For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आ नहीं पाऊँगा

आ नहीं पाऊँगा फ़ोन काटकर राजबीर कुर्सी पर बैठ गया |हालाँकि समय ऐसा नहीं था की वो बैठे |घर में ढेरों काम बाकी थे और वक्त बहुत कम |मामा जी अभी-अभी कानपुर से आए हैं |ताऊ दो घंटे में पहुँच जाएँगे |मौसी कल ही दीपक के साथ आ चुकी हैं |सभी लोगों के नाश्ते का प्रबंध करना है और हलवाई का अता-पता नहीं है |

रिश्तेदारों के लिए शहर नया है और पड़ोसियों से कोई उम्मीद बेकार |कुल मिलाकर अमित ही था जो उसकी मदद कर सकता था पर अब !

“फ़िक्र ना कर मैं और तेरी भाभी एक रोज़ पहले पहुँच जाएँगे और तेरी टेंशन आधी |” एक हफ़्ते पहले जब राजबीर ने गाजियाबाद में रह रहे अमित को फोन किया तो उसके यही शब्द थे |

दो साल पहले तक अमित उसका पड़ोसी था | जब अमित पाँच साल का था तभी उसके फौजी पिता ड्यूटी पर आंतकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे |माँ ने पेंशन और ट्यूशन से अमित को पाला था |दो साल पहले ही गीता कालोनी का घर बेचकर उन्होंने गाजियाबाद घर बनाया था |

वह और राजबीर बचपन से साथ पढ़े और खेले थे और उनकी दोस्ती दाँत-कांटे की दोस्ती थी |राजबीर थोड़ा दब्बू था जबकि अमित दबंग |क्लास में किसी से राजबीर का पंगा हो जाए तो अमित तुरंत उसके बचाव में कूद पड़ता |जब राजबीर की पतंग किसी पड़ोसी की छत पर अटक जाती तो अमित छत फांदता हुआ उसकी पतंग ले आता |राजबीर की पतंग वापस दिलाने के चक्कर में उसने सिर भी फोड़ा और गालियाँ भी खाईं |दसवी की बोर्ड परीक्षा में अमित ही के कारण वह गणित में पास हो सका अन्यथा उसने तो हथियार डाल दिए थे |ग्यारहवी क्लास में राजबीर को आर्ट मिली और कुशार्ग अमित कॉमर्स में दाखिल हुआ |राजबीर की दिल्ली जल बोर्ड में चपरासी की नौकरी लग गई और अमित गाजियाबाद नगर निगम में अकाउंटेंट लग गया था |गाजियाबाद से रोज़ दिल्ली का सफ़र करने में दिक्कत आने लगी तो अमित अपनी माँ के साथ वहीं शिफ्ट हो गया |

जिस दिन अमित शिफ्ट हो रहा था राजबीर बहुत उदास था |

“यार,तेरे बिना जिंदगी बहुत मुश्किल हो जाएगी |” राजबीर ने पनीली आँखों से कहा

“साले,गाजियाबाद जा रहा हूँ अमेरिका नहीं ,दो घंटे का सफ़र है ,जब दिल चाहेगा मिल लेंगे |” अमित ने उसे गले लगाते हुए कहा हुआ भी वही |

दोनों कुआरें थे इसलिए कोई बंधन नहीं था |इसलिए दोनों दोस्त सप्ताहांत में अवश्य मिलते |साथ में घूमते,बीयर पीते और खुबसुरत लड़कियों को देखकर अपने-अपने ख्याली पुलाव पकाते और एक दूसरे को चिढ़ाते | चूँकि अमित एकलौती संतान था |इसलिए मायरा का रिश्ता आते ही माँ ने हाँ कर दी |

“चाची,आप मेरी सौतन ला रही हो |”राजबीर ने मज़ाक में पूछा |

“मैं तो तेरी एक और दोस्त ला रही हूँ |वैसे मायरा की एक बहन और है कह तो तेरी भी बात चलाऊँ |”माँ ने उसे छेड़ते हुए कहा |

