For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौलिक व अप्रकाशित 

दो भाई - राम लक्ष्मण!

दो भाई - कृष्ण बलराम!

दो भाई - पांडु और धृतराष्ट्र !

दो भाई - दुर्योधन दुशासन!

दो भाई - रावण और विभीषण!

दो भाई - भारत और पकिस्तान!

दो भाई - हिन्दी चीनी भाई भाई !

ऊपर के सभी उदाहरण जग जाहिर है ..पर

दो भाई - भुवन और चंदर ....

मैं इन्ही दोनों के बारे में लिखने वाला हूँ.

ये दोनों भाई है- मिहनती और इमानदार !

पांच कट्ठे की एक जमीन का टुकड़ा इनकी पुस्तैनी थी. वह भी गिरवी रखी हुई थी, एक बड़े किसान के पास. पर दोनों भाई उसी जमीन को बटाई पर लेकर उनमे खेती करता और जो भी उपज होती, आधा अपने पास रखकर आधा उस बड़े किसान को दे देता, जिसके पास वह जमीन गिरवी रखा हुआ था... बड़ा भाई भुवन को पढ़ने में मन नहीं लगता था, पर छोटे चंदर को पढ़ने की इच्छा होती थी. भुवन ने उसे स्कूल जाने से न रोका और खुद ही खेतों में मिहनत करने लगा. उसकी इमानदारी को देख बड़े किसान ने कुछ और जमीन उसे बटाई पर दे दी. भुवन बहुत खुश हुआ और वह और ज्यादा लगन से मिहनत करने लगा! चंदर भी स्कूल से आने के बाद अपने बड़े भाई के साथ खेतों में काम करता और इसी तरह रोटी का जुगाड़ होने लगा. सबसे बड़ी बात इन दो भाइयों में यही थी की यह किसी से भी मुफ्त में उधार न लेता. मिहनत कर, बदले में अपने हक़ का मजदूरी अवश्य लेता.

कुछ दिनों बाद भुवन की शादी हुई और एक बच्ची का भी जन्म हो गया. फिर तो और जमीन चाहिए थी, खेती के लिए. उनकी इमानदारी को देख गाँव के अन्य बड़े किसान भी अपना खेत उसे ही बटाई पर देने लगे और धीरे धीरे भुवन और चंदर के पास अच्छी जमीन हो गयी.... और कहते हैं न कि मिहनत करने वाले को भगवान भी मदद करते हैं. उनकी उपज अगल बगल के खेतों से भी अच्छी होने लगी. चंदर किसी तरह हाई स्कूल तक गया और उसके बाद उसने पढाई छोड़ दी. भाई के साथ खेतों में मिहनत करने लगा.

भुवन की बच्ची जैसे ही थोड़ी बड़ी हुई, उसकी पत्नी गौरी भी घर के पास वाले खेतों में थोड़ी बहुत मिहनत करने लगी और घर में आए अनाजों को साफ़ कर सम्हालकर रखने लगी. अब इन दो भाइयों के पास खाने से ज्यादा अनाज होने लगे, जिसे वह बिक्री कर कुछ पैसे बचाने लगा.

समयानुसार चंदर की भी शादी हुई. अब चंदर की पत्नी(कोशिला) घर का काम करती और और गौरी खेतों में ज्यादा समय बिताती!

जैसे दोनों भाई वैसे ही दोनों की पत्नियाँ सगी बहनों की तरह रहती एक दुसरे का ख्याल रखती! खाना दोनों  भाई और दोनों गोतनी(जेठानी और देवरानी) एक साथ ही खाते... दोनों का प्रेम देख अगल बगल के लोगों को ईर्ष्या होती!

***********************

कोशिला कुछ दिनों के लिए मायके गयी. यह तीन भाइयों की एक बहन थी, इसलिए माँ बाप के साथ भाइयों और भाभियों का भी प्यार मिलता था! लगभग तीन महीना बाद पुन: अपने पीहर लौट आई अपने पति चंदर के साथ.

