For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतियोगिता परिणाम "चित्र से काव्य तक" अंक -४

नमस्कार साथियों,

"चित्र से काव्य तक" अंक - प्रतियोगिता से संबधित निर्णायकों का निर्णय आपके समक्ष प्रस्तुत करने का समय आ गया है | अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि लगातार पाँच दिनों तक चली इस प्रतियोगिता के अंतर्गत कुल ८५२ रिप्लाई आयीं हैं जो कि काफी हद तक संतोषजनक हैं | इस प्रतियोगिता में अधिकतर दोहा , गज़ल, कुंडली, घनाक्षरी, हाइकू व छंदमुक्त सहित अनेक विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत की गयीं| इस बार भी यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि समस्त प्रतिभागियों से आदरणीय धर्मेन्द्र शर्मा, आदरणीय सौरभ जी , आदरणीय गणेश जी बागी व आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आदि नें अंत तक अपनी बेहतरीन टिप्पणियों के माध्यम से सभी प्रतिभागियों व संचालकों में आपसी संवाद कायम रखा तो वहीं दूसरी ओर उन्हीं मित्रों नें अपनी प्रतिक्रियाओं में दोहा , कुण्डलिया व घनाक्षरी आदि छंदों का प्रयोग करके इस प्रतियोगिता में एक गज़ब का आकर्षण उत्पन्न कर दिया.... छंदों के माध्यम से होने वाले सवालों और जवाबों की छटा तो देखते ही बनती थी | इस बार भी इस प्रतियोगिता के आयोजकों यथा भाई योगराज जी, भाई बागी जी, भाई धर्मेन्द्र जी आदि सहित अन्य मित्रों नें भी प्रतियोगिता से बाहर रहकर मात्र उत्साहवर्धन के उद्देश्य से ही अपनी-अपनी स्तरीय रचनाएँ तो पोस्ट कीं ही साथ-साथ अन्य साथियों की रचनायों की खुले दिल से समीक्षा व प्रशंसा भी की जो कि इस प्रतियोगिता की गति को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करती रहीं| प्रसन्नता की बात यह है इस प्रतियोगिता के अंतर्गत पोस्ट की गयीं अधिकतर रचनाएँ प्रायः दर्शाए गए चित्र पर काफी हद तक आधारित थीं | फिर भी कुछ प्रतिभागियों नें जल्दबाजी में निम्न स्तरीय रचनाएँ पोस्ट कर डालीं जिन पर ओ बी ओ प्रबंध-तंत्र द्वारा अविलम्ब लगाम लगा दी गयी ! इस बार भी हमनें यह महसूस किया है कि कतिपय रचनाकारों को छोड़ कर अन्य की रचनाओं की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार आता जा रहा है|

इस साहित्य-यज्ञ में काव्य रूपी आहुतियाँ डालने के लिए सभी ओ बी ओ मित्रों को हृदय से बहुत-बहुत आभार...

प्रतियोगिता का निर्णय कुछ इस प्रकार से है...

प्रथम स्थान (संयुक्त रूप से): श्री सौरभ पाण्डेय जी

खेल अजूबा बतर्ज़ प्रगति का हाल

=====================

देखो अपना खेल, अजूबा... देखो अपना खेल..

द्वारे बंदनवार प्रगति का

पिछवाड़े धुर-खेल.. भइया, देखो अपना खेल.

 

अक्की-बक्की

पवन की चक्की

देखे मुनिया हक्की-बक्की

फसल निकाई, खेत गोड़ाई

अनमन माई

बाबू झक्की.. ..

जतन-मजूरी

खेती-बाड़ी

जीना धक्कमपेल.. भइया, देखो अपना खेल.

 

खुल्लमखुल्ला

गड़बड़-झाला

आमद-खर्चा

चीखमचिल्ला

खुरपी-तसला

मेड़-कुदाली

बाबू बौड़म करें बवाला -

रात-पराती आँखन देखे -

हाट-खेत बेमेल.. भइया, देखो अपना खेल.

