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फिर वही कहानी “नारी व्यथा”....

फिर वही कहानी “नारी व्यथा”

आज फिर सुर्ख़ियों में पढ़कर एक नारी की व्यथा,
व्यथित कर गयी मेरे मन को स्वतः
नारी के दर्द में लिपटे ये शब्द संजीव हो उठे हैं
इस समाज के दम्भी पुरुष
कभी किसी दीवार के पार उतर के निहारना
नारी और पुरुष के रिश्ते की उधडन नजर आएगी तुम्हे
कलाइयों को कसके भींचता हुआ, खींचता है अपनी ओर
बिस्तर पर रेंगते हुए, बदन को कुचलता है
बेबसी और लाचारी में सिसकती है,
दबी सहमी नारी की देह पर ठहाकों से लिखता है,
अपने समय की कब्र में, एक कटुता का रिश्ता
अपने जख्मों को निहारती
लहुलुहान रिश्तों को जेहनी गुलामी का नाम देकर
सहलाती है, पुचकारती है, दर्द में बिन आंसुओं के रोती है
जिन्दगी भर उस गुलामी को सहेजती है, ऐ खुदा तेरी बनाई ये नारी.....
माथे की बिंदी से पाँव के बिछुओं तक
में लिखती हैं पुरुष का नाम
चूड़ियों का कहकशा, जर्द आँखों की जलन
बेबसी कहीं विलीन क्यों नहीं होती 
पल पल ठंडी राख सा होता उसका बदन,
जलते हुए अक्षरों का दर्द मिटा नहीं पाता
कि फिर लिख देता है पुरुष अपने बल से
नारी की देह पे क्रूरता की परिभाषा
बाजुओं की पकड़ से निस्तेज होती रूह,
कुचल देती है नारी की संवेदनाओं को
लूट के अस्मत, ये व्यभिचारी खेलते हैं भावनाओं से,
तड़फती कोख का दर्द लिए
निरीह प्राणी की तरह जीवन जीती है, ऐ खुदा तेरी बनाई हुई नारी.........

.

सुनीता दोहरे ...

मौलिक एवम अप्रकाशित....

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 7:23pm

और, नारी उसी पुरुष की प्रतिकृति को जन्म दे फूली नहीं समाती जिसके गर्वमर्दन को अपना श्राप समझती जीवन भर झींकती रहती है. यहीं नारी हारती है और अहमन्य पुरुष जीतता है.

लेकिन, एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न, कि ये परिपूरक परस्पर प्रतिद्वंद्वी कबसे हो गये ? कि, सम्बन्धों में जीत और हार के पहलू सिक्कों की तरह ढल गये. उस विन्दु तक आने में कितना नारी गली और कितना पुरुष सड़ा.

आएँ, हम इस रचना के परिप्रेक्ष्य में इसे विचारें. 

एक व्यवहार को शब्द देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया.

सादर

Comment by sunita dohare on July 3, 2014 at 11:00pm

 mrs manjari pandey जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .... सादर प्रणाम !

Comment by sunita dohare on July 3, 2014 at 10:59pm

 Laxman Prasad Ladiwala जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .... नमस्कार !!!

Comment by sunita dohare on July 3, 2014 at 10:59pm

शिज्जु शकूर जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .... सादर प्रणाम !

Comment by sunita dohare on July 3, 2014 at 10:57pm

Priyanka singh जी , आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .... सादर प्रणाम !

Comment by sunita dohare on July 3, 2014 at 10:57pm

rajesh kumari जी , रचना की सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .... सादर प्रणाम 

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:56pm
आदरणीया सुनीता दोहरे जी सामयिक अनुभूति पर अच्छी रचना। बहुत बहुत साधुवाद
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2014 at 12:54pm

दर्द की पीड़ा को दर्शाती मार्मिक भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई आद सुनीता दोहरे जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2014 at 8:05am

दिल को छूती हुई रचना, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Priyanka singh on July 2, 2014 at 5:08pm

नारी की वेदना, पीड़ा को उकेरती आपकी रचना मन को विचलित कर गयी .....आज का घिनोना सत्य ....

बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको ...

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