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''ढूँढने के लिए भगवान तो निकलें बाहर
आओ मंदिर से कोई चीज चुराई जाए''
पूरी गजल ही खूबसूरत लिखी है, धर्मेन्द्र जी. बधाई स्वीकारें.
खोजते खोजते मिल जाए सुहाना बचपन
आज बहनों की कोई चीज छुपाई जाए
kamaal ka sher hai dharmendra jee waah !
चाँद के दिल में जरा आग लगाई जाए
आओ सूरज से कोई रात बचाई जाए
क्या बात क्या बात धर्मेन्द्र भाई.....बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने......
मुझे भी ये शेर सबसे अच्छा लगा|
खोजते खोजते मिल जाए सुहाना बचपन
आज बहनों की कोई चीज छुपाई जाए
//खोजते खोजते मिल जाए सुहाना बचपन
आज बहनों की कोई चीज छुपाई जाए
चाँद के दिल में जरा आग लगाई जाए
आओ सूरज से कोई रात बचाई जाए//
गज़ब के शेर काहे आपने ! पूरी की पूरी गज़ल ही बहुत सुन्दर बन पड़ी है ! बहुत-बहुत बधाई धर्मेन्द्र जी !
इस प्रयास को मेरा सलाम. पंक्तियाँ अच्छी है. ग़ज़ल के संस्कार से सधी होती तो और मज़ा आ जाता. लेकिन रचना की दृष्टि से इनकी गंभीरता को स्वीकार करता हूँ. शुभकामनाएँ.
हा हा हा हा हा ............. श्योर?!! ...
सीख नं. - १
कुछ सुनाने को हुए यार तो सुनना जानो
बात है आम, मग़र, फिर से ये सिखायी जाए ??
सीख नं. - २
सौरभ ही पुकारो मुझे, कि, सुनने में भला हैबात ये बोल चुका फिर-फिर क्या बतायी जाए ??
आज की है तालीम बस इतनी.... आगे मुझे खुद सीखना है.. हा हा हा हा....
:-))))
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