For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय ईशावस्योपनिषद के रूप में प्रसिद्ध है जिसके पन्द्रहवें श्लोक के माध्यम से सूर्य की महत्ता को प्रतिस्थापित किया गया है.

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

हिरण्मयेन पात्रेण यानि परम ज्ञान के हिरण्मय पात्र या सुवर्ण पात्र का मुख पिहित है या ढका हुआ है. अर्थात, ब्रह्म (सत्य) का द्वार प्रखर ऊर्जस्विता के तेजस से ढका हुआ है. तत्त्वं पूषन अपावृणु अर्थात्, हे पूषन यानि सूर्य, इसे हटायें, ताकि हमें चेतन के मूल का तत्त्व दीख सके. 


कहने का तात्पर्य है, कि परमब्रह्म का ज्ञान सूर्य की प्रखरतम उपस्थिति से आच्छादित है, उसकी अत्यन्त प्रखर किरणों के कारण हम उस ज्ञान का लाभ अपनी भौतिक आँखों से नहीं ले सकते. जो परमात्मा वहाँ स्थित है, वही अपने भीतर विद्यमान है. हम ध्यान द्वारा ही उसे देख पाते हैं. हे पूषन (सूर्य) ! आप अपनी तेजस तनिक मद्धिम करें, ताकि हम मनुष्य भी दिव्य दृष्टि से उसका अवलोकन कर सकें या अनुभव कर हृदयंगम कर सकें, देख सकें.  सूर्य की इसी तेजस्विता का सार्थक बखान है आदित्य-हृदय स्तोत्र. जिसका पाठ कर श्रीराम काल विशेष में अपनी मानसिक मलीनता से छुटकारा पा सके थे.

कहने का तात्पर्य है कि सूर्य कई-कई रूपों में जड़-चेतन को प्रभावित करता रहा है. उसी के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का माध्यम है सूर्योपासना. सूर्य पृथ्वी ही नहीं समस्त मण्डल की प्रकृति का जनक और पालनहार है. हमारी लौकिक सत्ता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण से लेकर महाकार खगोलीय पिण्ड तक उसकी ऊर्जा से भासित ही नहीं, चेतनावस्था में है. उसी सूर्य के प्रति मानवीय कृतज्ञता का द्योतक है राष्ट्र के हृदय प्रदेश यानि बिहार और उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल में श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाने वाला अति पवित्र पर्व - छठ पर्व.

कहते हैं कि स्कंदपुराण तथा सम्बन्धित वाङ्गमय में इस पर्व की पूजाविधि वर्णित है.

चैत्र तथा कार्तिक के महीने संक्रान्तिकाल के महीने हैं. इस समय पृथ्वी का तापमान और पृथ्वी की प्रकृति का परिचायक ऋतुएँ परिवर्तन के क्रम से गुजरती हैं. तभी तो फाल्गुन, चैत्र, कार्तिक और अग्रहण मास में समस्त पर्वों का मूल अर्थ शरीर की ऊर्जा को संतुष्ट करना होता है.

छठ का महापर्व भी चैत्र और कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के चतुर्थी से सप्तमी के प्रथम प्रहर तक मनाया जाता है. इन दिनों में ब्रह्म के प्रतीक सूर्य और प्रकृति का प्रतीक छठमाता की पूजा-अर्चना होती है. पुरुषार्थ के चारों अवयवों --धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष--  की प्राप्ति के प्रति सचेत करने के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत करते ये अनुशासन मानव के दीर्घायु होने का विन्दु और कारण स्पष्ट करते हैं.

प्रतिदिन दीखने वाला सूर्योदय जहाँ सकारात्मक ऊर्जा का परिचायक है, वहीं अस्ताचल की ओर जाता सूर्य कार्यसिद्धि एवं परिपूर्णता का द्योतक है. छठ पर्व ही एक ऐसा पर्व है जो हमें ऊर्जस्विता को नमन करने के पूर्व कार्यसिद्धि एवं दायित्व-निर्वहन के प्रारूप की ओर कृतज्ञता से झुकने की सीख देता है.