“ना चाची ना ! मुझे नहीं पड़ना इस झंझट में ---“

“तू तो बड़ा मतलबी है बे ! दोस्त बलि का बकरा बन जाए और आप हैं की कहते हैं की हम तो आज़ाद परिंदे रहेंगे |”

“तू तो जानता है की अभी पिंकी का रिश्ता करना है |” राजवीर ने गम्भीर होकर कहा तो अमित ने उसके कंधों पर अपना हाथ रख दिया |

अमित की शादी के बाद दोनों का मिलना कम हो गया और अब मिलने की जगह अमित का घर हो गई | पहली बार मायरा भाभी के हाथों के लज़ीज़ व्यंजनों को खाते हुए जब राजबीर ने तारीफ़ की तो अमित बनावटी नाराजगी में बोला

“वाह !भाई तू तो बिन पेंदी का लोटा निकला,भाभी के आते ही पाला बदल लिया ---“

“आखिर समझदार जो हैं वैसे भी आप तो कुछ बना कर खिलाने से रहे ---“ मायरा ने जवाब दिया

“मेरे लिए तो दोनों ही बराबर हो –“ राजबीर ने सधा सा जवाब दिया

“समझ गया मियाँ,दोनों हाथ से लड्डू खाना चाहते हो ---मायरा वो पीहू ही थी ना जिसके साथ इनके सबसे ज़्यादा फोटों ---“सुनकर राजबीर का चहेरा ख़ुशी और शर्म के मिश्रित भाव से लाल हो गया |

समय के साथ दोनों की व्यस्तता कुछ और बढ़ी |बामुश्किल महीने में अक्सर एक बार मिल पाते और फ़ोन पर ही हालचाल हो जाता |

“साले !जब से भाभी आ गईं,तेरे पास मेरे लिए वक्त ही नहीं |” फ़ोन पर बीयर के नशे में धुत राजबीर बोला

“जब तेरी शादी होगी,तब समझेगा |”

“जब समझूँगा,तब समझूँगा पर अभी का क्या !” राजवीर नशे की झोंक में बोला

“तुमने ही राजबीर को सिर चढ़ा रखा है,रात के एक बज रहे हैं ----“ मायरा की चिढ़ती हुई आवाज़ राजबीर के कानों में पड़ी और फ़ोन कट गया “पिंकी को लड़के वाले देखने आ रहे है |तू भी आ जाता तो बड़ी हिम्मत रहती |” राजबीर ने

अमित से कहा

“पिंकी,मेरी भी बहन है,पर कल मायरा को गाईना को दिखाना है,डेट नजदीक आ रही है |”

“कोई नहीं भाई ये तो ख़ुशी की बात है |मैं कब बन जाऊँगा चाचा ?”

“शायद अगले हफ़्ते |” फिर राजबीर ने कुछ और सलाह-मशिवरा किया और फ़ोन रख दिया  |

लड़के वालों को पिंकी पसन्द आ गई |शादी की तारीख एक महीने के भीतर की निकलवाई गई |लड़का फ़ौजी था |छुट्टी में आया था |वो इसी छुट्टी में शादी करना चाहता था वरना एक साल और इंतज़ार करना होगा |जो लड़के को गवारा नहीं था |राजबीर परेशान था उसने अमित को फ़ोन किया | अमित आ तो नहीं पाया पर उसने पास के एक सरकारी बैंक का पता दिया जहाँ उसका जानकार काम करता था | राजबीर को आसानी से कर्ज मिल गया और टेंट,हलवाई,शादी-स्थल भी अमित ने फ़ोन पर ही फिक्स कर दिए |

राजबीर को वो दिन याद आया जब शिफ्ट होते वक्त वह बहुत उदास था और अमित ने कहा था –वक्त के चलते हम दूर जरुर हो रहे हैं पर इंसान चाहे तो दिलों से हमेशा नजदीक और जुड़ा रह सकता है |