 

नाच-नाच कर

झूम-झूम कर

खूब बजाया विकास-पिपिहिरी

पीट नगाड़ा

मचा ढिंढोरा

उन्नति फिरभी रही टिटिहिरी

संसदवालों के हम मुहरे

पाँसा-गोटी झेल.. भइया, देखो अपना खेल.

 

प्रथम स्थान: श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी(संयुक्त रूप से)

 

कोई राजा नहीं कोई रानी नहीं ,

इन किसानो की कोई कहानी नहीं !

 

सबको जीवन का अमृत पिलाते हैं ये,

अपने बच्चों को भूखे सुलाते हैं ये !

 

इनके सपनों की तक़दीर होती नहीं ,

इनकी मेहनत की तस्वीर होती नहीं!

 

मेघ मौसम का मोहताज़ होता रहा ,

इनकी आँखों में सावन को बोता रहा!

 

पीढ़ियों की ख़ुशी जा चुकी रूठकर,

बच्चे पैदा हुए क़र्ज़ में डूबकर !

 

जिन कपासों को खुश हो उगाते हैं ये,

उनकी डोरी से फांसी लगाते हैं ये !

 

द्वितीय स्थान : श्रीमती वंदना गुप्ता जी

"ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?"

 

बोये थे मैंने कुछ पंख उड़ानों के

कुछ आशाओं के पानी से

सींचा था हर बीज को

शायद खुशियों की फसल लहलहाए इस बार

पता नहीं कैसे किस्मत को खबर लग गयी

ओलों की मार ने चौपट कर दिया

सपनो की ख्वाहिशों का आशियाना

फिर किस्मत से लड़ने लगा

उसे मनाने के प्रयत्न करने लगा

झाड़ फूंक भी करवा लिया

टोने टोटके भी कर लिए

कुछ क़र्ज़ का सिन्दूर भी माथे पर लगा लिया

और अगली बार फिर नए

उत्साह के साथ एक नया सपना बुना

इस बार खेत में मुन्नू के जूते बोये

मुनिया की किताबें बो दिन

और रामवती के लिए एक साड़ी बो दी

एक बैल खरीदने का सपना बो दिया

और क़र्ज़ को चुकाने की कीमत बो दी

और लहू से अपने फिर सींच दिया

मगर ये क्या ...........इस बार भी

जाने कैसे किस्मत को खबर लग गयी

बाढ़ की भयावह त्रासदी में

सारी उम्मीदों की फसल बह गयी

मैं फिर खाली हाथ रह गया

कभी आसमाँ को देखता

तो कभी ज़मीन को निहारता

और खुद से इक सवाल करता

"ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?"

 

इक दिन सुना

रामखिलावन ने परिवार सहित कूच कर लिया

क्या करता बेचारा

कहाँ से और कैसे

परिवार का पेट भरता

जब फाकों पर दिन गुजरते हों

फिर भी ना दिल बदलते हों

और कहीं ना कोई सुनवाई हो

उम्मीद की लौ भी ना जगमगाई हो

कैसे दिल पर पत्थर रखा होगा

जिन्हें खुद पैदा किया

पाला पोसा बड़ा किया

आज अपने हाथों ही उन्हें मुक्ति दी होगी

वो तो मरने से पहले ही

ना जाने कितनी मौत मरा होगा

उसका वो दर्द देख

आसमाँ भी ना डर गया होगा

पर कुछ लोगों पर ना कोई असर हुआ होगा

बेचारा शायद मर के ज़िन्दगी से मिला होगा

मेहनत तो किसान कर सकता है

मगर कब तक कोई भाग्य से लड सकता है

रामखिलावन का हश्र देख

अब ना शिकायत करता हूँ

और रोज तिल तिल कर मरा करता हूँ

जाने कब मुझे भी.................?

हाँ , शायद एक दिन हश्र यही होना है

तृतीय स्थान: श्री इमरान जी !