गाँव में एक प्रथा है,  किसी एक घर में चूल्हा जला और धुंवा दिखा तो दूसरी गृहणियां गोइठा(उपले) लेकर चल पड़ेगी, धुंवा वाले घर की ओर, और वहीं से अपना गोइठा सुलगाकर अपने घर का चूल्हा जलायेगी. इसी बहाने भेट मुलाकात और कुछ इधर उधर की बातें हो जाती हैं.

'छुटकी' है तो छोटी, पर हर घर का खबर रखती है. आग लेने के बहाने आग लगाने से भी बाज नहीं आती. " भौजी आपकी साड़ी बड़ी अच्छी है, क्या माँ ने दिया है?" चुटकी ने कोशिला भाभी से पूछा.

"पैसे तो माँ के ही लगे हैं पर यह पसंद है मेरी भाभी की. मेरे भैया की घरवाली की... उनकी पसंद पर तो भैया भी फ़िदा रहते हैं." - कोशिला ने भोलेपन से उत्तर दिया!

:"हाँ भौजी! एक दम सही बात बोले हैं!  भौजी-ननद और भौजी-देवर का रिश्ता ही कुछ ऐसा है! देखिये न आपकी जेठानी भी अपने देवर यानी चंदर भैया का कितना ख्याल रखती हैं ..आप नहीं थी तो चन्दर भैया तो गौरी भौजी के साथ ही खाना खाते थे, एक ही थाली में."

"हाँ ! चलो, कोई तो ख्याल रखता था उनका, मेरी अनुपस्थिति में!"

"लेकिन एगो बात औरो है भौजी, हमको तो नहीं मालूम लेकिन पूरा मोहल्ला में हल्ला है कि...." इतना कहते हुए छुटकी चुप होकर जाने को तैयार हो जाती है!

कोशिला छुटकी को रोककर पूछती है - "क्या हल्ला है छुटकी जरा हमको तो बताओ!"

"न ही भौजी कुछ नहीं! हमको कुछ नहीं मालूम! ऊ इतवारी चाची है न, वही एक दिन बुधिया को बतला रही थी कि चंदर का नया शादी हुआ है फिर भी अपनी पत्नी को नैहर में छोड़े हुए है! तभी बुधिया ने कहा था कि भौजी से काम चल ही जाता है तो अपनी औरत का, का जरूरत है! बस इतने हम सुने हैं बाकी उन्ही लोगों से पूछ लीजियेगा." ...बस आग की एक चिंगारी छोड़कर छुटकी अपने घर को चली गयी. इधर कोशिला मन ही मन सोचने लगी और रात का इंतज़ार करने लगी... तभी देवर भाभी हंसते हुए घर में घूंसे. कोशिला का शक और पक्का हो गया, पर चुपचाप उनलोगों को देखने लगी! फिर वे दोनों बाल्टी से पानी लेकर पैर हाथ धोने लगे. गौरी पानी डालकर चन्दर के पैर को रगड़ कर धोने लगी. तभी कोशिला वहां आ गयी और अपने पति का पैर अपने हाथों से धोने लगी. देवर भाभी दोनों को कोई फर्क न पड़ा. उलटे गौरी कोशिला का बोल दी- "बढ़िया से धो दो रात में तेल भी लगा देना, थक गए हैं बेचारे!"  छुटकी की बातों का असर  और जेठानी की चुहल कोशिला को अन्दर-अन्दर सुई की तरह चुभ रहे थे. रात में फिर क्या हुआ?  किसी को बताने की जरूरत नहीं है, पर कांटा चुभ गया था. शुबह सभी अपनी अपनी दिनचर्या में लग गए, पर नाश्ते के समय तक गुस्सा आखिर फूट ही पड़ा.

चंदर को सब्जी में नमक ज्यादा लगा तो कह दिया - "नमक डालते समय क्या याद नहीं था कि कितना नमक डाली है."