आगत के प्रति उत्साहित होना प्रकृतिजन्य है किन्तु, विगत के प्रति नत होने तथा उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने की प्रेरणा देता यह पर्व परिपूर्णता को समझने के प्रति जनमानस को सुप्रेरित करता है.  हमारे घरों में होने वाली प्रतिदिन की संध्या-बाती या संझापूजा वस्तुतः उसी डूबते सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन ही तो है.

सूर्य की पूजा का मूल मगध क्षेत्र माना जाता है. औरंगाबाद (बिहार) के पास देव नामक स्थान में इस महापर्व का शताब्दियों से साक्षी रहा है. जनश्रुति है कि मगध क्षेत्र के ब्राह्मण और वैद्य सूर्योपासना से अति दीर्घजीवन का मूलमंत्र जान गये थे. सूर्य की महत्ता को प्रतिस्थापित करता हुआ यह पर्व उसी ज्ञान का प्रतिस्थापना है. महाभारतकाल में कर्ण सूर्य को बहुत सम्मान देते थे. इसी कारण कई लोग कर्ण के राज्य अंग (वर्तमान भागलपुर, बिहार) से भी सूर्योपासना को जोड़ते हैं. षष्ठी या छठी माता आद्यशक्ति का छठा भाग मानी जाती हैं. इसी कारण चैत्र और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आद्यशक्ति की पूजा होती है जिसे सूर्योपासना से जोड़ दिया गया है ताकि सूर्य की शक्ति तथा षष्ठी का लोकहितकारी प्रभाव संयुज्ज्य स्वीकार्य हो सके. 

लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहन का है.

जनसाधारण द्वारा कार्तिक मास में षष्ठी माता या छठ माता के पूजन का विशेष महातम मान लिया गया है. छठ माता वात्सल्य की देवी हैं. नवजातों, शिशुओं और बच्चों के सफल स्वास्थ्य तथा दीर्घजीवन के लिए माता-पिता छठ का महाव्रत लेते हैं.  इसी कारण इस क्षेत्र में बच्चे के जन्म के बाद छठे दिन उसकी छठी मनायी जाती है.

जनश्रुति के अनुसार मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी.

विधान :
यह पर्व सात्विकता और शुचिता को अत्यंत उच्च स्थान देने की सीख देता है. चैत्र या कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मानसिक पवित्रता और शारीरिक शुचिता को सम्मान देते हुए व्रतधारी स्वयं को सामान्य जीवन और दैनिक कार्य प्रणालियों से विलग कर लेते हैं. यह दिन ’नहाय-खाय’ के दिन से प्रसिद्ध है.  परिवार के सभी सदस्य इन दिनों शारीरिक शुचिता और मानसिक पवित्रता का बहुत ध्यान रखते हैं. लौकी की सब्जी और अरहर  दाल के साथ भात का सेवन विशेष रूप से किया जाता है.

पंचमी को बिना नमक का भोजन किया जाता है. विशेष महातम है गुड़ की खीर का जिसे ’रसियाव’ कहते हैं.  प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्य इस रसियाव को गेहूँ के आटे की रोटी पर शुद्ध घी के साथ ग्रहण करते हैं. यह व्यवहार ’खड़ना’ या ’खरना’ के नाम से जाना जाता है. व्रतियों का उपवास इसी दिन सायं से प्रारम्भ होता है.

षष्ठी के दिन सायं नदी, सरोवर या तालाब में स्नान कर अस्ताचल के सूर्य की उपासना की जाती है और दूध की धार या गंगाजल से अर्घ्य दिया जाता है. सप्तमी को प्रातःकाल में उगते हुए सूर्य की उपासना करते हुए दूध की धार या गंगाजल से अर्घ्य दिया जाता है और फिर प्रसाद ग्रहण कर व्रत को तोड़ा जाता है. गन्ने, नारियल, मौसमी फल के साथ हरी हल्दी तथा गुड़ और गेहूँ के आटे से बने पकवानों आदि को बाँस की पट्टियों से बने दउरे और सूप में या डाला में सजा कर घाट तक ले जाते हैं.  इसी डाले के कारण इस पर्व को डालाछठ के नाम से भी जाना जाता है. ध्यातव्य है कि डाले में सारे पदार्थ स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.

