-हत्या पर बहस होने लगी,
देखिये कितना सुखद परिणाम है 

बाद बरसों के मिला अनुदान जो,
अब यहाँ आराम ही आराम है ...

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Arun Srivastava


सुब्ह को कुहराम सहमी शाम है
बात क्या?मस्जिद पे लिक्खा राम है

 

बुतकदा-मस्जिद अलग क्यों?एक जब
चाँद सूरज और सुब्ह - ओ - शाम है

 

आबला -पा , दर्दे दिल , तिश्ना-लबी
ये मुहब्बत का हसीं अंजाम है

 

क्या जरूरी है कि खुशबूदार हो
फूल वो जिसका जियादः दाम है

 

रख दिया क़दमों तले दस्तार तक
बाप है बेटी का ये इल्जाम है

 

थक चुके पंखों में भी परवाज देख
कौन कहता है कि वो नाकाम है

 

शब को बच्चे भूख से रोते रहे
अब अना उसके लिए बेकाम है

 

थक - थकाकर आ गए है कब्र तक
अब यहाँ आराम ही आराम है

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Dr.Prachi Singh

 

साए में आतंक के आवाम है 

ये सियासी चाल का अंजाम है //

 

बादशा भी खाली हाथों जायगा 
यह सिकंदर का दिया पैगाम है //

 

सीखचों की कैद में जकड़ा गया 
इश्क का जिसके भी सर इलज़ाम है //

 

आ भुला दें आज हर शिकवा गिला 
टूटता घर इनका ही परिणाम है //

 

हो कली में कैद भौंरे ने कहा 
अब यहाँ आराम ही आराम है //

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Shashi Mehra


लब पे रहता राम, दिल में शाम है |
नाम लेना रह गया, अब काम है ||

 

खुद घिरा है मुश्किलों में, आदमी |
कर रहा भगवान् को बदनाम है ||

 

पाँच के संजोग से है, जग रचा ||
रात-दिन, दोपहर, सुबह-शाम है

 

दिल के हाथों हर कोई, मजबूर है |
ज़हन से लेता नहीं, वो काम है ||

 

चैन की है चाह, और बेचैन है |
ज़िन्दगी का, भूल के, अंज़ाम है ||

 

पाप का रस्ता चुना, जब सुन लिया |
कोशिश कभी, जाती नहीं, नाकाम है ||

 

हूँ मुकद्दस धाम पे, और शाम है |
अब यहाँ, आराम ही आराम है ||

 

बस ‘शशि’ का सब को, यह पैगाम है |
मौत तक ही, ज़िन्दगी का गाम है ||

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आशीष नैथानी 'सलिल'

 

जगमगाते शह्र की इक शाम है 
जिन्दगी फिरसे तुम्हारे नाम है ।

 

मेरे हाथों में है गुल की पंखुड़ी 
और दिल में इश्क का पैगाम है ।

 

है नशा कुछ और ही इस याद में 
ये भजन, गीता, जुबाँ पर राम है ।

 

गेसुओं की छांह में आकर लगा 
अब यहाँ आराम ही आराम है

 

तुम न आये, मैं रहा चौराह पर 
इश्क का कैसा हुआ अंजाम है ।

 

अब न दो तालीम इज्जत की 'सलिल' 
यूँ भी तुमपर प्रीत का इल्जाम है ।

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Satish mapatpuri


आज दुनिया में उन्हीं का नाम है .
सबसे ज्यादा जो यहाँ बदनाम है .

 

दम तो भरता है पड़ोसी दोस्ती का .
पर सिला में मिलता कत्लेआम है .

 

रह गया मन्दर और मस्जिद ही यहाँ .
अब वहाँ रहता खुदा - ना राम है .

 

चढ़ गये कुर्सी तो फिर क्या सोचना .
अब यहाँ आराम ही आराम है .

 

वक्त कैसा आ गया मापतपुरी.
रब का बन्दा ही यहाँ नाकाम है .

***********************************

sanjiv verma 'salil'
==========1==========
स्नेह के हाथों बिका बेदाम है.
जो उसी को मिला अल्लाह-राम है.

 

मन थका, तन चाहता विश्राम है. 
मुरझता गुल झर रहा निष्काम है.

 

अब यहाँ आराम ही आराम है.
गर हुए बदनाम तो भी नाम है..

 

जग गया मजदूर सूरज भोर में
बिन दिहाड़ी कर रहा चुप काम है..

 

नग्नता निज लाज का शव धो रही.
मन सिसकता तन बिका बेदाम है..

 

चन्द्रमा ने चन्द्रिका से हँस कहा
प्यार ही तो प्यार का परिणाम है..