 

बिजली नहीं मिली बरसात कम हुई,

फसलों को देखकर ये आँख नम हुई।

 

बूंदें कटी हुई फसलों पे आ गईं,

बेवक़्त की बारिश देखो सितम हुई।

 

इक बाग पे गुमाँ वो भी चला गया,

आँधी के ज़ोर से डाली बरहम हुई।

 

कैसे चुकाएंगे बच्चों की फीस को,

स्कूल से मिली मोहलत खतम हुई।

 

बिटिया के हाथ भी पीले न कर सकें,

दुख़्तर किसान की बाबा का ग़म हुई,

 

अहले बाज़ार के क़र्ज़े में दब गए,

मिलों की देर से गरदन ये ख़म हुई,

 

लाखों की मिल्कियत फाकाकशी के दिन,

अपनी तो ज़िन्दगी बे दामो दम हुई।

 

हम आँहों फुगा करें या फिर बग़ावतें,

सरकार ए मुल्क भी देखो समम हुई।

 

'इमरान' जिगर की बातें दबाए रख,

किस्मत किसान की ये बेरहम हुई।

प्रथम (संयुक्त), द्वितीय व तृतीय स्थान के उपरोक्त चारों विजेताओं को सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से बहुत-बहुत बधाई...

प्रथम व द्वितीय स्थान के उपरोक्त विजेता आगामी "चित्र से काव्य तक- प्रतियोगिता अंक" के निर्णायक के रूप में भी स्वतः नामित हो गए हैं |


अंत में हम सभी की ओर से इस प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सदस्यों, आदरणीय कुंवर योगेन्द्र बहादुर सिंह उर्फ़ आलोक 'सीतापुरी, जी , श्रीमती लता आर ओझा जी, व आदरणीय धर्मेन्द्र 'धरम 'जी का विशेष रूप से आभार ..........

जय ओ बी ओ !
सादर:
अम्बरीष श्रीवास्तव

अध्यक्ष,

"चित्र से काव्य तक" समूह

ओपन बोक्स ऑनलाइन परिवार

 

Facebook

Views: 1783

Replies to This Discussion

sbhi ko shubhkamnayen 


सभी विजेताओं को हम सभी की और से हार्दिक बधाई!

बधाई

श्री सौरभ पाण्डेय जी, श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ, श्रीमती वंदना गुप्ता और श्री इमरान जी को बहुत बहुत बधाई एवं निर्णयको को इस कठिन कार्य के सफल निर्वहन हेतु धन्यवाद | 

आप सभी का स्वागत है!  प्रथम (संयुक्त), द्वितीय व तृतीय स्थान के उपरोक्त चारों विजेताओं को  हमारी ओर से बहुत-बहुत बधाई...:)

आदरणीय भाई बागी जी ! आपका हृदय से आभार ............

आप सभी प्रत्योंगियों को बधाई एवं शुभकामनाएं !

सारे विजेताओं को हार्दिक बधाई ! प्रतियोगिता के निर्णय ने मुझे और अधिक उर्जावान कर दिया है !
आद. अम्बरीश भाई और निर्णायक मंडल के सदस्यों के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

बधाई.

 

आभारी का भाववाचन अब और अधिक भारी हो गया है.. मन-संबल दें अब धारें   ..

हार्दिक वन्दन.

 

निर्णायक मण्डल के माननीय सदस्यों तथा आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय की व्यापकता कुछ और गतिशील होने को अनुप्रेरित कर रही है.

आदरणीय अम्बरीषभाई जी से सद्यः-वार्तालाप के क्रम में बहुत-कुछ निथर कर स्पष्ट हुआ.

नवोदितों तथा नव-हस्ताक्षरों को मिलता प्रोत्साहन अपने प्रयास के विन्दुवत् होने की आश्वस्ति दे रहा है.

पुनश्च आभार.

sab ko badhai

आदरणीय सौरभ जी, ज्ञानचंद जी, वंदना जी एवं  इमरान जी को बहुत-बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें.  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
17 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service