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दिए कुछ आस के ......

 

आँखों से झांक रहे

सपने विश्वास के

देहरी पर जल रहे

दिए कुछ आस के

 

नेह के भरोसे ही

कुछ रिश्ते जोड़े हैं

तुमने न जाने क्यूँ

अनुबंध सारे तोड़े हैं

मौन की पीडाएं ही

मुझको तो छलती हैं

पास तुम आते हो

दूरी तब ढलतीं हैं

सम्बन्ध ले आये हैं

रिश्ते कुछ पास के

देहरी पर जल रहे

दिए कुछ आस के |

 

 

नश्तर से चुभते हैं

धूप के सुनहरे दिन

हम को तो भाये है

छाया भी तेरे बिन

अंगड़ाई  खोले हैं

प्रीत के हजारों बल 

फूलों पर आ बैठे

भंवरों के प्यारे दल 

गेंहूँ में उग आये

कुछ पत्ते कांस के

देहरी पर जल रहे

दिए कुछ आस के|

 

 

 

दीवाली पावन दिन

लक्ष्मी जी आयीं हैं

नेह की बिसातें निज  

अंगना बिछाई हैं

गए धूल भरे दिन

आई अमावस  है

कोहरे से दिन भर की

छाई अब तनुरस है  

आये दिन हर घर में

ठण्ड की भड़ास के

देहरी पर जल रहे

दिए कुछ आस के |

 

 

..........आभा  

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

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Comment

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Comment by Abha saxena Doonwi on November 2, 2016 at 5:42pm

आदरणीय samar कबीर जी नमस्कार ,मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा थी ,,आपने मेरी कविता पढी और सराहा आपका ह्रदय तल से अभिनन्दन है बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...

Comment by Samar kabeer on November 2, 2016 at 5:34pm
मोहतरमा आभा सक्सेना जी आदाब,बहुत जज़्बाती कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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