काफ़ी काम निपट गया था परन्तु शादी का घर ऐसा घर होता है जो बेटी के बिदा होने तक कामों से भरा होता है |दो महीने हो चुके थे दोनों दोस्तों को मिले हुए पर दोनों ही समय के आगे विवश | इसी बीच मायरा ने बिटिया को जन्म दिया |राजबीर भतीजी को देखने जाना चाहता था पर नौकरी और शादी की तैयारी से उसे फुर्सत ही नहीं मिल पा रही थी |

“तू मायरा की चिंता मत कर |वह समझदार है |तेरी भतीजी भी ठीक है |फोटों मेल करी है देख कर बताना किस पर गई है |और कोई दिक्कत हो तो बेझिझक फ़ोन करियो |” अमित ने कहा

“तू कब आएगा ?”

“बोला तो,दो दिन की छुट्टी अप्लाई कर रखी है |माँ,मायरा ,तेरी भतीजी सब आएँगे |” अभी दफ्तर में बहुत काम है बाद में बात करते हैं |

आज वह अमित के आने का इंतजार कर रहा था और अचानक से यह खबर |उसे लगा उसके पैरों के नीचे जमीन ही नहीं है |

“क्या हुआ बेटा?तबियत तो ठीक है ?ताऊजी को फ़ोन किया और अमित कहाँ रह गया |”

“माँ मुझे गाजियाबाद जाना है अभी |” राजबीर ने धीमे स्वर में कहा

“अभी | इस वक्त !”

तब तक मौसीजी एवं मामा भी वहीं आ गए थे |

“अमित और भाभी का कल रात एक्सीडेंट हो गया था और आज सुबह भाभी ---“कहते –कहते उसका गला अवरुद्ध हो गया | माँ भी वहीं आवाक खड़ी हो गईं |फिर खुद को संयत करते हुए बोली –पर घर में इतने सारे काम ----|

राजबीर सिर झुकाए बैठा रहा |

“बेटा जब घर में शुभ काम हों तो किसी के अशुभ में शामिल नहीं होते |” मौसी ने उसका माथा सहलाते हुए कहा

“क्या यह शुभ-अशुभ हमारे हाथों में होता है ?” राजबीर ने रोते हुए कहा |

“हमारे हाथों में तो नहीं होता पर यही रिवाज है |” मामा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा

“तो यह रिवाज सबके लिए एक जैसा क्यों नहीं होता ?”

“तू उस गाजियाबाद में रहने वाले छोकरे के लिए इतना परेशान हो रहा है |”

“मामा वो सिर्फ मेरा दोस्त नहीं,बचपन का साथी है,मैं आपको नहीं समझा सकता |” राजबीर ने अवरुद्ध गले से ही कहा |

“देहात में तो जिसका शादी-ब्याह होता है वो सवा महीने तक किसी गमी में शामिल नहीं होता |यहाँ तक की लोग घरों में आने वाले तेरहवी के कार्ड तक को तुरंत फाड़ देते हैं और तू अपना काम छोड़कर वहाँ जाना चाहता है |” मौसी ने फिर कहा

“ये सब अंधविश्वास हैं मैं इन्हें नहीं मानता –“ अब राजवीर को दुःख से ज्यादा गुस्सा आ रहा था |

“नहीं मानता तो जा |पर जब कल ऊँच-नीच होगी तो पूछेंगे |” मामा ने नाराज़ होते हुए कहा

“मामा जब गुड़िया दीदी के ब्याह के एक दिन पहले बड़े मामाजी हार्ट-अटैक से चल बसे थे तो आप ने शुभ-अशुभ का विचार नहीं किया |आप ने ना बड़ी मामी को बताया और ना दीदी को ---|कितनी चालाकी से आपने उनकी लाश अस्पताल के मुर्दाघर में रख छोड़ी और गुड़िया दीदी का विवाह भी किया |”

