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पाँच क्षणिकाएं सन्दर्भ चन्द्रमा

पांच क्षणिकाएं - चंद्रमा
 
(१)
रिश्ता नजदीक का 
दक्ष प्रजापति के जंवाई 
रिश्ते में कड़वाहट आई 
सती का आग्रह
भोलेनाथ साडू भाई आए 
आ चन्द्र को शीश बैठाए
(2)
चाँद की दरयादिली 
सूरज बाबा से 
आतप पाए 
घोल अमृत उसमे 
धरती पर 
शीतलता लुटाए |
(3)
चाँद की कलाएं 
कभी घटती 
फिर बढती,
समुद्र में 
उथल-पुथल लाती 
जिंदगी क्या है,
यह समझाती |
(4)
चंदा को देखो 
कभी चांदनी फैलावे   
अम्मा सुई को पोती 
कभी मेघो में छुप जावे 
माँ बोली, 
उसका तुमको सिखलाना   
है आँख-मिचोली खिलाना | 
(5)
चंदा मामा 
कभी टुकड़ा सा 
कभी पूरा गोला  
जैसे जीवन में 
सुख-दुःख 
कभी धुप कभी छाँव 
जिन्दगी का खेला |
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2012 at 6:16pm

हार्दिक धन्यवाद भाई सौरभ पाण्डेय जी, आपके सानिध्य में प्रयास सफल होता 

लग रहा है, उसके लिए आपका आभार 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2012 at 11:02pm

लक्षमण भाईजी, आपने चाँद के विभिन्न मिथकीय और भौगोलिक रूप का वर्णन किया है.

बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 4:05pm

 

हार्दिक आभार आपका आदरणीय श्री गणेश जी बागी 
आपका वरद हस्त यूँ ही बनाए रखे 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 4:02pm

 अनुपम.अलौकिक शब्द, आप जब लिखते है 

सुन्दर विचारों के भाव,  आप तब चखते है  //
आप नालायक नहीं, सब तरह लायक है,
आपकी ललक दर्शाती, सीखने लायक है //
रचना भाव पसंद कर, बढाया है मान 
आभारदीपक आपका, बढा रहे शान //

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2012 at 3:42pm

सभी क्षणिकाएं एक पर एक हैं, बधाई लक्षमण प्रसाद जी |

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 12:49pm
अनुपम,अलौकिक हर रचना आपकी अतिसुन्दर बिचार  आपके आशीर्वाद से हम नालायक भी कुछ सीख जायेंगे....  
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

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