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कब्र में आज कुछ नमीं सी है !

कब्र में आज कुछ नमीं सी है,

शबे-माह कौन यहाँ आया है !

कहाँ हैं वो ..जिनके अश्कों नें,

अज़ल को ......ख्व़ाब से जगाया है !!

दूर वीरानें में .....दरख्तों पर ,

ये किसने चाँद को लटकाया है !

उम्र बस यूँ हि.....गुज़र जायेगी,

वक़्त बीता ...कब लौट के आया है !!

चले थे साथ ...मगर चल न सके,

एहसासात ........बेनवा निकले ! 

दर्द की दर्ज़ को भी सी न  सके,

रफूगर ही ......बेवफ़ा निकले !!

ता उम्र मिला न रज्ज़ाक मुझको,

हमें तो बस ......गुर्बतों ने पाला है !

नहीं शिकवा मुझे ज़माने से ,

मेरा अंदाज़ ही निराला है !!

  (राजू आहूजा )

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

अज़ल > मृत्यु  / बेनवा > कंगाल / दर्ज़ > फटन / अहसासात > अनुभव / रज्जाक > अन्नदाता / ग़ुरबत > कंगाली 

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Comment

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Comment by rajkumarahuja on April 28, 2015 at 5:28pm

धन्यवाद, माननीया नेहा अग्रवाल जी !

Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 2:25pm
वाह

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