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एक ग़ज़ल की कोशिश : मेरी तालीम का मुझ पर असर है !

मेरी तालीम का मुझ पर असर है,
जो तेरे सामने झुकती नज़र है ।


बिना गलती के माँगूं मैं मुआफ़ी,
यही रिश्ते निभाने का हुनर है ।

के जब इंसान पत्थर भी जो मारे,
उसे बदले में फल देता शज़र है ।

हर इक चेहरे पे नक़ली मुस्कुराहट,
बड़े फनकार लोगों का शहर है ।

अमीरी में भी कितने ग़म है तुमको,
किसी की बददुआओं का कहर हैं ।

के पूरी हो ही जाती हर तमन्ना,
मेरे अल्लाह की मुझ पर मेहर है ।

मुझे मंज़िल मिलेगी एक न एक दिन,
इसी उम्मीद में कटता सफ़र है ।

बड़ा शायर बना फिरता है देखो,
वही "अम्बेश" जो अब दरबदर है ।

::::

अम्बेश तिवारी "अम्बेश"

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 5:34pm
जनाब अम्बेश तिवारी'अम्बेश'जी आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूँ,उम्दा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आपकी जानकारी के लिये बता रहा हूँ कि चौथे और पांचवें शैर में क़ाफ़िया दोष है,सही शब्द है "शह्र""क़ह्र"
और सातवें शैर में'एक न एक दिन' को "इक न इक दिन"कर लीजियेगा ।

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