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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ तिरपनवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है। 

इस बार के दो छंद हैं -  कुकुभ छंद   

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20जनवरी’ 24 दिन शनिवार से

21जनवरी’ 24 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 20 जनवरी’ 24 दिन शनिवार से 21जनवरी’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

सुस्वागतम 

आदरणीय संचालक महोदय,

प्रस्तुत है मेरी एक अनगढ़ रचना 🙏🏾

 

मॉल और गार्डन शहर के, सुख उनमें यह कहाँ भला

कच्ची मढ़ी ये गाँवों की दे, छाँह घनी और शीतला

कर किलोल आह्लादित रहते, गाँव के ये नन्हें छौने

देखकर इनके खुश चेहरे, सुख अपने लगते बौने 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय संचालक महोदय,

ओबीओ के सभी सुधिजन,

आशा करता हूँ आपको यह पुराना साथी याद होगा। आज तकरीबन ९ वर्षों बाद इधर की राह ली। बस बैठे-बैठे याद आया कि लिखने-पढ़ने के जब दिन थे, तब यहाँ की महफ़िलों में ख़ूब सुख उठाया है। देखकर इतनी प्रसन्नता हुई कि मेरा पुराना पन्ना आज भी सुरक्षित है। फिर यह छन्दोत्सव की पोस्ट दिख गई, तो अपनी रचना पोस्ट करने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। लिखना अब लगभग छूट गया है, पर कहते हैं कि अच्छी सोहबत में तो शैतान भी साधु हो जाता है, तो बस जो मन में आया, लिख डाला। छंद की नियमावली तो देखी थी, लेकिन पता नहीं, उसके अनुसार गढ़ पाया हूँ या नहीं। आपके हवाले। कोशिश रहेगी कि इस सोहबत में और समय बिताया जाए, ताकि वक़्त के साथ छूटती चली लेखन-पढ़न की आदत फिर लग जाए।

आदरणीय, वस्तुत: आप एक लंबे अरसे बाद पटल पर वापस लोटे हैं।

विश्वास है, आप सपरिवार सकुशल होंगे। 

शुभ-शुभ

आदरणीय दुष्यंत सेवक जी, आपकी उपस्थिति पटल के लिए उत्साहवर्धक है। 

प्रदत्त छंद कुकुभ है जिसकी पदांत दो गुरुओं से होता है। इस हिसाब से प्रस्तुति के पहले दो पद विधान के अनुसार नहीं है। 

आयोजन में आपकी रचना ही प्रस्तुत हो सकी है। 

इस हेतु आपके प्रति हार्दिक आभार। 

 

कुकुभ छन्द

नर नारायण दोनों ही जग में, आकर सुख-दुख सहते हैं।

कभी  झोपड़ी  को  घर  करते, कभी  महल  में  रहते हैं।

खेल  भाग्य  का  है  यह सारा, ये   नन्हें   क्या  जानेंगे।

रामचरित   जब   पढ़   लेंगे   तो, बूझेंगे  सच    मानेंगे।।

*

अभी  खेलकर  खुश  होते  हैं, आपस  में  बतियाते हैं।

पक्के  घर  से  ज्यादा  इनको, अभी   झोपड़े  भाते हैं।

कल पढ़-लिखकर बच्चे सारे, बस   जायेंगे  शहरों  में।

याद   झोपड़े  सब   आयेंगे, इनको  तब   दोपहरों  में।।

*

अभी शीत है किन्तु ग्रीष्म भी, आयेगा ही अब आगे।

महकेगी   अमराई   सारी, तब   आयेंगे   सब   भागे।

घनी छाँव जो देखेगा तो, ठिठक पथिक रुक जाएगा।

कुछ पल को  आराम करेगा, और बहुत सुख पाएगा।।

#

~ मौलिक/अप्रकाशित.

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। हर बार की तरह इस बार भी श्रेष्ठ छंदो में चित्र को परिभाषित किया है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय अशोक भाईजी, पहले दो पदों में ही जिस व्यापकता से प्रदत्त चित्र को व्याख्यायित किया है, वह चामत्कारिक है। भारतीय वांग्मय का सार है। 

नर नारायण दोनों ही जग में, आकर सुख-दुख सहते हैं।

कभी  झोपड़ी  को  घर  करते, कभी  महल  में  रहते हैं। ... अद्भुत! 

सांसारिक व्यवहार का भी सुंदर वर्णन हुआ है। 

कल पढ़-लिखकर बच्चे सारे, बस   जायेंगे  शहरों  में।

याद   झोपड़े  सब   आयेंगे, इनको  तब   दोपहरों  में।। ...  अनुभूत सत्य का प्राकट्य भाव-विह्वल कर रहा है। 

विलम्ब ही सही, किंतु आपकी तथ्य गर्भित प्रस्तुति का हार्दिक आभार।

इन छंदों के माध्यम से आपने ओबीओ के पटल पर आयोजनों के स्तर का आजके पाठकों को भान तो अवश्य करा दिया। 

शुभातिशुभ 

नगर से दूर दृश्य गाँव का, भले ही न उस से नाता
मगर खूबियों से यह अपनी, सभी का मन है लुभाता।।
भरी दुपहरी गर्मी की यह, जब नगरों में दम घोटे
बाग बगीचे गाँवों में तब, हैं नित शीतलता बोते।।
***
गर्मीं के मौसम में फिर से, लदी आम से हर डाली
बच्चे जुटकर सब आये हैं, करने इसकी रखवाली।।
शहरी बच्चों जैसे ये ना, चकाचौंध में जीते हैं।।
खुली हवा में साँसें लेते, शीतल जल पीते हैं।।
***
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, 

आयोजन में आपकी प्रस्तुति का स्वागत है। 

कुछेक चरणों में गेयता की कमी खल रही है, किंतु यह जल्दबाजी का ही प्रतिफल है। आप आगामी आयोजन में अवश्य ही इसकी भरपायी कर लेंगे। 

शुभ-शुभ

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"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
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"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
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"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी "
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