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शिक्षा का व्यवसायीकरण


फैलती मैकडोनल्ड की संस्कृति
कौशल किशोर
‘शिक्षा के व्यवसायीकरण के प्रभाव’ विषय पर बीते 14 जुलाई को लखनऊ के बली प्रेक्षागृह में रीगल मावन सृजन संस्थान की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद अरुणेश मिश्र ने की तथा संचालन किया संस्थान की महासचिव मंजू शुक्ला ने।

इस मौके पर बोलते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कहा कि शिक्षा का जिस तरह से बाजारीकरण हुआ है, उससे न सिर्फ शिक्षा की गुणवता प्रभावित हुई है बल्कि शिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी हो गई है। शिक्षा की सर्वग्राहिता ही समाप्त होती जा रही है। मौजूदा समय में शिक्षा एक खास वर्ग की जागीर बनती जा रही है। निजी स्कूलों की बाढ़ आ गई है, जहाँ न तो फीस का मानक तय है और न ही शिक्षण कार्य का। अच्छे स्कूल का मानक लम्बी फीस  है। इसकी वजह से समाज का बड़ा हिस्सा शिक्षा से दूर होता जा रहा है। शिक्षा माफिया पैदा हो गये हैं जिनका मकसद मात्र धन उपार्जन है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने कहा कि आजादी के बाद से शिक्षा पर किसी ने घ्यान नहीं दिया। देश का निर्माण तभी संभव है जब सर्वग्राही स्कूलिंग की व्यवस्था की जाती और कारगर योजना बनाई जाती। 1952 में डॉ0 राममनोहर लोहिया ने इस ओर इशारा किया था और कहा था कि जो आजादी हमें मिली है, वह विखण्डित है। अब तो हर चीज के लिए हम अमरीका के मुखापेक्षी हो चुके हैं। मैकडोनल्ड की संस्कृति चारो तरफ फैल रही है, शिक्षा के क्षेत्र में भी इसने हाथ-पैर फैला दिये हैं।

कवि और जन संस्कृति मंच, लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में नागरिको को शिक्षा और चिकित्सा प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है। आजादी के बाद हमारे यहाँ कल्याणकारी राज्य की घोषणा हुई और इस दिशा में कुछ कदम जरूर उठाये गये जो जरूरत को देखते हुए अपर्याप्त थे। पर आज तो वैश्वीकरण के इस दौर में उससे भी सरकार ने अपना हाथ खींच लिया है। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे मानव संस्कृति के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को अमीरों व धन्नासेठों के हवाले कर दिया गया है। तथ्य तो यह है कि हमारी सरकार का रक्षा बजट दिन.दिन बढ़ता जा रहा है, वहीं शिक्षा व स्वास्थ्य पर बजट घटता जा रहा है। इन क्षेत्रों का सेवा, ज्ञान व संस्कृति के संवर्द्धन की जगह व्यवसाय में बदल जाना सरकार की उन अमीर परस्त. साम्राज्यपरस्त नीतियों की देन है। इसीलिए शिक्षा के व्यवसायीकरण के विरोध का मतलब इन नीतियों के विरुद्ध संघर्ष है। इस संदर्भ में रीगल मानव सृजन संस्थान का संघर्ष महत्वपूर्ण है। ऐसे संघर्ष को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

सेमिनार को एस0 के0 पाण्डेय, विश्वकांत मिश्रा, एस0 सी यादव आदि शिक्षाविदों ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर रीगल मानव सृजन संस्थान के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। यह संस्थान का चौथा वार्षिकोत्सव भी था। बच्चों ने ‘हम होंगे कामयाब’ पेश कर यह संदेश दिया कि संघर्ष और आशाएँ कभी खत्म नहीं होती हैं। मानव के अन्दर सृजन की अकूत संभावनाएँ हैं जिन्हें समझने और आगे बढ़ाने की जरूरत है। इस संदर्भ में संस्थान का चार साल का यह सफर मील के पत्थर की तरह है। विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन सुधा राजपूत ने किया और अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन संस्थान की महासचिव मंजू शुक्ला ने दिया।

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