इस पर्व के वैज्ञानिक प्रारूप को लोक-व्यवहार से जोड़ कर कुछ रूढ़ियाँ बनायी गयीं. ताकि जनमानस लोक-व्यवहार के क्रम में ही उच्च लाभ का धारक हो सके. मान्यताएँ और परिपाटियाँ उसी का लौकिक रूप हैं.

इन्हें और प्रगाढ़ करने के लिए विशेष गीत गाये जाते हैं. इस पर्व का अत्यंत लोकप्रिय गीत ’केरवा जे फरेला घवद से, ओह पर सूगा मेड़ाराय.. मारबों मैं सुगवा धनुख से आदित होहूँ ना सहाय..’ इसका शब्दार्थ यों है -- जो केला घवद (केला के फलों का समुच्चय) में फलता है उस पर (लोभवश) सुग्गा मँडराता है. मैं उस (लालची) सुग्गे को धनुष से मारूँगा/मारूँगी, हे आदित्य, आप सहाय्य न हों.

इसी क्रम में केला के बाद गीत में अन्य सभी फलों को शुमार किया जाता है जो डाला में रखे होते हैं. या, ’कांचहीं बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय..’  अर्थात, कच्चे बाँस की (मेरी) बहँगी है जो (मेरे कंधों पर) लचकती हुई जाती है. आदि-आदि.

यह विदित तो हो ही चुका होगा कि यह एकमात्र पर्व है जिसमें परम पुरुष और प्रकृति की एक साथ पूजा होती है और उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया जाता है. प्रतीकों के माध्यम से पर्व मनाने की परम्परा के कारण, दुःख है, कि जन-समाज बाद में पर्वों के मूल अर्थ को गौण करता चला जाता है और उत्सवधर्मिता का रूढ़ प्रारूप त्यौहारी जनोन्माद उसके मन पर हावी होता चला जाता है. यही कारण है कि छठ पूजा को मनाने के क्रम में जो अति पवित्रता अपनायी जाती थी और सात्विकता उसका मूल हुआ करती थी, उसका दिनोंदिन लोप होता जा रहा है.

आवश्यकता है, प्रकृति के मूल रूप और उसके सु-अर्थ के प्रति आग्रही होने की तथा अपनाये जाने वाले सात्विक आचरण के प्रति कृतज्ञ होने की. अन्यथा मानव और प्रकृति का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध हाशिये पर चला जायेगा. जोकि हो रहा है. इससे प्रकृति का क्या विनाश होगा, मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा. यही कारण है प्रकृति की विभिषिका दिनोंदिन क्रूरतम होती जारही है.


************************************

-सौरभ

Views: 2003

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2017 at 4:34pm

जी | आजकल सभी धार्मिक अनुष्ठानों में बाजार हावी होते जा रहे है | सुंदर जानकारी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2017 at 11:11am

छठ पर्व के साथ पण्डित-पुजारी, मंत्रोच्चार, मन्दिर आदि का एक प्रारम्भ से कोई प्रयोजन नहीं रखा गया है, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.

इसकी प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन श्रद्धा-वन्दन की है, जिसके माध्यम से पूर्वजों के प्रति आभार और आने वाली पीढ़ियों, चाहे पुत्र अथवा पुत्री, के प्रति विश्वास अभिव्यक्त किया जाता है. सारी प्रक्रिया प्रकृति के प्रति श्रद्धा-अभिव्यक्ति की है. इस पूरी प्रक्रिया में न कोई ढकोसला है न दिखावा. प्रसाद आदि भी अत्यंत सामान्य वस्तुओं से निर्मित होते हैं. और तो और, समाज के निचले तबके से लेकर ऊँचे तबके तक की बराबर की हिस्सेदारी होती है. सूप-डलिया आदि, जो कि विधियों के लिए अपरिहार्य हैं, को बनाने वाली जाति के लोग इस दिन के वस्तुओं के कारण पूज्य माने जाते हैं. और, साफ-सफ़ाई इस महापर्व का अत्यंत आवश्यक तत्व हुआ करता है. 

