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नवगीत: निर्माणों के गीत गुँजायें... संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:

निर्माणों के गीत गुँजायें...

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
निर्माणों के गीत गुँजायें...

*

मतभेदों के गड्ढें पाटें,

सद्भावों की सड़क बनायें.

बाधाओं के टीले खोदें,

कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*
निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,

लगन-फावड़ा-तसला लायें.

बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-

कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*

विश्वास-इमल्शन को सींचें,

आस गिट्टियाँ दबा-बिछायें.

गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-

भर धुम्मस से खूब कुटायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*

है अतीत का लोड बहुत सा,

सतहें सम कर नींव बनायें.

पेवर माल बिछाये एक सा-

पंजा बारम्बार चलायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*
मतभेदों की सतह खुरदुरी,

मन-भेदों का रूप न पायें.

वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन दें-

रोलर से मजबूत बनायें.

दूरियाँ दूरकर एक्य बढ़ायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*

राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें-

प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.

जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,

कर साकार, बमुलियाँ गायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*
श्रम-सीकर का अमिय पान कर,

पग को मंजिल तक ले जाएँ.

बनें नींव के पत्थर हँसकर-

काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.

निर्माणों के गीत गुँजायें...

*
टिप्पणी: इमल्शन = सड़क निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की

पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर =

डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोटाई में बिछानेवाला यंत्र,

पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को

खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर

से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी

-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं,

बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोक प्रिय बुन्देली लोकगीत,

दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

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Comment by sanjiv verma 'salil' on July 5, 2010 at 11:55pm
abhar.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 5, 2010 at 11:49pm
श्रद्धेय आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम
बिल्कुल सहज भाव से एवं सहज भाषा के साथ चरित्र रुपी सड़क के निर्माण की बात समझा दी आपने....बचपन में एक गीत गाया करता था..रचनाकार का नाम याद नहीं है...आज उसकी याद आ गई
.
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें.....
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें...

माना अगम आगाज सिन्धु है संघर्षों का पार नहीं है...
किन्तु डूबना मझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है...
जटिल समस्या सुलझाने को, नूतन अनुसंधान न भूलें.
Comment by sanjiv verma 'salil' on July 5, 2010 at 11:23pm
dhanyavad. yah rachna bitumin sadak ke nirman kary kee site par hee hue ehai.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2010 at 12:12pm
वाह आचार्या जी, आपने तो सिविल इंजिनियरिंग वाली गीत लिख डाली है, बहुत सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई,

कृपया ध्यान दे...

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