“मेरे पास रास्ता ही क्या था ?मुझे जो सही लगा किया |अगर शादी टाल देते तो अगले एक साल तक विवाह नहीं कर पाते |लोग तरह-तरह की बाते करते और क्या पता फिर कोई आफ़त आ जाती |” मामा ने आहत होते हुए कहा

“बेटा जब सिर पर आफ़त आती है तो उसका सामना करना ही होता है पर जान बुझकर अपने गले में साँप डालना तो मुर्खता ही है |”मामी ने कहा |

“राजबीर भाई,हलवाई आ गया है पूछ रहा है भट्टी कहाँ लगानी है ?” मौसरे भाई सचिन ने कहा तो राजबीर चुपचाप उसके साथ बाहर आ गया | “भईया हलवाई का सारा सामान आ चुका है,आप मुझे और मोनू को बाकि काम बता दीजिए और चुपचाप चले जाइए |---कोई समस्या होगी आप फ़ोन उठा लेना हम बाकि सब मैनेज कर लेंगे |वैसे भी शादी तो कल है |” सचिन ने आत्मविश्वास से कहा

“मुझको आते-आते शाम हो जाएगी और फ़ोन हमेशा उठा पाना मुश्किल होगा |”

“कोई बात नहीं हम दोनों देख लेंगे |पर आप जाओ |अमित भाई को आप की जरूरत होगी |”

पिछले तीन दिनों से बंद व्हाट्सएप्प उसने ऑन किया |अमित के प्रोफाइल पर मायरा की और उसकी बेटी की फ़ोटो लगी थी |एक संदेश भी था -जानता हूँ तू यहाँ आने के लिए बेचैन होगा पर मेरे ख्याल से यह मुनासिब वक्त नहीं है | अगर घर में शुभ काम हो तो किसी की गमी में शामिल नहीं होते |यूँ तो मेरा भी दिल कर रहा है कोई ऐसा कंधा मिले जिस पर मैं सर रखकर रो सकूँ |पर तू अगर यहाँ आएगा तो वहाँ के बहुत से काम अटक जाएँगे |रायना के घर वाले तो यहीं के थे इसलिए सब पहुँच गए हैं और मैं तेरा इंतजार नहीं करना चाहता |यूँ तो पिंकी मेरी बहन है और मैं हमेशा कामना करूंगा की उसका जीवन सुखमय हो |पर अगर आज तू आया और कल कोई ऊँच-नीच हुई तो लोग मेरे गम को उस घटना से जोड़ेंगे और मुझे यह सच में बुरा लगेगा |और दोनों मन ही मन एक अफ़सोस लेकर रह जाएँगे |इसलिए आग्रह है की तुम मत आना -------और मेरी विवशता तो तुम ---|

राजबीर बुझे मन से आने वाले उत्सव की तैयारी में लग जाता है | 

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on June 4, 2018 at 11:46am

आदरणीय सोमेश कुमार जी, अच्छी कहानी बन पड़ी है । बहुत बहुत बधाई । वैसे मैं भी इस बात सहमत हूँ कि राजबीर को अवश्य गाजियाबाद जाना चाहिए था । ये एक छोटी सी बात ही उसे कमजोर सिध्द्ध करती है । 

Comment by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 8:49pm

आदरणीय सोमेश जी, दोस्ती पर बढ़िया कहानी लिखी है आपने. आजकल ऐसे दोस्त कहाँ मिलते हैं. वैसे अन्त में आपने राजबीर के पात्र को कमज़ोर कर दिया है. मेरे ख़याल से उसे ग़ाज़ियाबाद जाना चाहिए. यह उसके पात्र को तो मजबूत करेगा ही, आपकी कहानी के स्तर को भी ऊपर उठाएगा. शेष आप पर. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
11 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service