अब अगर कहीं मन्दिर आदि, जैसे कि बिहार राज्य के देव स्थान में सूर्य मन्दिर में पूजा आदि की चर्चा होती है, का ज़िक्र आता है तो ये सब बाद का डेवेलपमेण्ट है. आजकल इस पर्व का विस्तार हो रहा है. अतः आश्चर्य नहीं कि यहाँ भी बाज़ार हावी हो जाय. लेकिन यह पर्व कठिन तो है ही, कर्मकाण्ड के लिए आवश्यक वस्तुओं के हिसाब से बहुत ही कम खर्चीला है.

शुभेच्छाएँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 26, 2017 at 10:19am

बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने आदरणीय, जो पूर्ण में भी तीन वर्ष पूर्ण पढ़ी थी |  जयपुर में में भी डाला छठ पर गलता जी में अस्ताचल सूर्य का पूजन किया जाता है और वहाँ मेला भरता है | वहाँ सूर्य मंदिर स्थित है | सूर्य को अर्ध्य देने के बाद छठी मैया की पूजा की जाती है | व्रतियों द्वारा पारावारिक सुख सम्रद्धि और मनोंवांछित फल प्राप्ति की कामना करते है | फिर अगले दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले ही श्रद्दालु वहा पहुँच ते है |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2017 at 8:30am

आज इस वर्ष के छठ पर्व का पहला अर्घ्य है. आज की शाम डूबते हुए सूर्य की उपासना होती है. 

2013 के इस आलेख से उन पाठकोंं को छठ पर्व के बारे में यथोचित जानकारी मिल सकती है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2013 at 12:09am

हृदय से आभार आदरणीय अखिलेश भाईजी. आप प्रस्तुत आलेख के मर्म तक पहुँच पाये यह मेरे प्रयास को मिला मुखर अनुमोदन है.
सादर आभार

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 14, 2013 at 12:02am

आदरणीय सौरभ भाई, छठ पर्व पर बड़ी अच्छी सारगर्भित और विस्तार से जानकारी देने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आपने हमें प्रश्न भी दिया और उत्तर भी। छठ पर्व को एक सामान्य क्षेत्रीय पर्व मानने वाले कई लोगों की शंकाओं का समाधान आपसे अनायास ही मिल गया। आपकी प्रतिभा और ज्ञान को नमन ॥

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 10:48pm

हार्दिक धन्यवाद अभिनव अरुण भाईजी

Comment by Abhinav Arun on November 11, 2013 at 5:03am

छठ मईया की महिमा का साद्योपांत वर्णन ...ज्ञानवर्द्धक... तथ्यपरक और अत्यंत रोचक है अग्रज श्री ! आपका अध्ययन - दर्शन और अभिव्यक्ति स्तुत्य हैं ! इस संग्रहणीय उपयोगी आलेख हेतु साधुवाद और सादर प्रणाम ! छठ माता आशीर्वाद हम सब पर बना रहे !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2013 at 1:37am

आदणीय विजयजी, आपकी सदाशयता ही है कि आपको प्रस्तुत लेख ज्ञानवर्द्धक लगा. जो कुछ मैं जानता था उसको आप सभी के साथ साझा किया है. यह आलेख रोचक लगा यह आप सबों की स्वीकार्यता ही है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2013 at 1:35am

आदरणीय आशुतोषजी, आपका अनुमोदन हृदय से स्वीकार करता हूँ. आगे भी पूर्व की भांति पाठकों के समक्ष अपनी कमोबेश जानकारी  साझा करता रहूँगा.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service