For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


इस पार आ रहे हैं कुछ जाने माने लोग
उस पार जा रहे हैं कुछ जाने माने लोग
कैसी है राम राम ये कैसी सलाम है
पहचान नहीं पा रहे कुछ जाने माने लोग

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं
तंग कुर्ते पतंग लहँगे हैं
गली आवाज़ एक नंगी गली से आयी
देह सस्ती है वस्त्र महँगे हैं

कीमती वक्त खोते जा रहे हो
बिना मौसम के होते जा रहे हो
कोई जलधार थमे पानी से कह आयेगी
क्यों किनारे पै गोते खा रहे हो

इन अकउवोँ की कली में बैठ कर
राज मधुवन की कली के खोलना मत
ढोल हैं ये भांगड़ा के नृत्य हैं
शास्त्र के संगीत के स्वर छेड़ना मत

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:26pm

वैचारिकता को सुन्दर शब्द देने का प्रयास हुआ है.  बधाई !

किन्तु, शाब्दिक होने में तनिक और गहनता की अपेक्षा थी. जैसे विचार, वैसे शब्द ! तो फिर वैसा ही संयोजन भी होना चाहिये.
मुक्तकों का अपना विन्यास होता है, यह हमसभी जानते हैं, आदरणीय. आपके पिछले मुक्तक देख चुका हूँ, आदरणीय. अतः समवेत में कह पा रहा हूँ. इस बार के मुक्तक आज़ाद हैं.

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं .. रुई पुल्लिंग बहुवचन का ब्यौरा समझ में नहीं आया, आदरणीय. महती कृपा होगी यदि स्पष्ट हो पाया.
सादर
 

Comment by Alka Gupta on August 2, 2014 at 5:31pm

वाह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अति सुन्दर सभी मुक्तक ..सादर वन्दे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2014 at 10:12am

आदरणीय प्रेम नारायण भाई , लाजवाब मुक्तक के लिए बधाइयाँ |

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं
तंग कुर्ते पतंग लहँगे हैं
गली आवाज़ एक नंगी गली से आयी
देह सस्ती है वस्त्र महँगे हैं   ------------ अति सुन्दर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 6:31pm

गहरी सोच उभर कर आई है आपके मुक्तक में रचित भाव से -

जाने माने लोग भी एक दुसरे के समुख से गुर्जर रहे है पर पहचान नहीं रहे है - वाह ! 

देह सस्ती है वस्त्र महंगे है - अब तो कास्ट्यूम भी खूब महंगे हो गए, - बहुत खूब लाजवाब तंज कसा है

 

चरों मुक्तक सुंदर लगे | बहुत बहुत बधाई पं प्रेम नारायण दीक्षित जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 11:22am

प्रेमजी

आपके मुक्तक  सुंदर है और उत्कृष्ट भी  पर निगूढ़  है  i सामान्य पाठक केलिए तो बाउंसर  हैं  i मै तो आपकी लेखनी को प्रणाम करूंगा i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service