 

चल 'सलिल' बन नीव का पत्थर कहीं
कलश बनना मौत का पैगाम है..

 

===========2=========
शुभ किया आगाज़ शुभ अंजाम है. 
काम उत्तम वही जो निष्काम है..

 

आँक अपना मोल जग कुछ भी कहे 
सत्य-शिव-सुन्दर सदा बेदाम है..

 

काम में डूबा न खुद को भूलकर.
जो बशर उसका जतन बेकाम है..

 

रूह सच की जिबह कर तन कह रहा 
अब यहाँ आराम ही आराम है..

 

तोड़ गुल गुलशन को वीरां का रहा.
जो उसी का नाम क्यों गुलफाम है?

 

नहीं दाना मयस्सर नेता कहे
कर लिया आयात अब बादाम है..

 

चाहता है हर बशर सीता मिले. 
बना खुद रावण, न बनता राम है..

 

भूख की सिसकी न कोई सुन रहा
प्यार की हिचकी 'सलिल' नाकाम है..

 

'सलिल' ऐसी भोर देखी ही नहीं.
जिसकी किस्मत नहीं बनना शाम है..

 

मस्त मैं खुद में कहे कुछ भी 'सलिल'
ऐ खुदाया! तू ही मेरा नाम है..

***********************************

mrs manjari pandey

 

युग मशीनों का इंसा बेकाम है

नित नए खोजों का ये अंजाम है।

 

होठ पे मय के छलकते जाम है
नाम उनके ही गुज़रती शाम है।

 

कर गए जो काम करना था किया
अब यहाँ आराम ही आराम है।

 

सिल के मुह बैठे रहो तो ठीक है
खुल गया जो मौत ही ईनाम है।

 

हाथ के छालों को देखा "मन्जरी "
फूट कर भी मिल न पाया दाम है।

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Arun kumar nigam

 

बहुरिया के हाथ कच्चा आम है
सास खुश है, अनकहा पैगाम है |

 

वो समझता ही नहीं संकेत को
क्या कहूँ वो पूरा झण्डू बाम है |

 

झुनझुने के शोर से चुप हो गया
आम इंसां का यही तो काम है |

 

काम धंधे से मिली फुरसत हमें
साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है |

 

छोड़ आए हम जमाने की फिकर
अब यहाँ आराम ही आराम है |

नोट : ग़ज़लों का संकलन और चिन्हित करने का कार्य बहुत ही सावधानी के साथ किया गया है, यदि कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो सदस्य गण कृपया संज्ञान में लायें ।

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Replies to This Discussion

आदरणीय एडमिन जी, गज़लों का एक जगह संकलन और सर्वोचित आँकलन जैसा श्रमसाध्य  कार्य हेतु हार्दिक आभार |  

तरही मुशायरा अंक - ३२ की सभी ग़ज़लों का संकलन और इस मंच की बन गयी एक परिपाटी के अनुसार ग़ज़ल के नियमों के अंतर्गत बेबह्र मिसरों को चिह्नित करने के श्रमसाध्य कार्य के पश्चात आज इस तथ्य को स्वीकारते हुए अत्यंत खुशी हो रही है कि मिसरों में लाल रंग को ढूँढना पड़ रहा है !  तात्पर्य यह कि सद्यः समाप्त तरही मुशायरा अंक - ३२ का आयोजन कई मायनों में विशिष्ट हुआ है.

ज्यादा दिन नहीं हुए, बस आठ-नौ माह पूर्व तक एक वह भी समय था कि किन्हीं दो-तीन जानकार शायरों की ग़ज़लों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ग़ज़ल होती थी जिनके मिसरों में जहाँ-तहाँ लाल रंग नहीं हुआ करता था. कई दफ़े तो कुछ ग़ज़लों में तरह-मिसरा को छोड़ कर सारी ग़ज़ल ही लाल रंग में होती थी.  और आज का दिन है ! .. . वाह वाह वाह !!

कहना न होगा यह आश्वस्ति भरा समय जागरुक सदस्यों की आनुशासिक संलग्नता और निरंतर अभ्यास के कारण ही आया है.  इसके पीछे अवश्य-अवश्य ही ग़ज़लकारों की स्वप्रेरित लगन और ग़ज़ल के मूलभूत नियमों के प्रति उनके मन में आदरभाव का होना ही है. यह भी एक तथ्य है कि जिन ग़ज़लकारों के मिसरों में लाल रंग व्यापा है वे ग़ज़ल विधा के मूलभूत नियमों को मान दें और तदनुरूप अभ्यास करें. हर विधा का अपना एक अलग वैशिष्ट्य होता है जिसे स्वीकारना और उसके मूलभूत नियमों को मानना ग़ज़लकारों के मानसिक अनुशासन का परिचायक होता है.

