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कवि का आक्रोश

में भी आप सभी सा हूँ
बस थोडा सा बीसा हूँ
बाहर से में फौलादी हूँ
अंदर से में शीशा हूँ
ह्रदय से में कवि सा हूँ
जन्म हुआ तभी से हूँ
बहर से जुगनू लगता हूँ
अंदर से रवि सा हूँ
मेरी कविताओं में वो दम है 
जो लोहे को पिघला देंगी
मेरी जोशीली रचनाएँ
मुर्दे को जिला देगीं
कविता पाठ से में
धरती को हिला दूंगा
अपने मार्मिक छंदों से,
कुम्भकर्ण को जगा दूंगा
रोक सकता हूँ मैं 
बहते सरिता के नीर को
हवा में रोक लूँगा
कमान से निकले तीर को
सरल समझकर क्यों आप
मेरा मखौल उड़ाते हें
अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं 


Dr.Ajay Khare Aahat

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 5:08pm

अच्छा आक्रोश है सर जी
अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं 

एक दम दुरुस्त फरमाया है आपने बधाई हो

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 13, 2012 at 3:54pm

अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं
 ----इस जोश के बधाई डॉ आहत खरे 

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2012 at 3:14pm

KYA BAT HAI JEE

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