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अनबोले लम्स ....

आज मेरे
दिल के आईने में
मुझे
तुम नज़र आये थे

तन्हाई थी
मैं थी
और
तुम थे
अपने लम्स के साथ
मेरे ज़िस्म पर
बे-आवाज़
हौले हौले
रेंगते हुए

मेरी
हर
न को
तुम कुचलते रहे

खामोशियाँ
सरगोशियां करती रहीं

लौ भी
कहीं तारीक में
खो गयी

बस
शेष रही
मैं
और
मेरे ज़िस्म के
हर मोड़ पर
तुम्हारे
अनबोले लम्स

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 18, 2016 at 7:09pm

आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी  सृजन की हौसला अफ़ज़ाई करती आपकी आत्मीय प्रशंसा से प्रस्तुति उपकृत हुई। आपका हार्दिक आभार। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 5:22pm
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ कह गई है ये खूबसूरत और दिलकश रचना।हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।

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