यह अवश्य है कि मिसरों को ग़ज़लों के मूलभूत नियमों के अनुसार साधने के क्रम में कई-कई ग़ज़लकारों को आवश्यक भावों को नियत करने या उन्हें ग़ज़लों में पिरोने में कठिनाई हो रही है. लेकिन यह आरम्भिक कठिनाई मात्र है. आनेवाले समय में भाव, कहन और इंगितों से भरी उन्नत ग़ज़लें भी सुनने-पढ़ने को मिलेंगीं, यह अवश्य है.

लेकिन अभी समय है आपस में एक दूसरे को बधाइयाँ और शुभकामनाएँ देने का. .. यह जानते हुए कि आगे अभी आसमां और भी है... . 

शुभ-शुभ

निश्चित ही बहर के साथ साथ कहन में भी एक नई ऊँचाई देखने को मिल रही है, कई कई गज़लें बहुत उच्च कहन के साथ सामने आई हैं ......

इस तरही के साथ ओ बी ओ तरही मुशाइरे ने नई छलाँग लगाई है .... और निश्चित ही... ''अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं ''

सही कहा, भाई वीनस.

मुझे याद है, यदि आपने ऐसी परिपाटी का श्रीगणेश न किया होता तो ग़ज़लकारों के मन में ग़ज़ल की विधा के मूलभूत नियमों के प्रति इतना आग्रह ही न होता. पहली बार बेबह्र मिसरों को लाल रंग में देख कर सब भक्क रह गये थे. अब नये सदस्यों को जिनकी ग़ज़ल में लाल रंग हैं, इस ओर गंभीरता से ध्यान देना है.

सभी ग़ज़लों को एक स्थान पर देखना - पढना एक शानदार अनुभव है । भावो के सागर में गोते लगाने जैसा । काफी कुछ सीखने को मिल रहा है ओ बी ओ की पाठशाला में । और ये तो रिजल्ट निकलने जैसा है ।गनीमत है मेरे शेर लाल निशान से बच गए वरना उनकी खैर नहीं थी :-) पर ये सब परिश्रम की अपेक्षा रखता है गुनने और बुनने की प्रक्रिया के सन्दर्भ में । सभी शायरों और मंच संचालक महोदय को हार्दिक साधुवाद !!! यात्रा जारी है और सही कहा पिक्चर अभी बाकी है हमें ऑस्कर का सफ़र तय करना है !!! ओ बी ओ को इस मुकाम पर देख कर हर्ष होता है , बधाई समूची टीम को !!!

सभी ग़ज़लें इक जगह एकत्रित करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई.   आदरणीय संपादक महोदय जी को
आदरणीय गुरुदेव सादर प्रणाम
सच कहा गुरुदेव इस बार के मुशायरे मे बेबह्र अश्आर बहुत ही कम हैं ...............और सच कहूँ इसका इक मात्र कारण आप अग्रजों का मार्गदर्शन ही है, आपने कदम कदम पर जो हिदायतें दी हैं उससे ही उत्तरोत्तर सुधार का कार्य बिना मार खाए संभव हो सका है, प्रेम से इस तरह सीखने सिखाने का मौहौल और कहाँ , हाँ ये भी सत्य है सीखने वाले की ललक पर भी निर्भर करता है के वो सीखना चाहता है के नही, कभी कभी किसी किसी को सीखना ही नही भाता और दी गयी सलाह भी बुरी लगती है तब फिर उसका कोई इलाज नही हैं, हमारे यहाँ पागलों का चारागर कोई नहीं है ,,,,,गुरुदेव ये स्नेह और आशीष की छाया यूँ ही बनाए रखिए सादर आभार

laal rang se range hone kaa kaaran aaur maalom pad jaaye to sone pe suhaga hoga ...

इस पोस्ट की सबसे पहली पंक्ति है -  तरही मशायरा अंक-32 में ग़ज़ल के तीन मूलभूत तत्व रदीफ़, काफ़िया और बहर को ध्यान में रखते हुए अशुद्ध मिसरों को लाल रंग से चिन्हित किया गया है.

क्या यही कारण नहीं हैं, आशुतोषभाईजी ?

.त्रुटियों को चिन्हित करने का  अत्यंत सराहनीय कार्य आपने किया है। बहुत बहुत बधाई हम जैसों को सीखने को मिलेगा।

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मिथिलेश वामनकर updated their profile
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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