For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मृतप्राय शिराओं में बहता हुआ

संक्रमण से सफ़ेद हो चुका खून

गर्म होकर गला देता है

तुम्हारी रीढ़ !

और तुम -

-अपनी आत्मा पर पड़े फफोलो से अन्जान

-रेंगते हुए मर्यादा की धरती पर

प्रेम कहते हो –

एक चक्रवत प्रवाहित अशुद्धि को !

 

तुम्हारी गर्म सांसों का अंधड़

हिला देता है जड़ तक ,

एक छायादार वृक्ष को !

और फिर कविता लिखकर

शाख से गिरते हुए सूखे पत्तों पर ,

तुम परिभाषित करते हो

प्रेम को !

जबकि तुम्हारी भी मंशा है

कि ठूंठ हो चूका पेड़ जला दिया जाए ,

तुम्हारी वासना के चूल्हे में ,

जिस पर पकता रहेगा

एक निर्जीव सम्बन्ध !

 

प्रकृति की मनोरम गोद में

निषिद्ध क्रीड़ाएँ करते हुए ,

तुम प्रेम कहते हो उस घाव को

जिसमें से बह रही है पवित्रता ,

मवाद बनकर !

और नीला पानी एक सदानीरा नदी का

बनने को है –

एक गंधाता दलदल !

जो तुम्हारी ही नाक से ऊपर बहेगा एक दिन !

 

कठोरता और लिजलिजेपन के बीच का अंतराल

प्रेम नही कहलाता !

प्रेम वो है -

-जो दिख रहा है

अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत

और अंततः

भावनाओं के खून से सने

मांसल लोथड़ों के बीच पिसते हुए भी

जीवित रहेगा ,

तुम्हारे मुँह पर तमाचा बन कर !

........................................... अरुन श्री !

Views: 434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on March 3, 2013 at 10:22am

आदरणीय सौरभ सर , मेरा ये प्रयास आपके मार्गदर्शन बिना न निखर पाता ! आपका धन्यवाद ! रचना के भावों का मान रखने के लिए भी ! सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 2:18pm

प्रेम की व्यापकाता को क्षणिक भावावेश की वेदी पर रखना पाप है. इस तथ्य से को बखूबी साझा करती रचना के लिए अरुणभाई हार्दिक बधाई.  रचना के शब्द भेदते हुए हैं और संप्रेषणीयता प्रहारक तथा सोद्येश्य है.

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by Arun Sri on March 2, 2013 at 11:41am

राजेश कुमारी मैम , सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on March 1, 2013 at 11:53am

राजेश झा सर , आप इस कविता से इतने प्रभावित हुए , सहमत हुए और सराहना की इसके लिए आपका अत्यंत आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2013 at 11:01am

अरुण श्री वास्तव जी कितनी गहन मन मंथन करती  पंक्तियों के माध्यम से सच्चे प्रेम और वासना के फर्क को परिभाषित किया है बहुत-बहुत अच्छा लिखा है बधाई आपको रचना अपना संदेश देने में सफल है   

Comment by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 10:58am

क्‍या बात है अरूण जी, इतनी सुंदर रचना है कि क्‍या कहूं जैसे झकझोर कर कहती हो कि तुम जिसे जानते हो वह प्रेम मैं नहीं मेरा अक्‍स उससे बहुत अलहदा भी है, बहुत बधाई इस प्रस्‍तुति पर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
20 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service