परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....
"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
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मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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शुक्रिया अविनाश जी........
वाह आदरणीय अरुण सर वाह ग़ज़ल के यह अलग अंदाज मन को भा गया, खास कर ये दो शे'र तो माशाल्लाह दिल में उतर गए बेहतरीन ग़ज़ल हेतु ढेरों दाद कुबूल करें.
जानती है कि ये है मोम , पिघल जाएगा
झील-सी आँख तुरत अश्क़ से तर करती है |4|
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है |6|
क्या बात बहुत खूब,,,,,,,,,,,,,बधाई
प्रिय अरुण शर्मा.....दिल से दिल तक बात पहुँच गई, बस लिखना सार्थक हो गया.............
ऐश इनकम पे मेरी शामोसहर करती है
बैंक बैलेंस को पल भर में सिफर करती है |1|...........................हाहाहा हाहाहा
मैंने बाइक भी नहीं बदली कई सालों से
वो हमेशा यूँ ही ए सी में सफर करती है |2|........................ये तो बड़ी ज्यादती है , क्या कहने! वाह!
भाँप के उसके इरादे मैं काँप जाता हूँ
जब मेरी ओर कभी तिरछी नज़र करती है |3|...................हाहाहा ! अरे बाप रे !
जानती है कि ये है मोम , पिघल जाएगा
झील-सी आँख तुरत अश्क़ से तर करती है |4|..........यहाँ आप गलत समझ रहे हैं, आँखें अश्क से तर तो खुद ब खुद ही हो जाती होंगी ,अब इस मासूमियत पे मोम की तरह पिघलना तो स्वाभाविक ही है. हाहाहा
मेरी हिंदी तो जुबां से न निकल पाती है
जब भी अंग्रेजी में वो चटर-पटर करती है |5|.....वाह !
शौक है खर्च का दौलत भी लुटाती है बहुत
खूब लड़ती है मुझे प्यार मगर करती है |6|.............हासिले ग़ज़ल शेर, वाह ! सच कहा.
धूप में रूह मेरी, दिन गुजार लेती है
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है |7|
बहुत बढ़िया ग़ज़ल, ढेरों ढेर दाद क़ुबूल करें आदरणीय अरुण निगम जी .
बस मेहनत सफल हो गई, हार्दिक आभार.............
क्या कहने हैं आदरणीय अरुण कुमार निगम जी आपके हास्य का तड़का आयोजन में एक नई ही ताजगी पैदा कर गया। मेरी दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
शुक्रिया भाई साहब...............
ऐसी कठिन जमीं पर क्या शानदार अशआर हुए हैं
भाई जी मुसल्सल ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई
हर शेअर पर ढेरों दाद
बेचारगी का भाव खूब निखर कर आ रहा है :))))))))
वीनस जी, बहुत बहुत शुक्रिया........
क्या बात है भाई साहब रात ११ बजे तक आप एक लाईन भी नहीं लिखे थे
अचानक १२ बजे इतनी मस्त गजल कहाँ से प्रगट हो गई
दर्दे दिल दर्दे जिगर वाले विषय को ...जिस मजाकिया अंदाज में पिरोया है ..मान गए उस्ताद
गजलकार ...या कलाकार कहूँ ..वाह मजा आ गया
न तुम्हारा फोन आता न गज़ल लिखी जाती. आभार प्रेरक तत्व................:-))))))))))))
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