आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ तेइसवाँ आयोजन है.
इस बार का छंद है - वीर या आल्हा छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
24 जुलाई 2021 दिन शनिवार से 25 जुलाई 2021 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
वीर या आल्हा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
चित्र अंतर्जाल से
जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो
24 जुलाई 2021 दिन शनिवार से 25 जुलाई 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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प्रवहमान, भावमय, चित्रवत !
आदरणीय अखिलेश भाईजी. प्रस्तुति में आपकी तन्मयता दीख रही है.
साधु-साधु
आदरणीय सौरभ भाईजी
आल्हा छंद पर आपकी प्रशंसा से मेरा प्रयास सार्थक हुआ। हृदय से धन्यवाद आभार आपका
आ. भाई अखिलेश जी, चित्रानुरूप बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।
हृदय से धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण भाई
मेरी दूसरी प्रस्तुति
भारत देखो आज बदलता , आज नहीं वह मुँह की खाय।
कोशिश वो बस करता रहता जो वह चाहे बस मिल जाय।।
बात यही है सच्ची भैया , सुन लो सब ही कान लगाय।
चलता है जो साथ समय के वो ही जग में नाम कमाय।।
भीड़ लगाता जो नित रहता,चाहत उसकी जय जयकार।
जो सबकी बातों में आया , कर लेता जीवन बेकार।।
कोरोना का असर बड़ा है,भीड़ खड़ी है समझ न पाय।
जो घर छोड़ बने परदेशी,वो सब अपने घर को आय।।
आज जानती है यह जनता,नेता सब हमको भटकाय।
इनके झांसों में मत आओ ,चाहें जितना शीश नवाय।।
जागो और जगाओ सबको , करना है जग में बदलाव।
अपने हक को मत जाने दो,पढ़ लो इनके तुम मन भाव।।
इक दिन हम कुछ नाम करेंगे, हमको है पूरा विश्वास।
बनती अपने हांथों किस्मत , भर देंगें पूरा आकाश।।
जनता की यह भीड़ देख कर,नेताओं की आफत मान।
कैसे काबू में आए अब ,मुंँह तक फँसती इनकी जान।।
देते रहते इनको धोखा , लालच देकर इनको जोश।
भीड़ भई जब बेकाबू है, उड़ जाते फिर इनके होश।।
मौलिक व अप्रकाशित
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