भुवन बेचारा सीधा-सादा चुप-चाप खाए जा रहा था. वैसे भी जेठ, देवरानी को ज्यादा कुछ नहीं बोलता, यह परंपरा से चली आ रही है!

कोशिला से रहा नहीं गया -" इतना दिन तक तो मीठा-मीठा खा रहे थे, अब तो नमक ज्यादा लगेगा ही!"

अब गौरी के भी कान खड़े हो चुके थे और वह भी कोशिला के ताने को समझती हुई उसे फटकारते हुए बोली - "ऐ कोशिला, तू तो अब आई है. बचपन से चंदर को हम ही खिला रहे हैं. कभी कभी नमक कम-ज्यादा हो जाता है, मान लेने में कोई बुराई है क्या? थोड़ा दही दे दो, देवर जी को, नमक ज्यादा नहीं लगेगा!"

मन में अगर कुछ चल रहा होता है, तो अच्छी बात भी बुरी लगती है.  कोशिला कहने लगी - "बात तो ठीके कह रही हैं दीदी, आप ही तो पाल पोस के बड़ा भी किये हैं, फिर हमको लाने की जरूरत ही कहाँ थी".

अब इसके बाद कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है. जेठानी देवरानी के बाद, दोनों भाइयों में भी तू-तू' मै-मै होने लगी ... आवाज घर से बाहर निकली तो अगल बगल के लोग भी अपने घरों से बाहर निकल आये और कुछ लोग शांत करने में तो कुछ लोग मजा लेने में लगे रहे! छुटकी और बुधिया को तो खूबे मजा आ रहा था!

उन्ही लोगों में जगधात्री चाची भी थी, जो सबको समझा बुझाकर शांत की और उस दिन का युद्ध समाप्त हो गया!

दिन का सूरज ऊपर तक आगया था, सो दोनों भाई हल बैलों के साथ खेत में पहुँच गए. काम के दौरान दोनों भाइयों के बीच का मैल जाता रहा और वे लोग भूल ही गए कि सवेरे कुछ हुआ था.

भाग दो पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें ....

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:24am

आदरणीय योगी जी, सादर अभिवादन!

आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का आभार!

Comment by Yogi Saraswat on April 1, 2013 at 10:56am

मन में अगर कुछ चल रहा होता है, तो अच्छी बात भी बुरी लगती है. कोशिला कहने लगी – “बात तो ठीके कह रही हैं दीदी, आप ही तो पाल पोस के बड़ा भी किये हैं, फिर हमको लाने की जरूरत ही कहाँ थी”.
अब इसके बाद कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है. जेठानी देवरानी के बाद, दोनों भाइयों में भी तू-तू’ मै-मै होने लगी … आवाज घर से बाहर निकली तो अगल बगल के लोग भी अपने घरों से बाहर निकल आये और कुछ लोग शांत करने में तो कुछ लोग मजा लेने में लगे रहे! छुटकी और बुधिया को तो खूबे मजा आ रहा था! समाज में ऐसा खूब देखने को मिलता है ! आग लगाकर मजे लेने वाले खूब मिलते हैं ! सुन्दर पोस्ट ! इंतज़ार रहेगा ! आदरणीय श्री जवाहर सिंह जी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 8, 2013 at 4:51am

इस कहानी की दूसरी किश्त आज ही पोस्ट की है! अप्प्रूव होना बाकी है! सभी पाठकों से निवेदन है कि अगर कहीं सुधार की जरूरत है तो अवश्य मार्ग दर्शन करें! आभार सहित!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 8, 2013 at 4:48am

आदरणीय कुशवाहा  जी, सादर अभिवादन!

यह कहानी गाँव की पृष्ठ भूमि में लिखी गयी है. आपका बहुत बहुत आभार! 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 3:48pm

बधाई सर जी 

भाई-भाई 

सादर अभिवादन के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service