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तुझसे ही धोखे खाए हैं

सबसे ज्यादा ज़िन्दगी 
तुझसे ही धोखे खाए हैं
जब किया विश्वास तब
तूने कहर बरपाए हैं
सबसे - -

दीप आशा का लिए
जब - जब उमंगित मैं खड़ी
द्वार जो नैराश्य के 
आकर सतत खटकाए हैं
सबसे - -

मत समझना तू हरा देगी
मुझे ऐ ज़िन्दगी
हमने ही तो कूट प्रश्नों के
गिरह सुलझाए हैं
सबसे - -

परत दर परतों के पीछे
कितना ही छुपती फिरे
पर तेरे झूठे मुखौटे
हमने ही विलगाए हैं
सबसे - -

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on September 1, 2019 at 3:02pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब,निवेदन है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें,पाठकों को आसानी होती है,कृपया बताने का कष्ट करें कि ये रचना किस विधा में है?

कृपया ध्यान दे...

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