For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 "प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !"  आकाश  शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !

"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !

"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"

“कौन मित्र?”

“अभिनव, कॉलेज वाला...!”

“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”

“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”

“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!” अबकी प्रतीक उत्तेजित था !

“पता नही ! आसान नही लगता !”

“आसान कर देंगे ! दो प्रेमियों को मिलाने से बड़ा पुण्य क्या ! पर प्रेमिका का नाम तो बताओ?”

“अनुराधा....!”

“क्या, उसकी इतनी हिम्मत, जिन्दा नही छोडूंगा कमीने को, खून कर दूँगा !” प्रतीक अचानक गुस्से में आ गया था ! अनुराधा उसकी बहन का नाम था !

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 30, 2012 at 8:13pm

सादर धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण जी...!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 30, 2012 at 7:01pm

सच्चे प्रेम की समझ और हिम्मत का सन्देश देती बात को कहानी का रूप देने पर बधाई स्वीकारे श्री पियूष द्वेदी जी 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 12:05pm

सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी... बहुत ही सही संदर्भ दिया है आपने, प्रेम-प्रेम चिल्लाने वाले, अथवा प्रेम की बात आने पर कृष्ण को उदाहरण रखने वाले लोगों में से मुश्किल से पाँच प्रतिशत लोग ही (शिक्षित-अशिक्षित सभी वर्गों में) ऐसे होंगे, जो कृष्ण के प्रेम-विषयक इस  महान सोच को समझे, तिसपर अधिकत्तर लोगों से तो इस कार्य हेतु कृष्ण की आलोचना ही सुनने को मिलती है !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 29, 2012 at 11:38am

बहुत सही.  मानवीय समझ की धरातल को सक्षम शब्द मिले हैं और तदनुरूप कथ्य आधार. 

यह सही भी है, सभी कृष्ण की समझ को नहीं जीते जो प्रेम के अति उच्च स्तर का अपने जीवन में न केवल निर्वाह करते हैं बल्कि प्रेम के उस स्वरूप को अन्य के जीवन में लागू भी करवाते हैं.

अग्रज बलराम की इच्छा के विरुद्ध कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा को अर्जुन के साथ भाग जाने में सहयोग दिया था, कारण कि अर्जुन सुभद्रा से प्रेम करते थे. कृष्ण की समझ से दुर्योधन सुभद्रा के लिये बलराम और अन्य पारिवारिक सदस्यों द्वारा मान्य वर भर थे, वहीं अर्जुन सुभद्रा हेतु स्वीकार्य वर थे. कृष्ण ने हार्दिक स्वीकृति को अनुमोदित किया न कि बलराम के हठ को, जो सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करवाने पर तुले हुए थे.

पियुषजी, मेरे उपरोक्त संदर्भ को आज के लिहाज से देखा और समझा जाय, जहाँ ’ऑनर किलिंग’ और ’खाप’ सम्मत बलात् निर्णय ज़िन्दग़ियों को अकाल मृत्यु देने पर आमादा हैं.


आपकी इस लघु-कथा पर मेरी हार्दिक बधाई.. .

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:38am

आदरणीय राजेश कुमारी जी... आपको कहानी पसंद आयी, ये मेरे श्रम की सार्थकता है !सादर  धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:37am

आदरणीय शालिनी जी.... आपको कहानी बेहतर लगी, बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:36am

आदरणीय रक्ताले जी...  बहुत बहुत धन्यवाद...!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:34am

आदरणीय सूर्या भाई जी... शुक्रिया !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:34am

आदरणीय प्राची दी.. सादर धन्यवाद ! इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण तत्काल प्रत्युत्तर नही कर पाया !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 21, 2012 at 10:24am

प्रिय पियूष जी, सुन्दर अभिव्यक्ति। दोहरी मानसिकता को सुन्दर शब्द मिले हैं। 

 दो प्रेमियों को मिलाने से बड़ा पुण्य क्या ! पर प्रेमिका का नाम तो बताओ?”

“अनुराधा....!”

“क्या, उसकी इतनी हिम्मत, जिन्दा नही छोडूंगा..................

हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
54 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
2 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service