For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये पल पल

गहराता कभी न

खत्म होने वाला

सन्नाटा

 

नहीं ....ये शान्ति नहीं है

चुप्पी भी नहीं है

न ....विराम है

ज़िन्दगी का

बहते समय का, गुज़रते दिनों का

 

फिर क्यूँ ये

ठहरा सा लगता है

जैसे

बांध के टांग दिया है

दीवार पर

इन बीतते दिनों को

शामों को, रातों को और

अलगे हर दिन को

 

कभी कभी

यूँ लगता है जैसे

कई सालों से यही है समय

यही था और इसी तरह रहेगा

शायद कुछ

खोया है इसका भी

या अपनी सुध खो

बैठा है....

 

क्या करू ?

कैसे जगाऊं इसे

थपथपी लगाऊं....गालों पर

इसका सर सहला दूँ या

पानी उड़ेल दूँ इसके चेहरे पर

चिकुटी काटूं हाथों पर या

पैरों में गुलगुला दूँ .....क्या करू

कैसे सुध में लाऊं

कैसे जगाऊं इसे

 

पड़ा तो ऐसे है

मानो फिर न उठाना हो

क्या कहूँ इसको

जो ये जागे...फिर

अपनी जात सा

तेज़ क़दमों संग भागे

तेरी चंचलता ही भाती है हमें

चल उठ चल ....बहुत हुआ

नियति तुझे बुलाती है

अब उठ चल .....

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

प्रियंका......

Views: 567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on July 10, 2014 at 2:47pm
आदरणीय सौरभ सर .... बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया जान कर ....सराहना हेतु कोटि-कोटि धन्यवाद ....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2014 at 6:10pm

इस मंच पर आपकी पहली सार्थक रचना के लिए बधाई  .. . आपने और भी अच्छी रचनायें प्रस्तुत की हैं, परन्तु इस रचना ने मुझे आपके रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त किया है.

हार्दिक बधाइयाँ.

टंकण त्रुटियों के प्रति संवेदनशील रहें.

Comment by Priyanka singh on July 5, 2014 at 8:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया ब्रजेश सर ... 

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2014 at 7:25pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by Priyanka singh on July 5, 2014 at 5:26pm

आदरणीय विजय सर 

आपकी पसंदगी का बहुत बहुत आभार ....यूँही सराहते रहे .... आभार सर 

Comment by vijay nikore on July 3, 2014 at 4:20pm

आपकी रचना के खयालों में ताज़गी है, समय के प्रति कल्पना मनोहारी है। 

संवेद्नपूर्ण भावों की रसधारा से आप्लावित आपकी अति सुन्दर कविता मन को छू गई।

ढेर बधाई एवं सराहना के साथ।

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:54pm

शिज्जू सर ...बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...सराहते रहे ...

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:54pm

जितेन्द्र जी ...रचना आपको पसंद आई अच्छा लगा ....बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:53pm

आदरणीय गोपाल सर .... रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका .... 

Comment by Priyanka singh on July 3, 2014 at 12:50pm
मित्र मानव ....रचना की पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service