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वाह बहुत खूब सूफियाना अंदाज़ मन को भा गया -
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था'
कभी ना तुम झुकाना सर झुकाना गर तो उस के दर
जो परवा की ज़माने की तो मर जाना भी होता था
शिकम की आग में जलकर बना कुंदन कलेजा ये
इन्हीं बच्चों की खातिर खुद से लड़ जाना भी होता था
हवादिस की फ़सीलें तब दिलों के बीच थीं कायम
मगर फिर भी मेरे मालिक ये निपटाना भी होता था
नहीं है बदनसीबी अब नसीबी दर पे दस्तक दे
जरा सी बात पर तेरा वो अड़ जाना भी होता था
वो मैखाना अभी भी है तेरे आने से बिस्मिल्ला
पिलाई थी जिन आँखों से वो पैमाना भी होता था
मोहब्बत है वही अब भी उसे बख्शा हवाओं नें
कभी रोशन चरागों से जो बुतखाना भी होता था
वो अफसाने सभी कायम अभी भी याद हैं लेकिन
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
--अम्बरीष श्रीवास्तव
नहीं भूला वो याराना दीवाना जो भी होता था
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था
बहुत खूब अम्बरीश भाई...बहुत बढ़िया लिखा है आपने....शुभकामनायें..
नहीं भूला वो याराना दीवाना जो भी होता था
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था
कुछ जल्दबाज़ी हो गयी भाई।
'नहीं भूला वो याराना दीवाना जो भी होता था
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था'
यह मत्ले का शेर है और इसमें दोनों पंक्तियों में रदीफ़ और का़फि़या निबाहना आवश्यक है।
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था
जल्दी में आप जो को दीवाना के पहले के स्थान पर बाद में लगा बैठे।
'नहीं भूला वो याराना जो दीवाना भी होता था
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था'
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